मंत्रालय: 
विधि एवं न्याय
  • विधि और न्याय मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने 22 दिसंबर, 2017 को लोकसभा में विशिष्ट राहत (संशोधन) बिल, 2017 पेश किया। बिल विशिष्ट राहत एक्ट, 1963 में संशोधन का प्रयास करता है। यह एक्ट उन पक्षकारों को उपलब्ध उपायों को निर्धारित करता है जिनके अनुबंध संबंधी या नागरिक अधिकारों का उल्लंघन किया गया हो। एक्ट उस पक्ष के लिए दो मुख्य उपायों को निर्धारित करता है जिसके अनुबंध का पालन (परफॉर्म) नहीं किया गया है। ये उपाय हैं : (i) संबंधित पक्ष न्यायालय से कह सकता है कि वह अनुबंध का पालन करवाने (स्पेसिफिक परफॉरमेंस) को बाध्य करे या (ii) संबंधित पक्ष परफॉरमेंस के स्थान पर मौद्रिक मुआवजे की मांग कर सकता है।
     
  • स्पेसिफिक परफॉरमेंस : एक्ट के अंतर्गत स्पेसिफिक परफॉरमेंस एक सीमित अधिकार है जिसे न्यायालय द्वारा अपने विवेकाधिकार के आधार पर निम्नलिखित स्थितियों में दिया जा सकता है : (i) जब मौद्रिक मुआवजा पर्याप्त न हो, अथवा (ii) जब मौद्रिक मुआवजा आसानी से सुनिश्चित न किया जा सके। बिल इन शर्तों को हटाता है और एक सामान्य नियम के रूप में न्यायालयों द्वारा स्पेसिफिक परफॉरमेंस की अनुमति देता है।
     
  • एक्ट में ऐसे व्यक्तियों की सूची है (i) जो स्पेसिफिक परफॉरमेंस की मांग कर सकते हैं और (ii) जिनके खिलाफ स्पेसिफिक परफॉरमेंस की मांग की जा सकती है। इस सूची में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) अनुबंध का एक पक्ष अथवा (ii) दो मौजूदा कंपनियों के एकीकरण से बनने वाली कंपनी। बिल पक्षकारों की इस सूची में एक नई एंटिटी को जोड़ता है। अब इसमें दो मौजूदा लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप (एलएलपी) के एकीकरण से बनने वाली एलएलपी भी शामिल है, जिनमें से एक ने एकीकरण से पहले कोई अनुबंध किया हो।
     
  • सबस्टिट्यूटेड परफॉरमेंस : बिल प्रभावित पक्ष (यानी जिसके अनुबंध का पालन अन्य पक्ष द्वारा न किया गया हो) को यह विकल्प देता है कि वह तीसरे पक्ष (थर्ड पार्टी) या अपनी खुद की एजेंसी द्वारा अनुबंध के पालन की व्यवस्था कर सके (सबस्टिट्यूटेड परफॉरमेंस)। प्रभावित पक्ष को ऐसी सबस्टिट्यूटेड परफॉरमेंस को हासिल करने से पहले कम से कम 30 दिन का लिखित नोटिस देना होगा। ऐसी परफॉरमेंस से जुड़ी लागत को अन्य पक्ष से प्राप्त किया जा सकता है। सबस्टिट्यूटेड परफॉरमेंस हासिल करने के बाद स्पेसिफिक परफॉरमेंस का दावा नहीं किया जा सकता।
     
  • निषेधाज्ञा (इंजंक्शन) : एक्ट के अंतर्गत न्यायालय पक्षकारों को निवारक राहत (प्रिवेंटिव रिलीफ) (निषेधाज्ञा) दे सकते हैं। एक्ट ऐसी परिस्थितियां प्रदान करता है जिसमें निषेधाज्ञा नहीं दी जा सकती, उदाहरण के लिए किसी पक्ष को आपराधिक मामले में शिकायत दर्ज कराने से रोकना। बिल इसके अतिरिक्त इंफ्रास्ट्रक्चर प्रॉजेक्ट्स से संबंधित अनुबंधों में निषेधाज्ञा देने से न्यायालयों को रोकने का प्रयास करता है, अगर निषेधाज्ञा के कारण प्रॉजेक्ट के पूरा होने में रुकावट पैदा हो या उसमें विलंब हो।
     
  • इन प्रॉजेक्ट्स को निम्नलिखित इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टरों और सब-सेक्टरों में वर्गीकृत किया जा सकता है: (i) परिवहन, (ii) ऊर्जा, (iii) पानी और सफाई व्यवस्था, (iv) संचार (जैसे दूर संचार) और (v) सामाजिक और कमर्शियल इंफ्रास्ट्रक्चर (जैसे सस्ते आवास)। केंद्र सरकार एक अधिसूचना के जरिए इस सूची में संशोधन कर सकती है।
     
  • विशेष न्यायालय : बिल के अंतर्गत कुछ दीवानी न्यायालयों (सिविल कोर्ट्स) को राज्य सरकार द्वारा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की सलाह से विशेष न्यायालयों के रूप में नामित किया जा सकता है। ये न्यायालय इंफ्रास्ट्रक्चर प्रॉजेक्ट्स के मामलों से निपटेंगे। प्रतिवादी द्वारा सम्मन प्राप्त करने की तिथि से 12 महीने के भीतर ऐसे मामलों को निपटाया जाना चाहिए। न्यायालय द्वारा इस अवधि को और छह महीने के लिए बढ़ाया जा सकता है।
     
  • कब्जे की बहाली : एक्ट निम्नलिखित व्यक्तियों को अचल संपत्ति के कब्जे की बहाली के लिए सूट फाइल करने की अनुमति देता है : (i) कब्जे से बाहर किया गया व्यक्ति (बेदखल व्यक्ति), और (ii) बेदखल किए गए व्यक्ति के जरिए दावा करने वाला व्यक्ति। बिल इसके अतिरिक्त ऐसे किसी व्यक्ति को भी कब्जे की बहाली के लिए सूट फाइल करने की अनुमति देता है जिसके जरिए अचल संपत्ति पर बेदखल व्यक्ति का कब्जा था।
     
  • विशेषज्ञ : बिल उन सूट्स में तकनीकी विशेषज्ञों को संलग्न करने का नया प्रावधान जोड़ता है, जिनमें विशेषज्ञों की राय की जरूरत हो। न्यायालय द्वारा इन विशेषज्ञों के भुगतान की शर्तें निर्धारित की जाएंगी। इस भुगतान को दोनों पक्षों द्वारा वहन किया जाएगा।

 

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