स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश

निशक्त व्यक्ति अधिकार बिल, 2014

  • सामाजिक न्याय और सशक्तीकरण पर बनी स्टैंडिंग कमिटी (चेयरपर्सनः रमेश बैस) ने 7 मई, 2015 को निशक्त व्यक्ति अधिकार बिल, 2014 पर अपनी रिपोर्ट सौंपी।
     
  • बिल निशक्त व्यक्तियों के अधिकारों और हकदारियों पर केंद्रित है। यह निशक्तता की 19 स्थितियों को वर्गीकृत करता है और केंद्र सरकार को किसी और स्थिति को निशक्त के रूप में नामित करने की अनुमति देता है। यह मौजूदा निशक्त व्यक्ति (समान अवसर, अधिकार संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) एक्ट, 1955 के स्थान पर लाया जा रहा है।
     
  • कमिटी ने बिल का समर्थन किया है। इसके अतिरिक्त कमिटी ने निम्नलिखित सुझाव दिए हैं।
     
  • बिल ऑटिज्म स्पैक्ट्रम डिसऑर्डर, अंधता, सेरेब्रल पैलेसी, लोकोमोटर डिसेबिलिटी जैसी 19 स्थितियों को निशक्तता कहता है। कमिटी ने सुझाव दिया कि स्पेशल किडनी फेलेयोर, ब्लड कैंसर और डायबटीज टाइप वन को भी निशक्तता की श्रेणी में लाया जाना चाहिए क्योंकि ये बीमारियां लंबी अवधि के लिए और लाइलाज होती हैं। कमिटी ने यह सुझाव भी दिया है कि बौनेपन को भी निशक्तता माना जाए और उसे लोकोमोटर डिसेबिलिटी से अलग किया जाए।
     
  • भारत ने 2007 में निशक्त व्यक्तियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन को संपुष्टि प्रदान की थी, जिसमें भेदभाव को निशक्तता के आधार पर ऐसा बहिष्करण कहा गया है जोकि व्यक्ति की मूलभूत स्वतंत्रता के उपयोग को बाधित करता है। कमिटी ने सुझाव दिया है कि बिल में भेदभाव की इस परिभाषा को शामिल किया जाए।
     
  • बिल मानसिक रूप से बीमार व्यक्तियों को दो प्रकार की गार्जियनशिप प्रदान करता है। मंत्रालय सभी निशक्त व्यक्तियों को गार्जियनशिप देने के लिए इस प्रावधान में संशोधन करने के लिए राजी है। फिर भी कमिटी ने कहा कि गार्जियनशिप के प्रावधान पर दोबारा विचार किए जाने की जरूरत है। यह कहा गया है कि इस प्रावधान से संविधान द्वारा प्रदत्त समानता के अधिकार और बिल में गैर भेदभाव के प्रावधान का उल्लंघन हो सकता है। कमिटी ने ऐसे उल्लंघनों के लिए कोई विशिष्ट कारण नहीं दिए हैं।
     
  • बिल में इस्टैबलिशमेंट को ऐसा निगम कहा गया है जिसका स्वामित्व या नियंत्रण केंद्र या राज्य सरकार के हाथों में हो। कमिटी का सुझाव है कि इस परिभाषा में निजी निकायों को शामिल किया जाना चाहिए क्योंकि अनेक सरकारी सेवाओं को निजी निकायों द्वारा आउटसोर्स किया जाता है। इन सेवाओं को भी निशक्त व्यक्तियों के लिए उपलब्ध कराया जाना चाहिए।
     
  • बिल में कहा गया है कि अधिसूचना के पांच साल के अंदर निशक्त व्यक्तियों के लिए सभी मौजूदा सार्वजनिक इमारतों को सुगम्य बनाया जाना चाहिए। कमिटी ने पाया कि छोटी ढांचागत इमारतों के लिए पांच वर्ष का समय पर्याप्त होगा, लेकिन बड़ी इमारतों के विस्तार में अधिक समय लग सकता है जोकि हर मामले में अलग-अलग हो सकता है।
     
  • बिल मेडिकल प्रैक्टीशनर और गार्जियन की सहमति के बिना, किसी निशक्त महिला का गर्भपात करने वाले व्यक्ति के लिए दंड का प्रावधान करता है। कमिटी का कहना है कि ऐसी महिलाओं को सहमति के अधिकार से वंचित करना, उनकी प्रतिष्ठा को प्रभावित करता है।
     
  • शिक्षा के अधिकार एक्ट, 2009 के मद्देनजर, बिल छह से 18 वर्ष के बीच के सभी निशक्त बच्चों को निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा दिए जाने का प्रस्ताव रखता है। कमिटी ने निशुल्क शिक्षा की अधिकतम आयु सीमा 21 वर्ष करने का सुझाव दिया है।
     
  • बिल कहता है कि संबंधित सरकार को स्कूली बच्चों का एक सर्वेक्षण करना चाहिए जिससे निशक्त और विशेष जरूरतों वाले बच्चों को चिन्हित किया जा सके। इस सर्वेक्षण में यह जानकारी भी होनी चाहिए कि किस हद तक इन जरूरतों को पूरा किया गया है। कमिटी ने सुझाव दिया है कि हर पांच साल में एक बार सर्वेक्षण किया जाना चाहिए।
     
  • कमिटी का कहना है कि निशक्त व्यक्तियों के लिए सामान्य व्यक्तियों के मुकाबले जीविकोपार्जन करना अधिक कठिन होता है। उसने सुझाव दिया कि निशक्त व्यक्तियों को सामाजिक सुरक्षा के बुनियादी साधन जैसे खाना, कपड़ा, आश्रय और स्वास्थ्य सेवाएं निशुल्क उपलब्ध कराए जाने चाहिए।
     
  • कमिटी ने यह सुझाव दिया है कि बिल के अधिकार और हकदारियां नामक अध्याय में निशक्त महिलाओं और बच्चों के अधिकारों पर एक उपखंड को शामिल किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त कमिटी ने बिल के दायरे में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को लाने का सुझाव भी दिया है।

 

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