मंत्रालय: 
श्रम
  • श्रम और रोजगार मंत्री बंडारू दत्तात्रेय ने 10 अगस्त, 2016 को लोकसभा में कारखाना (संशोधन) बिल, 2016 पेश किया।
     
  • बिल कारखाना एक्ट, 1948 में संशोधन करता है। यह एक्ट कारखाना श्रमिकों की सुरक्षा, स्वास्थ्य और कल्याण जैसे विषयों को रेगुलेट करता है। बिल ओवरटाइम के घंटों से संबंधित प्रावधानों को संशोधित करता है।
     
  • विभिन्न विषयों पर नियम बनाने का अधिकार : एक्ट राज्य सरकार को विभिन्न विषयों के संबंध में नियम बनाने की अनुमति देता है, जैसे दोहरा रोजगार, कारखाने के रजिस्टर में वयस्क श्रमिकों के विवरणों को शामिल करना, विशेष किस्म के काम करने वाले श्रमिकों को एक्ट के प्रावधानों से मुक्त करने की शर्तें इत्यादि। बिल केंद्र सरकार को भी ऐसे नियम बनाने का अधिकार देता है।
     
  • श्रमिकों को प्रावधानों से मुक्त करने से संबंधित नियम बनाने का अधिकार: एक्ट के तहत राज्य सरकार निम्न के संबंध में नियम बना सकती है : (i) कारखाने में प्रबंधकीय या कॉन्फिडेंशियल पद पर आसीन व्यक्ति की परिभाषा और (ii) कुछ किस्म के वयस्क श्रमिकों (जैसे तत्काल मरम्मत का काम करने वाले श्रमिक) पर काम के निश्चित घंटों, विश्राम की अवधि इत्यादि से संबंधित प्रावधानों के लागू न होने की शर्त। बिल ऐसे नियम बनाने का अधिकार, केंद्र और राज्य सरकारों, दोनों को देता है।
     
  • एक्ट के तहत ऐसे नियम पांच वर्ष से अधिक लागू नहीं होंगे। बिल इस प्रावधान में परिवर्तन करता है और कहता है कि बिल के अमल में आने के बाद नियमों के संबंध में पांच साल की सीमा लागू नहीं होगी।
     
  • एक तिमाही के लिए ओवरटाइम के घंटे : एक्ट राज्य सरकार को ओवरटाइम के घंटों को रेगुलेट करने के संबंध में नियम बनाने की अनुमति देता है। लेकिन एक तिमाही में ओवरटाइम के घंटों की कुल संख्या 50 से अधिक नहीं होनी चाहिए। बिल इस समय सीमा को 100 घंटे करता है। इस संबंध में भी नियम केंद्र सरकार द्वारा बनाए जा सकते हैं।
     
  • अगर कारखाने में काम का दबाव हो तो ओवरटाइम : एक्ट कहता है कि अगर किसी कारखाने में काम का अत्यधिक दबाव है तो राज्य सरकार वयस्क श्रमिकों को कारखाने में ओवरटाइम काम करने की अनुमति दे सकती है। लेकिन एक तिमाही में ओवरटाइम के घंटे 75 से ज्यादा नहीं होने चाहिए। बिल केंद्र और राज्य सरकारों को इस सीमा को बढ़ाकर 115 करने की अनुमति देता है।
     
  • जनहित में ओवरटाइम : बिल में एक प्रावधान किया गया है जोकि केंद्र या राज्य सरकार को 115 घंटे की समय सीमा को 125 करने की अनुमति देता है। ऐसा निम्नलिखित परिस्थितियों में किया जा सकता है (i) कारखाने में काम का अत्यधिक दबाव होने पर और (ii) जनहित में।

 

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