विचारणीय मुद्दे

मोटर वाहन (संशोधन) बिल, 2019

संदर्भ

पिछले कुछ वर्षों में शहरीकरण और आय के बढ़ने से भारत में मोटर वाहनों की संख्या भी लगातार बढ़ी है।[1]  2005 और 2013 के बीच भारत में पंजीकृत मोटर वाहनों की संख्या में 123% की वृद्धि हुई।[2] इसी प्रकार 2005 और 2015 के बीच सड़क दुर्घटनाओं की संख्या में 14% और इन दुर्घटनाओं में हताहत होने वालों की संख्या में 54% का इजाफा हुआ।[3]  इसी अवधि के दौरान सड़क नेटवर्क में 44% की बढ़ोतरी हुई।[4] 

सड़कों पर वाहनों की संख्या बढ़ने, साथ ही उसे नियंत्रित करने के लिए कोई समन्वित नीति न होने के कारण, कहा जा सकता है कि सड़क दुर्घटनाओं की संख्या में वृद्धि हुई।1सड़क दुर्घटनाओं की बढ़ती संख्या के मद्देनजर सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने 2007 में सड़क सुरक्षा कमिटी (चेयर: एस. सुंदर) का गठन किया जिससे सड़क यातायात संबंधी चोटों और मौतों की बढ़ती संख्या (मैग्नीट्यूड) की जांच की जा सके। कमिटी ने सुझाव दिया कि राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर सड़क सुरक्षा अथॉरिटी बनाई जाएं[5]  अप्रैल 2016 में केंद्र सरकार ने सड़क परिवहन के क्षेत्र में सुधारों के लिए सुझाव देने हेतु राज्य परिवहन मंत्रियों के एक समूह का गठन किया (चेयर : यूनुस खान, परिवहन मंत्री, राजस्थान)। इस समूह ने सुझाव दिया कि सड़क सुरक्षा से जुड़ी मुख्य समस्याओं के समाधान के लिए मोटर वाहन एक्ट, 1988 में सुधार किया जाना चाहिए।

मोटर वाहन (संशोधन) बिल, 2019 को लोकसभा में 15 जुलाई, 2019 को सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी द्वारा पेश किया गया। यह बिल मोटर वाहन एक्ट, 1988 में संशोधन का प्रयास करता है। मोटर वाहन एक्ट, 1988 वह प्रमुख केंद्रीय कानून है जोकि मोटर वाहनों और वाहन चालकों की लाइसेंसिंग और पंजीकरण को रेगुलेट करता है। यह बिल विभिन्न मुद्दों को संबोधित करता है जैसे सड़क सुरक्षा, थर्ड पार्टी इंश्योरेंस, टैक्सी एग्रीगेटरों का रेगुलेशन, असुरक्षित वाहनों का रीकॉल और सड़क दुर्घटनाओं की स्थिति में पीड़ितों को मुआवजा। उल्लेखनीय है कि ऐसा ही एक बिल 16वीं लोकसभा में पेश किया गया था जोकि लोकसभा के भंग होने के साथ लैप्स हो गया। इस बिल को लोकसभा द्वारा पारित कर दिया गया था और इसके बाद परिवहन, पर्यटन एवं संस्कृति संबंधी स्टैंडिंग कमिटी और राज्यसभा की सिलेक्ट कमिटी द्वारा इसकी समीक्षा की गई थी।

बिल की मुख्य विशेषताएं

  • सड़क दुर्घटना के पीड़ितों को मुआवजा: केंद्र सरकार ‘गोल्डन आवर’ (स्वर्णिम घंटे) के दौरान सड़क दुर्घटना के शिकार लोगों का कैशलेस उपचार करने की एक योजना विकसित करेगी। बिल के अनुसार ‘गोल्डन आवर’ घातक चोट के बाद की एक घंटे की समयावधि होती है जब तुरंत मेडिकल देखभाल से मौत को मात देने की संभावना सबसे ज्यादा होती है। केंद्र सरकार थर्ड पार्टी इंश्योरेंस के अंतर्गत मुआवजे का दावा करने वालों को अंतरिम राहत देने के लिए एक योजना भी बना सकती है। बिल हिट और रन मामलों में न्यूनतम मुआवजे को इस प्रकार बढ़ाता है: (i) मृत्यु की स्थिति में, 25,000 से बढ़ाकर दो लाख रुपए, और (ii) गंभीर चोट की स्थिति में 12,500 से बढ़ाकर 50,000 रुपए।
     
  • अनिवार्य बीमा: बिल में केंद्र सरकार से मोटर वाहन दुर्घटना कोष बनाने की अपेक्षा की गई है। यह कोष भारत में सड़क का प्रयोग करने वाले सभी लोगों को अनिवार्य बीमा कवर प्रदान करेगा। इसे निम्नलिखित स्थितियों के लिए उपयोग किया जाएगा: (i) गोल्डन आवर योजना के अंतर्गत सड़क दुर्घटना के शिकार लोगों का उपचार, (ii) हिट और रन मामलों में मौत का शिकार होने वाले लोगों के प्रतिनिधियों को मुआवजा देना, (iii) हिट और रन मामलों में गंभीर रूप से घायल व्यक्ति को मुआवजा देना, और (iv) केंद्र सरकार द्वारा विनिर्दिष्ट व्यक्तियों को मुआवजा देना। इस कोष में निम्नलिखित के माध्यम से धन जमा कराया जाएगा: (i) उस प्रकृति का भुगतान जिसे केंद्र सरकार द्वारा विनिर्दिष्ट किया जाए, (ii) केंद्र सरकार द्वारा अनुदान या ऋण, (iii) क्षतिपूर्ति कोष में शेष राशि (हिट और रन मामलों में मुआवजा देने के लिए एक्ट के अंतर्गत गठित मौजूदा कोष), या (iv) केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित अन्य कोई स्रोत।
     
  • नेक व्यक्ति (गुड समैरिटन): बिल के अनुसार, नेक व्यक्ति (गुड समैरिटन) वह व्यक्ति है, जो दुर्घटना के समय पीड़ित को आपातकालीन मेडिकल या नॉन मेडिकल मदद देता है। यह मदद (i) सदभावना पूर्वक, (ii) स्वैच्छिक, और (iii) किसी पुरस्कार की अपेक्षा के बिना होनी चाहिए। अगर सहायता प्रदान करने में लापरवाही के कारण दुर्घटना के शिकार व्यक्ति को किसी प्रकार की चोट लगती है या उसकी मृत्यु हो जाती है, तो ऐसा नेक व्यक्ति किसी दीवानी या आपराधिक कार्रवाई के लिए दायी नहीं होगा।
     
  • वाहनों का रीकॉल: बिल केंद्र सरकार को ऐसे मोटर वाहनों को रीकॉल (वापस लेने) करने का आदेश देने की अनुमति देता है, जिसमें कोई ऐसी खराबी है जोकि पर्यावरण, या ड्राइवर या सड़क का प्रयोग करने वालों को नुकसान पहुंचा सकती है। ऐसी स्थिति में, मैन्यूफैक्चरर को (i) खरीदार को वाहन की पूरी कीमत लौटानी होगी, या (ii) खराब वाहन को दूसरे वाहन से, जोकि समान या बेहतर विशेषताओं वाला हो, बदलना होगा।
     
  • राष्ट्रीय परिवहन नीति: केंद्र सरकार राज्य सरकारों की सलाह से राष्ट्रीय परिवहन नीति बना सकती है। इस नीति में: (i) सड़क परिवहन के लिए एक योजनागत संरचना बनाई जाएगी, (ii) परमिट देने के लिए फ्रेमवर्क विकसित किया जाएगा, और (iii) परिवहन प्रणाली की प्राथमिकताएं विनिर्दिष्ट की जाएंगी, इत्यादि।
     
  • सड़क सुरक्षा बोर्ड: बिल में एक राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा बोर्ड का प्रावधान है जिसे केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचना के जरिए बनाया जाएगा। बोर्ड सड़क सुरक्षा एवं यातायात प्रबंधन के सभी पहलुओं पर केंद्र और राज्य सरकारों को सलाह देगा। इनमें निम्नलिखित के संबंध में सलाह देना शामिल हैं:: (i) मोटर वाहनों के स्टैंडर्ड, (ii) वाहनों का रजिस्ट्रेशन और लाइसेंसिंग, (iii) सड़क सुरक्षा के मानदंड, और (iv) नए वाहनों की प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देना।
     
  • अपराध और दंड: बिल में एक्ट के अंतर्गत विभिन्न अपराधों के लिए दंड को बढ़ाया गया है। उदाहरण के लिए शराब या ड्रग्स के नशे में वाहन चलाने के लिए अधिकतम दंड 2,000 रुपए से बढ़ाकर 10,000 रुपए कर दिया गया है। अगर मोटर वाहन मैन्यूफैक्चरर मोटर वाहनों के निर्माण या रखरखाव के मानदंडों का अनुपालन करने में असफल रहता है तो अधिकतम 100 करोड़ रुपए तक का दंड या एक वर्ष तक का कारावास या दोनों दिए जा सकते हैं। अगर कॉन्ट्रैक्टर सड़क के डिजाइन के मानदंडों का अनुपालन नहीं करता तो उसे एक लाख रुपए तक का जुर्माना भरना पड़ सकता है। केंद्र सरकार एक्ट में उल्लिखित जुर्माने को हर साल 10% तक बढ़ा सकती है।
     
  • टैक्सी एग्रेगेटर: बिल एग्रीगेटर को डिजिटल इंटरमीडियरी या मार्केट प्लेस के रूप में पारिभाषित करता है जिसे परिवहन के उद्देश्य से (टैक्सी सेवाओं के लिए) ड्राइवर से कनेक्ट होने के लिए यात्री इस्तेमाल कर सकता है। राज्य सरकारों द्वारा इन एग्रीगेटरों को लाइसेंस जारी किए जाएंगे। इसके अतिरिक्त एग्रीगेटरों को इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी एक्ट, 2000 का अनुपालन करना होगा।

विचारणीय मुद्दे

सड़क सुरक्षा की इलेक्ट्रॉनिक निगरानी

बिल राज्य सरकारों को जनादेश देता है कि वे केंद्र सरकार के दिशानिर्देशों के आधार पर राष्ट्रीय राजमार्गो, राज्य राजमार्गों और शहरी सड़कों पर सड़क सुरक्षा की इलेक्ट्रॉनिक निगरानी और प्रवर्तन सुनिश्चित करें। यह अस्पष्ट है कि इन सुरक्षा उपायों को लागू करने की लागत कौन वहन करेगा।

मुद्दा:  सड़कों की इलेक्ट्रॉनिक निगरानी के लिए राज्यों को इंफ्रास्ट्रक्चर पर काफी राशि खर्च करनी पड़ सकती है (जैसे सीसीटीवी कैमरा, स्पीड डिटेक्टर्स, प्रशिक्षण कार्यक्रम इत्यादि)। बिल यह निर्दिष्ट नहीं करता कि इस लागत को केंद्रीय योजना या राज्यों को दिए जाने वाले अतिरिक्त अनुदान द्वारा वहन किया जाएगा। बिल के वित्तीय विवरण में भी यह उल्लेख नहीं है कि ऐसे इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए राज्यों को कोई वित्तीय सहयोग प्रदान किया जाएगा। 2016 के बिल की जांच करने वाली स्टैंडिंग कमिटी ने सुझाव दिया था कि सड़कों को सुरक्षित बनाने के लिए केंद्र सरकार को राज्यों को तकनीकी विशेषज्ञता एवं लॉजिस्टिक्स संबंधी मदद प्रदान करनी चाहिए।[6]

सड़क सुरक्षा के लिए जिम्मेदार एजेंसी

बिल केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचना के जरिए राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा बोर्ड बनाने का प्रावधान करता है। बोर्ड में एक चेयरपर्सन, राज्य सरकारों के प्रतिनिधि और अन्य सदस्य (जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा निर्दिष्ट किया जाएगा) होंगे। बोर्ड सड़क सुरक्षा एवं यातायात प्रबंधन के सभी पहलुओं पर केंद्र और राज्य सरकारों को सलाह देगा जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं:: (i) मोटर वाहनों की डिजाइन, वजन, मैन्यूफैक्चरिंग प्रक्रिया, परिचालन तथा रखरखाव, (ii) वाहनों का रजिस्ट्रेशन और लाइसेंसिंग, (iii) सड़क सुरक्षा, सड़क इंफ्रास्ट्रक्चर और यातायात नियंत्रण, (iv) नए वाहनों की प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देना, (v) संवेदनशील सड़क यात्रियों की सुरक्षा। केंद्र सरकार बोर्ड के नियम और शर्तों तथा उसके कार्यों के संबंध में नियम बना सकती है।

मुद्दा: राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा बोर्ड की स्थापना से संबंधित संशोधन की प्रकृति सलाहकारी होगी। संशोधनों के अनुसार, बोर्ड केंद्र और राज्य सरकारों को सड़क संबंधी मानदंडों को स्थापित करने की सलाह देगा।

सुंदर कमिटी ने सुझाव दिया था कि राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा बोर्ड के पास सड़कों एवं मोटर वाहनों की डिजाइन, निर्माण तथा रखरखाव से संबंधित मानदंडों को स्थापित करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए।उसके पास इन मानदंडों के अनुपालन की निगरानी करने, अनुपालन संबंधी निर्देश जारी करने और, जरूरी होने पर, दंड वसूल करने का अधिकार होना चाहिए।

वर्तमान में सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री के नेतृत्व में राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा काउंसिल सड़क सुरक्षा की मुख्य सलाहकार संस्था है। सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के अंतर्गत परिवहन शाखा सड़कों पर वाहनों के सुरक्षित आवागमन और सुरक्षा संबंधी जागरूकता पर नजर रखता है।

सुंदर कमिटी ने गौर किया था कि भारत में मौजूदा संस्थाओं में सड़क सुरक्षा की निगरानी करने के लिए जरूरी क्षमता नहीं है।5  सड़क सुरक्षा की जिम्मेदारी विभिन्न संस्थाओं के बीच वितरित की गई है और इन संस्थाओं के बीच समन्वय स्थापित करने की कोई प्रभावी प्रणाली नहीं है। मौजूदा राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा काउंसिल के पास सड़क सुरक्षा को प्रभावित करने वाला कोई वैधानिक आधार, संसाधन या जनादेश नहीं है। इसकी तुलना में यूएस, ऑस्ट्रेलिया और स्वीडन जैसे देशों में सरकारी एजेंसियां यातायात सुरक्षा तथा प्रबंधन के लिए जिम्मेदार हैं।5

सड़क की डिजाइन और इंजीनियरिंग

बिल में यह प्रावधान है कि सड़कों की डिजाइन, निर्माण तथा सुरक्षा मानदंडों के रखरखाव के लिए जिम्मेदार कॉन्ट्रैक्टर या कंसल्टेंट को केंद्र सरकार द्वारा निर्दिष्ट डिजाइन, निर्माण और रखरखाव के मानदंडों का अनुपालन करना होगा। इन मानदंडों का अनुपालन न करने पर एक लाख रुपए तक का जुर्माना भरना पड़ सकता है और यह राशि मोटर वाहन दुर्घटना कोष में जमा होगी। बिल सड़कों की डिजाइनिंग की कुछ विशेषताओं को विनिर्दिष्ट करता है जिन पर अदालतों को ऐसे मामलों की सुनवाई के दौरान ध्यान देना चाहिए। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) सड़क की विशेषताएं और यातायात के प्रकार, (ii) सड़कों का मानक रखरखाव, और (iii) मरम्मत की वह स्थिति जिसमें सड़क का उपयोग करने वाले उस सड़क को पाने की उम्मीद करते हैं।

डिजाइन के मानदंडों को स्थापित करना

मुद्दा:  बिल में प्रावधान है कि केंद्र सरकार डिजाइन, निर्माण और रखरखाव के मानदंड बनाएगी। सड़क सुरक्षा पर सुंदर कमिटी ने सुझाव दिया था कि मानदंड बनाने और उनके अनुपालन पर नजर रखने की शक्ति उसी विभाग या मंत्रालय में निहित नहीं की जा सकती, जोकि सड़कों के निर्माण और रखरखाव के लिए भी जिम्मेदार है।5  इस मामले में केंद्र सरकार राष्ट्रीय राजमार्ग के विकास और रखरखाव के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार है और वह भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग अथॉरिटी (एनएचएआई) के जरिए यह कार्य करती है।

सुरक्षा मानदंडों का अनुपालन न करने पर दंड

मुद्दा: सुरक्षा के मानदंडों का अनुपालन न करने की स्थिति में एक लाख रुपए तक के जुर्माने का दंड भुगताना पड़ेगा। यह कहा जा सकता है कि 2017-18 में एनएचएआई ने 24 राजमार्ग निर्माण परियोजनाओं के ठेके दिए। इसकी लागत 20,000 करोड़ रुपए है और इसके अंतर्गत 1,280 किलोमीटर सड़कों का निर्माण करना है (औसत 15.6 करोड़ रुपए प्रति किलोमीटर)।[7]  सवाल यह उठता है कि क्या अगर ऐसी परियोजनाओं की लागत औसत 15 करोड़ रुपए प्रति किलोमीटर है तो क्या एक लाख रुपए तक का जुर्माना कॉन्ट्रैक्टर्स के लिए पर्याप्त निवारक साबित होगा। 

 

[1]Volume 3, Chapter 2, Roads and Road Transport, India Transport Report: Moving India to 2032, National Transport Development Policy Committee, June 17, 2014, http://planningcommission.nic.in/sectors/NTDPC/volume3_p1/roads_v3_p1.pdf.

[2]Table No 20.1: Number of motor vehicles registered in India, Statistical Yearbook of India 2016, Ministry of Statistics and Programme Implementation

[3]Road Accidents in India 2015, Ministry of Road Transport and Highways, May 2015, http://morth.nic.in/showfile.asp?lid=2143.

[4]Basic Road Statistics 2014-15, Ministry of Road Transport and Highways http://morth.nic.in/showfile.asp?lid=2445.

[5]Report of the Committee on Road Safety and Management, February 2007, http://morth-roadsafety.nic.in//admnis/admin/showimg.aspx?ID=29.

[6].  243rd Report: The Motor Vehicles (Amendment) Bill, 2016, Standing Committee on Transport, Tourism and Culture, February 8, 2017, http://www.prsindia.org/uploads/media/Motor%20Vehicles,%202016/SCR-%20Motor%20Vehicles%20Bill,%202016.pdf.

[7].  “19th Report: National Highways Authority of India, Standing Committee on Public Undertakings, August 2, 2017

 

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