मंत्रालय: 
कॉरपोरेट मामले

बिल की मुख्‍य विशेषताएं

  • बिल कंपनियों की संरचना, उनके द्वारा सूचनाओं का खुलासा करने और नियमों के अनुपालन के संबंध में कंपनी एक्ट, 2013 में संशोधन करता है।
     
  • एक्ट उन इंटरमीडियरी कंपनियों की संख्या को सीमित करता है जिनके जरिए कंपनी में निवेश किए जा सकते हैं। इसी प्रकार एक्ट किसी कंपनी की सबसिडियरी कंपनियों की लेयर्स की संख्या सीमित करता है। बिल इन दोनों सीमाओं को हटाता है।
     
  • एक्ट में कंपनी के शेयरों में बेनेफिशियल इंटरेस्ट रखने वाले व्यक्ति से इस संबंध में घोषणा करने की अपेक्षा की गई है। बिल में यह अपेक्षा भी की गई है कि कंपनी में बेनेफिशियल नियंत्रण (25% से अधिक) रखने वाला व्यक्ति समूह इंटरेस्ट की घोषणा करे।
     
  • एक्ट के तहत कंपनी को उन व्यक्तियों को अलग से ऑफर लेटर देना होता है जिन्हें शेयर्स का निजी ऑफर दिया जाता है। बिल ऑफर लेटर की शर्त हटाता है लेकिन रिटर्न ऑफ एलॉटमेंट के बारे में रजिस्ट्रार को अधिसूचित करने का प्रावधान बरकरार रखता है।
     
  • एक्ट अर्ध न्यायिक ट्रिब्यूनल में संयुक्त सचिव स्तर के सदस्यों की नियुक्ति को मंजूरी देता है। बिल के तहत तकनीकी सदस्य कम से कम अवर सचिव स्तर क होन चाहिए।

प्रमुख मुद्दे और विश्‍लेषण

  • बिल सबसिडियरीज और इंटरमीडियरीज की लेयर्स की सीमा हटाता है। यह कंपनी कानून समितियों (सीएलसी) के सुझावों के अनुरूप है जिसमें कहा गया है कि सीमाएं निर्धारित करने से कंपनी की संरचना और उसकी फंड उगाही की क्षमता पर असर हो सकता है।
     
  • बिल अनुमति देता है कि एक स्वतंत्र निदेशक किसी कंपनी के साथ ऐसे वित्तीय संबंध रख सकता है जोकि उसकी कुल आय का 10% तक हो सकता है। सीएलसी ने इसका यह तर्क दिया है कि मामूली लेनदेन से ऐसे निदेशकों की स्वतंत्रता प्रभावित नहीं होगी।
     
  • सीएलसी के कुछ सुझावों को बिल में शामिल नहीं किया गया है। इनमें निम्नलिखित से संबंधित मुद्दे शामिल हैं : (i) निदेशकों के लिए आवास की शर्तें, और (ii) डॉरमेंट कंपनियों के लिए अनुपालन की शर्तें।
  • बिल निम्नलिखित प्रावधानों में संशोधन का प्रस्ताव रखता है : (i) तकनीकी सदस्यों की क्वालिफिकेशन, और (ii) राष्ट्रीय कंपनी कानून ट्रिब्यूनल और राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय ट्रिब्यूनल की सिलेक्शन कमिटी का संघटन। संशोधन इन प्रावधानों को 2015 के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के अनुकूल बनाते हैं।

भाग क : बिल की मुख्य विशेषताएं

संदर्भ

कंपनी एक्ट, 2013 सार्वजनिक और निजी कंपनियों के संस्थापन और कामकाज को रेगुलेट करता है। 2013 का एक्ट 1 अप्रैल, 2014 से लागू हुआ और इसने कंपनी एक्ट, 1956 का स्थान लिया। लेकिन 2013 के एक्ट के अलग-अलग सेक्शंस अलग-अलग समय पर अधिसूचित किए गए और इनमें से कुछ अभी अधिसूचित होने बाकी हैं।

2014 से अनेक कंपनियों ने 2013 के एक्ट के कार्यान्वयन से संबंधित चुनौतियों की शिकायत की है।[1]  इनमें सार्वजनिक और निजी कंपनियों के लिए अनुपालन से संबंधित शर्तें और सामान्य एकाउंटिंग मानकों के साथ विसंगतियों से संबंधित मुद्दे शामिल हैं। सार्वजनिक और निजी कंपनियों की स्थापना के मानदंडों और ऑडिटरों द्वारा फ्रॉड की सूचना देने से संबंधित चुनौतियों को संबोधित करने के लिए 2015  में एक्ट में संशोधन किया गया।[2]  जून 2015 में सरकार ने कंपनी कानून कमिटी का गठन किया ताकि 2013 के एक्ट के कार्यान्वयन से संबंधित मुद्दों की जांच की जा सके। कमिटी ने फरवरी 2016 में अपनी रिपोर्ट सौंपी।12015 में सुप्रीम कोर्ट ने 2013 के एक्ट के तहत गठित अर्ध न्यायिक ट्रिब्यूनलों से संबंधित कुछ प्रावधानों को अमान्य कर दिया। [3] 

मार्च 2016 में लोकसभा में कंपनी (संशोधन) बिल, 2016 को प्रस्तुत किया गया। यह बिल मुख्य रूप से कंपनी कानून कमिटी के सुझावों पर आधारित है।[4] इसके बाद यह बिल जांच के लिए वित्त संबंधी स्टैंडिंग कमिटी के पास भेज दिया गया। 

प्रमुख विशेषताएं

बिल कंपनी एक्ट, 2013 में संशोधन करता है। तालिका 1 में 2013 के एक्ट और 2016 के बिल के परिवर्तनों के बीच तुलना है।

तालिका 1: 2013 के एक्ट के प्रावधानों और 2016 के संशोधनों में प्रस्तावित परिवर्तनों के बीच तुलना:

प्रमुख विशेषताएं

कंपनी एक्ट, 2013

कंपनी (संशोधन) बिल, 2016

कंपनी का ज्ञापन [इसमें कंपनी के विवरण, उसके लक्ष्य, शेयरहोल्डरों से संबंधित जानकारी, इत्यादि होती है।] (सेक्शन 4)

·     ज्ञापन में कंपनी को निगमित करने के उद्देश्य और अन्य संबंधित विषय स्पष्ट होने चाहिए।

·     ज्ञापन में सामान्य विषय शामिल हो सकते हैं जिनमें कहा गया हो कि कंपनी किसी वैध कार्य या क्रियाकलाप या व्यापार में संलग्न हो सकती है।

·     अगर ज्ञापन में विशिष्ट उद्देश्य दिए गए हैं तो कंपनी उन उद्देश्यों से हटकर कोई दूसरा कार्य नहीं कर सकती।

निजी प्लेसमेंट [पब्लिक ऑफर की बजाय चुनिंदा व्यक्ति समूह को कंपनी द्वारा सिक्योरिटी का ऑफर देना।] (सेक्शन 42)

·     निजी व्यक्तियों को अलग से ऑफर लेटर दिए जाएं। ऐसे ऑफर्स के रिकॉर्ड 30 दिनों में रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज (आरओसी) में फाइल किए जाने चाहिए।

·     सिक्योरिटीज के आवंटन के बाद कंपनी को रिटर्न ऑफ एलॉटमेंट को आरओसी में फाइल करना चाहिए।

·     अलग से ऑफर लेटर जारी करने और आरओसी में ऑफर को रिकॉर्ड करने का प्रावधान हटाया गया है।

·     रिटर्न ऑफ एलॉटमेंट को आरओसी में फाइल करने का प्रावधान बहाल है।

फॉरवर्ड डीलिंग  [कंपनी की सिक्योरिटीज को भविष्य की तारीख के लिए खरीदना।] (सेक्शन 194)

इनसाइडर ट्रेडिंग [कंपनी की अंदरूनी जानकारी के साथ सार्वजनिक स्तर पर स्टॉक्स की ट्रेडिंग।] (सेक्शन 195)

·     निदेशक या मुख्य प्रबंधकीय कर्मियों (केएमपीएस) द्वारा सिक्योरिटीज की फॉरवर्ड डीलिंग को प्रतिबंधित करता है।

·     निदेशक और केएमपीएस सहित कंपनी के सभी व्यक्तियों द्वारा इनसाइडर ट्रेडिंग को प्रतिबंधित करता है।

·     फॉरवर्ड डीलिंग और इनसाइडर ट्रेडिंग से संबंधित सभी प्रावधानों को हटाता है।

[ये सेबी (इनसाइडर ट्रेडिंग पर प्रतिबंध) रेगुलेशन, 2015 के तहत रेगुलेटेड हैं।[5]]

लेयर्स के जरिए निवेश पर कैप (सेक्शन 186)

·     कंपनी में दो से अधिक निवेश कंपनियों की लेयर्स के जरिए निवेश नहीं किया जा सकता।

·     निवेश कंपनियों की लेयर्स की संख्या सीमा को खत्म करता है।

सबसिडियरी कंपनियों की लेयर्स पर कैप (सेक्शन 2 (87))

·     केंद्र सरकार को किसी कंपनी की सबसिडियरीज की लेयर्स पर कैप लगाने की अनुमति देता है।

·     किसी कंपनी की सबसिडियरी कंपनियों की लेयर्स की संख्या सीमा को खत्म करता है।

स्वतंत्र निदेशक

(सेक्शन 149 (6))

·     स्वतंत्र निदेशकों के कंपनी के साथ कोई मौद्रिक (आर्थिक) संबंध नहीं होंगे।

·     स्वतंत्र निदेशक किसी कंपनी के साथ ऐसे वित्तीय संबंध रख सकता है जो उसकी कुल आय का 10% तक हो। इस राशि को केंद्र सरकार परिवर्तित कर सकती है।

बेनेफिशियल इंटरेस्ट [किसी शेयर से लाभ हासिल करने का अधिकार, जब स्वामित्व शेयरधारक या किसी अन्य के पास होता है।] (सेक्शन 89)

·     किसी कंपनी के शेयरों में बेनेफिशियल इंटरेस्ट रखने वाले व्यक्ति को इस संबंध में घोषणा करनी होगी।

·     बेनेफिशियल इंटरेस्ट को स्पष्ट नहीं किया गया है।

 

·     शेयर में बेनेफिशियल इंटरेस्ट में शामिल है कि उन शेयरों के संबंध में (i) सभी अधिकारों का प्रयोग करने का अधिकार होना, या (ii) लाभांश हासिल करना।

महत्वपूर्ण बेनेफिशियल इंटरेस्ट (सेक्शन 90)

·     महत्वपूर्ण बेनेफिशियल इंटरेस्ट से संबंधित कोई प्रावधान नहीं है।

·     प्रावधान में यह जोड़ता है कि कंपनी के शेयरों में 25% से अधिक का बेनेफिशियल इंटरेस्ट रखने वाले (अकेले या किसी के साथ) को इस बारे में घोषणा करनी होगी।

सबसिडियरी कंपनी (सेक्शन 2 (87))

 

एसोसिएट कंपनी (सेक्शन 2 (6))

·     सबसिडियरी कंपनी वह कंपनी होती है जिसमें पेरेंट कंपनी के 50% से अधिक शेयर होते हैं (इक्विटी और प्रेफरेंशियल शेयरधारक सहित)।

·     एसोसिएट कंपनी वह कंपनी होती है जिसमें दूसरी कंपनी के कम से कम 20% शेयर होते हैं (इक्विटी और प्रेफरेंशियल शेयरधारक सहित)।

·     शेयर की जगह वोटिंग पावर शब्द का इस्तेमाल किया गया है। प्रेफरेंशियल शेयरधारक, जिन्हें वोटिंग का अधिकार नहीं होता, को शामिल नहीं किया गया है।

कंपनियों द्वारा डिपॉजिट की मंजूरी (सेक्शन 73 (2) (डी), ())

·     कोई कंपनी अपने सदस्यों से डिपॉजिट मंजूर करती है तो उसे सिक्योरिटी और पुनर्भुगतान से संबंधित अनेक शर्तों को पूरा करना होता है, जिनमें शामिल हैं:

·       डिपॉजिट बीमा प्रदान करना;

·       यह सर्टिफाई करना कि कंपनी ने पुनर्भुगतान या ऐसे डिपॉजिट पर इंटरेस्ट के भुगतान में किसी प्रकार का डिफॉल्ट नहीं किया है।

·     डिपॉजिट बीमा प्रदान करने की शर्त को हटाता है।

·     ऐसी कंपनियों को डिपॉजिट मंजूर करने की अनुमति देता है जिनके पिछले डिफॉल्ट को पांच साल हो गए हों या जिन्होंने पिछले डिफॉल्ट का देय चुका दिया गया हो।

प्रबंधकीय पारिश्रमिक

(सेक्शन 197)

·     प्रबंधकीय पारिश्रमिक निर्धारित सीमा से अधिक हो तो केंद्र सरकार और शेयरधारकों से मंजूरी लेनी होगी।

·     केंद्र सरकार से मंजूरी लेने की शर्त हटाता है।

निदेशकों को ऋण(सेक्शन 185)

·     किसी कंपनी को यह अनुमति नहीं है कि वह अपने निदेशक को ऋण दे या ऐसे किसी व्यक्ति को ऋण दे जिसे ऋण दिलवाने के लिए निदेशक इच्छुक है।

·     कंपनियों को ऐसे व्यक्ति को ऋण देने की अनुमति दी गई है जिसे ऋण दिलवाने के लिए निदेशक इच्छुक है, अगर कंपनी इस संबंध में विशेष प्रस्ताव पारित करती है।

फ्रॉड के संबंध में ऑडिटरों और ऑडिट फर्मों का दायित्व

(सेक्शन 147 (5))

·     अगर यह साबित हो जाता है कि ऑडिट फर्म के पार्टनर ने कंपनी के ऑडिट के संबंध में किसी फ्रॉड में हिस्सेदारी की है तो पार्टनर और फर्म संयुक्त और अलग-अलग दीवानी और आपराधिक दंड का भागी होंगे।

·     एक प्रावधान और जोड़ता है जिसमें कहा गया है कि आपराधिक दंड की स्थिति में केवल फ्रॉड करने वाला पार्टनर ही दंड का भागी होगा। ऑडिट फर्म केवल जुर्माने के भुगतान की भागी होगी।

कंपनियों की वार्षिक आम बैठक (एजीएम)

(सेक्शन 96 (2))

·     वार्षिक आम बैठक (एजीएम) कंपनी के पंजीकृत कार्यालय में या उस स्थान पर, जहां कंपनी का पंजीकृत कार्यालय स्थित है, आयोजित की जाएगी।

·     एक प्रावधान और जोड़ता है जिसमें किसी गैर सूचीबद्ध (अनलिस्टेड) कंपनी अपनी एजीएम को भारत में किसी भी स्थान पर आयोजित कर सकती है, अगर सदस्यों से अग्रिम सहमति हासिल कर ली हो।

राष्ट्रीय कंपनी कानून ट्रिब्यूनल के तकनीकी सदस्यों की क्वालिफिकेशन [चार्टर्ड एकाउंटेंट, कॉस्ट एकाउंटेंट या कंपनी सेक्रेटरी के रूप में 15 वर्ष का अनुभव प्राप्त व्यक्ति के अतिरिक्त] (सेक्शन 409 (3))

·     15 वर्ष तक इंडियन कॉरपोरेट लॉ या लीगल सर्विस का सदस्य जिसका वेतनमान तीन वर्ष तक संयुक्त सचिव के वेतनमान के बराबर रहा हो।

·     विशेषज्ञ: विधि, एकाउंटेंसी, श्रम और प्रबंधन, औद्योगिक वित्त इत्यादि से संबंधित विषयों में 15 वर्ष का अनुभव।

·     अपेक्षा की गई है कि सदस्य सचिव या अवर सचिव पद पर आसीन होने चाहिए।

·     विशेषज्ञता के क्षेत्र को औद्योगिक वित्त, प्रबंधन या रीकंस्ट्रक्शन, निवेश और एकाउंटेंसी तक सीमित किया गया है।

राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय ट्रिब्यूनल के तकनीकी सदस्यों की क्वालिफिकेशन (सेक्शन 411 (3))

·     विशेषज्ञ: विधि, एकाउंटेंसी, श्रम और प्रबंधन, औद्योगिक वित्त इत्यादि से संबंधित विषयों में 25 वर्ष का अनुभव।

·     विशेषज्ञता के क्षेत्र को औद्योगिक वित्त, प्रबंधन या रीकंस्ट्रक्शन, निवेश और एकाउंटेंसी तक सीमित किया गया है।

सेलेक्शन कमिटी [एनसीएलटी और एनसीएलएटी के तकनीकी सदस्यों की नियुक्ति के लिए] (सेक्शन 412)

·     सेलेक्शन कमिटी में पांच सदस्यों को शामिल किया जाएगा: (i) भारत के मुख्य न्यायाधीश (चेयरपर्सन), (ii) सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीश या उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, (iii) कॉरपोरेट मामलों, वित्त और विधि मंत्रालयों के सचिव।

·     वित्त मंत्रालय के सचिव को कमिटी की सदस्यता से हटाया गया

·     टाई होने की स्थिति में सेलेक्शन कमिटी के चेयरपर्सन का कास्टिंग वोट होगा।

Sources: The Companies Act, 2013, The Companies (Amendment) Bill, 2016; PRS

 

भाग ख:  प्रमुख मुद्दे और विश्‍लेषण

2013 के एक्ट में किए गए कुछ संशोधनों का तर्क

सबसिडियरी और निवेश कंपनियों की लेयर्स के जरिए निवेश

2013 का एक्ट कंपनियों को प्रतिबंधित करती है कि वे इंटरमीडियरी कंपनियों की दो से अधिक लेयर्स के जरिए किसी कंपनी में निवेश नहीं कर सकतीं। इसके अतिरिक्त केंद्र सरकार किसी होल्डिंग कंपनी में सबसिडियरी कंपनियों की कितनी लेयर्स होंगी, यह निर्धारित कर सकती है। ये प्रावधान निम्नलिखित मुद्दों को संबोधित करने का प्रयास करते हैं : (i) कंपनियों में निवेश के स्रोत का पता लगाना और उनका उपयोग, और (ii) फंड को गलत तरीके से वितरित करने के लिए सबसिडियरी कंपनियों का उपयोग।1  कंपनी कानून कमिटी का सुझाव है कि ऐसी सीमाओं को हटा दिया जाना चाहिए क्योंकि इससे कंपनी की संरचना और फंड जुटाने की उसकी क्षमता पर असर हो सकता है। सीएलसी का कहना था कि 2013 के एक्ट के कुछ प्रावधान कंपनी और उसकी सबसिडियरीज के कामकाज में पारदर्शिता सुनिश्चित करते हैं। इनमें वे प्रावधान शामिल हैं जिनमें निम्न अपेक्षित है : i) होल्डिंग कंपनी और उसकी सबसिडियरी कंपनियों के वित्तीय वक्तव्यों का समेकन (कंसॉलिडेशन), और ii) कंपनी में शेयरों के बेनेफिशियल स्वामित्व का खुलासा।1सबसिडियरी कंपनियों की लेयर्स की सीमा पर लगी कैप को हटाते हुए 2016 का बिल सीएलसी के सुझावों के अनुरूप है।

स्वतंत्र निदेशक की नियुक्ति, जिसका कंपनी के साथ अधिकतम 10% का लेनदेन हो

2013 के एक्ट में स्वतंत्र निदेशकों को कंपनी के साथ आर्थिक संबंध रखने की अनुमति नहीं दी गई थी, सिवाय उनके पारिश्रमिक के। 2005 में जे.जे.ईरानी कमिटी ने सुझाव दिया कि एक स्वतंत्र निदेशक कंपनी के साथ अपने पारिश्रमिक के अधिकतम 10% तक का आर्थिक संबंध रख सकता है।[6]  सीएलसी ने इसका यह तर्क दिया कि मामूली लेनदेन से ऐसे निदेशकों की स्वतंत्रता प्रभावित नहीं हो सकती। 1  2016 के बिल में इस बात की अनुमति दी गई है कि स्वतंत्र निदेशक कंपनी के साथ अपनी कुल आय के अधिकतम 10% तक का आर्थिक संबंध रख सकते हैं। इस राशि को केंद्र सरकार द्वारा परिवर्तित किया जा सकता है।

कंपनी कानून कमिटी के सुझावों को मंजूर नहीं किया गया

सीएलसी के निम्नलिखित सुझावों को बिल में शामिल नहीं किया गया है: (i) निदेशकों के लिए आवास की शर्तें, और (ii) डॉरमेंट कंपनियों के लिए अनुपालन की शर्तें। हम इन मुद्दों को स्पष्ट कर रहे हैं।

कंपनी के निदेशक को नियुक्ति के लिए भारत में एक वर्ष तक आवास करना होगा

2013 के एक्ट के तहत केवल भारत का निवासी कंपनी का पूर्णकालिक निदेशक बन सकता है। निवासी की परिभाषा है, कोई ऐसा व्यक्ति जिसने निदेशक के रूप में नियुक्त होने से पहले भारत में निरंतर 12 महीने तक निवास किया हो। इससे कंपनियां विदेशों में निवास करने वाले प्रतिभाशाली व्यक्तियों को (भले ही वे भारतीय नागरिक हों) पूर्णकालिक निदेशक के रूप में कार्य करने के लिए भारत आने हेतु आकर्षित नहीं कर पाएंगी क्योंकि वे निरंतर 12 महीने तक भारत में निवास करने की शर्त पूरी नहीं कर सकते। सीएलसी ने सुझाव दिया था कि विदेशी नागरिकों के लिए निवास की इस शर्त को हटा दिया जाना चाहिए। इससे विश्वव्यापी प्रतिभा तक भारतीय कंपनियों की पहुंच संभव होगी और विभिन्न देशों के पेशेवर व्यक्तियों की गतिशीलता में वृद्धि होगी।1

डॉरमेंट कंपनियों द्वारा ऑडिट कमिटी का गठन

2013 के एक्ट के तहत जिस कंपनी ने पिछले दो वर्षों से कोई लेनदेन नहीं किया है, वह डॉरमेंट कंपनी का दर्जा हासिल करने के लिए आवेदन कर सकती है। 2013 का एक्ट ऐसी डॉरमेंट कंपनियों को (i) ऑडिट कमिटी, (ii) नॉमिनेशन एवं रीमुनरेशन कमिटी और (iii) स्टेकहोल्डर रिलेशनशिप कमिटी जैसी कमिटियां गठित करने की शर्त से छूट नहीं देतीं। सीएलसी का सुझाव है कि डॉरमेंट कंपनियों को ऑडिट कमिटी गठित करने से छूट दी जाए क्योंकि संभव है कि वे व्यावसायिक गतिविधियों का संचालन नहीं करती हों या उनमें कोई कर्मचारी न हों। 1  

सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुरूप एनसीएलटी और एनसीएलएटी का गठन

2013 का एक्ट- कंपनी एक्ट, 2013 से संबंधित विवादों की सुनवाई हेतु राष्ट्रीय कंपनी कानून ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) का गठन करता है। एनसीएलटी के निर्णयों के खिलाफ राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय ट्रिब्यूनल (एनसीएलएटी) में अपील की जाएगी। 2015 में सर्वोच्च न्यायालय ने ट्रिब्यूनलों की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा। किंतु न्यायालय ने i) एनसीएलटी के तकनीकी सदस्यों की क्वालिफिकेशन और ii) एनसीएलटी एवं एनसीएलएटी के तकनीकी सदस्यों की नियुक्ति हेतु सेलेक्शन कमिटी के संघटन संबंधी कुछ प्रावधानों को अवैध माना। बिल इन प्रावधानों को सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुरूप लाने के लिए परिवर्तित करता है। 3

 

[1]The Companies Law Committee Report, Ministry of Corporate Affairs, February, 2016, http://www.mca.gov.in/Ministry/pdf/Report_Companies_Law_Committee_01022016.pdf.

[2]The Companies (Amendment) Act, 2015, http://www.prsindia.org/uploads/media/Company/Companies%20Act,%202015.pdf.

[3]Madras Bar Association v. Union of India, [(2015) 8 SCC 583].

[4]Statement of Objects and Reasons, The Companies (Amendment) Bill, 2016.

[5]Securities and Exchange Board of India, (Prohibition of Insider Trading) Regulations, 2015.

[6]Expert Committee on Company Law (J.J. Irani Committee), Ministry for Company Affairs, May 2005, para 11.1.

 

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