In recent public discourse over lobbying, two issues that have underscored the debate are:
There is a need to build linkages between citizens and the policy making process, especially by strengthening scrutiny before a Bill is introduced in Parliament. Currently, there is no process established to ensure pre-legislative scrutiny by the citizenry. Other democracies incorporate several measures to enhance public engagement in the pre-legislative process. These include:
There are several instances, in the last few years itself, wherein civil society groups have played an active role in the development of pre-legislative scrutiny in India.
The role of the media and channelising the potential of the internet are other key approaches that need to be explored. Other examples and channels of engagement with the legislative process are illustrated in the PRS Primer on Engaging with Policymakers
17वीं लोकसभा के पहले अविश्वास प्रस्ताव पर आज चर्चा शुरू हुई। अविश्वास प्रस्ताव और विश्वास प्रस्ताव विश्वास मत होते हैं जिनका उपयोग सत्तासीन सरकार के लिए लोकसभा के समर्थन का परीक्षण या प्रदर्शन करने के लिए किया जाता है। संविधान के अनुच्छेद 75(3) में कहा गया है कि सरकार सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी है। इसका मतलब यह है कि सरकार को हमेशा लोकसभा के अधिकांश सदस्यों का समर्थन प्राप्त होना चाहिए। इस समर्थन की जांच के लिए विश्वास मतों यानी ट्रस्ट वोट्स का उपयोग किया जाता है। अगर अधिकांश सदस्य अविश्वास प्रस्ताव का समर्थन करते हैं या विश्वास प्रस्ताव को अस्वीकार कर देते हैं तो सरकार इस्तीफा दे देती है।
अब तक 28 अविश्वास प्रस्तावों (आज जिस पर चर्चा हो रही है, उसके सहित) और 11 विश्वास प्रस्तावों पर चर्चा हो चुकी है। पिछले कुछ वर्षों में ऐसे प्रस्तावों की संख्या कम हो गई है। 1960 के दशक के मध्य और 1970 के दशक के मध्य में अविश्वास प्रस्ताव अधिक देखे गए जबकि 1990 के दशक में विश्वास प्रस्ताव अधिक देखे गए।
रेखाचित्र 1: संसद में विश्वास मत
नोट: *अवधि 5 वर्ष से कम; **6 वर्ष का कार्यकाल।
स्रोत: स्टैटिस्टिकल हैंडबुक 2021, संसदीय कार्य मंत्रालय; पीआरएस।
आज जिस अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा हो रही है, वह 26 जुलाई 2023 को पेश किया गया था। अविश्वास प्रस्ताव कम से कम 50 सदस्यों के समर्थन से पेश किया जाता है। प्रस्ताव पर चर्चा के लिए समय आवंटित करने का अधिकार अध्यक्ष के पास है। प्रक्रिया के नियमों में कहा गया है कि प्रस्ताव पेश होने के 10 दिनों के भीतर चर्चा की जानी चाहिए। इस वर्ष अविश्वास प्रस्ताव पेश होने के 13 कैलेंडर दिनों बाद चर्चा हुई। 26 जुलाई को अविश्वास प्रस्ताव पेश होने के बाद से 12 बिल पेश किए गए हैं और 18 बिल लोकसभा ने पारित किए हैं। इससे पहले चार मौकों पर अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा, प्रस्ताव पेश होने के सात दिन बाद शुरू हुई थी। इन मौकों पर अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा शुरू होने से पहले कई बिल्स और अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर बहस हुई।
रेखाचित्र 2: लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव के समर्थन में खड़े हुए सदस्य
स्रोत: संसद टीवी, लोकसभा, 26 जुलाई, 2023; पीआरएस।
रेखाचित्र 3: अविश्वास प्रस्ताव पेश करने से लेकर चर्चा तक के दिनों की संख्या
नोट: दिनों की संख्या का तात्पर्य कैलेंडर दिनों से है।
स्रोत: स्टैटिस्टिकल हैंडबुक 2021, संसदीय कार्य मंत्रालय; पीआरएस।
अविश्वास प्रस्ताव (आज जिस प्रस्ताव पर चर्चा हो रही है, उसे छोड़कर) पर औसत तीन दिनों में 13 घंटे चर्चा हुई है। चार मौकों पर चर्चा 20 घंटे से अधिक समय तक चली है, सबसे हाल में 2003 में। आज के अविश्वास प्रस्ताव पर कार्य मंत्रणा समिति ने 12 घंटे की चर्चा का समय आवंटित किया था।
चर्चा के बाद प्रस्ताव को मतदान के लिए रखा जाता है। 27 में से 26 अविश्वास प्रस्तावों (आज जिस पर चर्चा हो रही है, उसे छोड़कर) पर मतदान हो चुका है और उन्हें खारिज कर दिया गया है। इसका मतलब यह है कि अविश्वास मत के बाद किसी भी सरकार को कभी इस्तीफा नहीं देना पड़ा है। एक अवसर पर, 1979 में मोरारजी देसाई सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा अनिर्णायक रही। प्रस्ताव पर मतदान होने से पहले उन्होंने इस्तीफा दे दिया। सभी अविश्वास प्रस्तावों में से 50% (28 में से 14) पर 1965 और 1975 के बीच चर्चा की गई। इनमें से 12 इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकारों के खिलाफ थे।
रेखाचित्र 4: अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा की अवधि
नोट: इस रेखाचित्र में 26 जुलाई, 2023 को लाया गया अविश्वास प्रस्ताव शामिल नहीं है।
स्रोत: स्टैटिस्टिकल हैंडबुक 2021, संसदीय कार्य मंत्रालय; पीआरएस।
इसकी तुलना में विश्वास प्रस्तावों का इतिहास अधिक विविध है। चरण सिंह की सरकार में विश्वास प्रदर्शित करने के लिए 1979 में लाए गए पहले प्रस्ताव पर बिल्कुल भी चर्चा नहीं हुई। चर्चा होने से पहले ही प्रधानमंत्री ने इस्तीफा दे दिया। तब से लोकसभा में 11 विश्वास प्रस्तावों पर चर्चा हुई है, जिनमें से नौ 1990 के दशक में हुए थे। इस अवधि के दौरान कई गठबंधन सरकारें बनीं और प्रधानमंत्रियों ने विश्वास प्रस्तावों के माध्यम से अपना बहुमत साबित करने की कोशिश की। इन प्रस्तावों पर दो दिनों में औसतन 12 घंटे तक चर्चा हुई है।
रेखाचित्र 5: विश्वास प्रस्ताव पर चर्चा की अवधि
स्रोत: स्टैटिस्टिकल हैंडबुक 2021, संसदीय कार्य मंत्रालय; पीआरएस।
लोकसभा में जिन 11 विश्वास प्रस्तावों पर चर्चा हुई, उनमें से सात स्वीकार कर लिए गए। तीन मामलों में, सरकारों को इस्तीफा देना पड़ा क्योंकि वे यह साबित नहीं कर सकीं कि उन्हें बहुमत का समर्थन प्राप्त था। 1996 में एक मौके पर प्रस्ताव पर मतदान नहीं कराया गया। इस विश्वास प्रस्ताव पर 11 घंटे की चर्चा के बाद प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने सदन के पटल पर इस्तीफा देने के अपने इरादे की घोषणा की। उन्होंने अपने कार्यकाल के 16 दिन बाद इस्तीफा दे दिया।
1999 में वाजपेयी फिर से प्रधानमंत्री बने और उन्हें एक और विश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा। इस बार इस पर मतदान कराया गया। प्रस्ताव एक वोट के अंतर से गिर गया। लोकसभा के इतिहास में विश्वास मत पर यह सबसे करीबी नतीजा है। अगला निकटतम परिणाम तब था, जब 1993 में पी वी नरसिंह राव की सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव 14 वोटों से गिर गया था। ज्यादातर मामलों में, परिणाम बड़े अंतर से सरकार के पक्ष में रहे हैं।