स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश

राष्ट्रीय होम्योपैथी आयोग बिल, 2019 

  • स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयरपर्सनराम गोपाल यादव) ने 27 नवंबर, 2019 को राष्ट्रीय होम्योपैथी आयोग बिल, 2019 पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। बिल होम्योपैथी सेंट्रल काउंसिल एक्ट, 1973 को रद्द करता है और होम्योपैथी औषधि की शिक्षा और प्रैक्टिस को रेगुलेट करता है। कमिटी के मुख्य निष्कर्ष और सुझाव निम्नलिखित हैं:
     
  • राष्ट्रीय होम्योपैथी आयोग (एनसीएच) की संरचनाकमिटी ने कहा कि बिल में प्रस्तावित एनसीएच की सदस्य संख्या और राज्यों के प्रतिनिधित्व को बढ़ाया जाना चाहिए ताकि वह प्रभावी तरीके से कार्य कर सके। उसने यह भी कहा कि एनसीएच में निर्वाचित मेडिकल प्रोफेशनलों का उचित प्रतिनिधित्व नहीं है क्योंकि उनमें से 80नामित हैं। कमिटी ने सुझाव दिया कि एनसीएच की कुल सदस्य संख्या को 20 से बढ़ाकर 27 करना चाहिए। इन 27 सदस्यों में चेयरपर्सन, 7 पदेन सदस्य, राज्य/यूटी के नामित 10 सदस्य (पार्ट टाइम), छह निर्वाचित रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टीशनर (पार्ट टाइम) और 3 अन्य पार्ट टाइम सदस्य होंगे।
     
  • एनसीएच के अंतर्गत तीन स्वायत्त बोर्ड हैं। कमिटी ने सुझाव दिया कि मेडिकल एसेसमेंट और रेटिंग बोर्ड तथा एथिक्स और रजिस्ट्रेशन बोर्ड की सदस्य संख्या को तीन से चार किया जाना चाहिए।
     
  • अपीलीय क्षेत्राधिकारएनसीएच के सभी फैसले केंद्र सरकार के अपीलीय क्षेत्राधिकार में आते हैं। इस संबंध में कमिटी ने कहा कि केंद्र सरकार को अपीलीय क्षेत्राधिकार देना सेपेरेशन ऑफ पावर के संवैधानिक प्रावधान से मेल नहीं खाता। उसने सुझाव दिया कि भारतीय चिकित्सा प्रणाली और होम्योपैथी के लिए एक मेडिकल अपीलीय ट्रिब्यूनल की स्थापना की जाए। इसके चेयरपर्सन के तौर पर सर्वोच्च न्यायालय का एक वर्तमान या पूर्व न्यायाधीश अथवा उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश होगा। इसके अतिरिक्त इसके चार सदस्य होंगे (जिन्हें मेडिकल प्रोफेशन और शिक्षा, भारतीय चिकित्सा प्रणाली, होम्योपैथी और स्वास्थ्य प्रशासन की विशेष जानकारी हो)। एनसीएच के फैसले केंद्र सरकार के स्थान पर इस निकाय के अपीलीय क्षेत्राधिकार में आएंगे।
     
  • फीस का रेगुलेशनकमिटी ने कहा कि राज्यों में यह मौजूदा प्रक्रिया है कि वह निजी मेडिकल कॉलेजों की फीस को रेगुलेट करते हैं। यह स्थानीय कारकों, आरक्षण कोटा और संबंधित राज्यों के अन्य मुद्दों पर निर्भर करता है। हालांकि बिल में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि होम्योपैथी कॉलेजों की फीस का रेगुलेशन किया जाए। रेगुलेशन के अभाव में निजी मेडिकल कॉलेज अत्यधिक फीस वसूल सकते हैं। इसलिए कमिटी ने सुझाव दिया कि निजी मेडिकल कॉलेजों और मानद विश्वविद्यालयों की कम से कम 50सीटों के लिए फीस को रेगुलेट किया जाए।
     
  • सलाहकार परिषद: बिल के अंतर्गत केंद्र सरकार होम्योपैथी के लिए एक सलाहकार परिषद बना सकती है। इस परिषद के जरिए राज्य/केंद्र शासित प्रदेश एनसीएच के समक्ष अपने विचार और चिंताएं प्रस्तुत कर सकते हैं। कमिटी ने कहा कि सलाहकार परिषद में राज्य चिकित्सा परिषदों का कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। इसलिए उसने सुझाव दिया कि राज्य चिकित्सा परिषदों के निर्वाचित सदस्यों का प्रतिनिधित्व करने का कोई प्रावधान होना चाहिए। इसके अतिरिक्त सलाहकार परिषद में किसी सामान्य विश्वविद्यालय के स्थान पर मान्यता प्राप्त होम्योपैथी कॉलेज के वाइस चांसलर शामिल होने चाहिए। 
     
  • शिक्षकों की परीक्षाबिल में यह प्रस्ताव है कि होम्योपैथी के शिक्षण को पेशे के तौर पर अपनाने वाले पोस्ट ग्रैजुएट विद्यार्थियों को नेशनल टीचर्स एलिजिबिलिटी टेस्ट पास करना होगा। हालांकि कमिटी ने कहा कि यह उन शिक्षकों पर लागू नहीं होता, जिनकी नियुक्ति बिल के लागू होने से पहले हो गई है। कमिटी ने यह भी कहा कि ऐसे बहुत से शिक्षक हैं जिनके पास पोस्ट ग्रैजुएट डिग्री नहीं है लेकिन वे इस शिक्षा प्रणाली का हिस्सा हैं। ऐसे शिक्षकों के लिए प्रशिक्षण पाठ्यक्रम का प्रावधान होना चाहिए जिसके बाद न्यूनतम क्वालिफाइंग टेस्ट हो। इससे यह सुनिश्चित होगा कि उनका ज्ञान व्यापक और अपडेटेड हो गया है।

 

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