अध्यादेश का सारांश

इनसॉल्वेंसी और बैंकरप्सी संहिता (संशोधन) अध्यादेश, 2018

  • 6 जून, 2018 को इनसॉल्वेंसी और बैंकरप्सी संहिता (संशोधन) अध्यादेश, 2018 जारी किया गया। अध्यादेश इनसॉल्वेंसी और बैंकरप्सी संहिता, 2016 में संशोधन करता है। संहिता कंपनियों और व्यक्तियों के बीच इनसॉल्वेंसी को रिज़ॉल्व करने के लिए एक समयबद्ध प्रक्रिया प्रदान करती है। इनसॉल्वेंसी वह स्थिति है, जब व्यक्ति या कंपनियां अपना बकाया ऋण नहीं चुका पाते।
     
  • फाइनांशियल क्रेडिटर्स (वित्तीय लेनदार): संहिता स्पष्ट करती है कि फाइनांशियल क्रेडिटर्स ऐसे व्यक्ति होते हैं जिनका वित्तीय ऋण बकाया होता है। इस ऋण में ऐसी कोई भी राशि शामिल है जिसे कमर्शियल स्तर पर उधार लेकर जमा किया गया है। फाइनांशियल क्रेडिटर्स, कमिटी ऑफ क्रेडिटर्स का हिस्सा हैं, जोकि रेज़ोल्यूशन से जुड़े मुख्य फैसले लेने के लिए जिम्मेदार होती है। अध्यादेश स्पष्ट करता है कि किसी रियल एस्टेट प्रॉजेक्ट में एलॉटी एक फाइनांशियल क्रेडिटर होगा। एलॉटी में ऐसे सभी लोग शामिल हैं जिन्हें प्लॉट, अपार्टमेंट या बिल्डिंग एलॉट की गई है, बेची गई है या प्रमोटर (रियल एस्टेट डेवलपर या डेवलपमेंट अथॉरिटी) द्वारा ट्रांसफर की गई है।
     
  • फाइनांशियल क्रेडिटर्स के प्रतिनिधि: अध्यादेश कुछ मामलों में फाइनांशियल क्रेडिटर्स को अधिकृत प्रतिनिधियों को नियुक्त करने की अनुमति देता है जैसे जब ऋण सिक्योरिटी या डिपॉजिट के रूप में हो। क्रेडिटर्स से मिलने वाले पूर्व निर्देशों के अनुसार, ये प्रतिनिधि कमिटी ऑफ क्रेडिटर्स में भाग लेंगे और वोट देंगे। अगर क्रेडिटर पूर्व निर्देश न दे तो प्रतिनिधि वोटिंग के दौरान उपस्थित नहीं होंगे।
     
  • कमिटी ऑफ क्रेडिटर्स की वोटिंग की सीमा: संहिता यह स्पष्ट करती है कि फाइनांशियल क्रेडिटर्स के कम से कम 75% बहुमत के साथ कमिटी ऑफ क्रेडिटर्स अपने सभी फैसले लेगी। अध्यादेश इस सीमा को कम करके 51% करता है। कमिटी के कुछ फैसलों के लिए वोटिंग की सीमा 75% से कम करके 66% की गई है। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं : (i) रेज़ोल्यूशन प्रोफेशनल की नियुक्ति और उनका रिप्लेसमेंट, (ii) रेज़ोल्यूशन प्लान को मंजूरी, और (iii) इनसॉल्वेसी रेज़ोल्यूशन प्रोसेस के दौरान रेज़ोल्यूशन प्रोफेशनल की कुछ कार्रवाइयों को मंजूरी।
     
  • रेज़ोल्यूशन एप्लीकेंट की अयोग्यता: अध्यादेश उस मानदंड में संशोधन करता है जोकि कुछ व्यक्तियों को रेज़ोल्यूशन प्लान सौंपने से प्रतिबंधित करता है। जैसे संहिता ऐसे व्यक्ति को रेज़ोल्यूशन एप्लीकेंट होने से रोकती है जिसे किसी अपराध के लिए दो या उससे अधिक वर्षों के कारावास की सजा हुई है है। अध्यादेश के अंतर्गत यह प्रावधान केवल कुछ खास अपराधों पर लागू होगा और जेल से रिहा होने की तारीख के दो वर्ष बाद लागू नहीं होगा।
     
  • संहिता किसी व्यक्ति को रेज़ोल्यूशन एप्लीकेंट होने से रोकती है, अगर उसके एकाउंट को एक वर्ष से अधिक समय से नॉन परफॉर्मिंग एसेट (एनपीए) के रूप में चिन्हित किया गया है। अध्यादेश प्रावधान करता है कि यह मानदंड लागू नहीं होगा, अगर वह एप्लीकेंट एक फाइनांशियल एंटिटी है और देनदार से संबंधित पक्ष नहीं है (कुछ अपवादों को छोड़कर)। संहिता किसी ऐसे व्यक्ति को भी रेज़ोल्यूशन प्लान सौंपने से प्रतिबंधित करती है जिसने किसी ऐसे व्यक्ति के पक्ष में एनफोर्सेबल गारंटी दी है जो रेज़ोल्यूशन की प्रक्रिया में शामिल डीफॉल्टर का क्रेडिटर है। अध्यादेश इस प्रावधान में संशोधन करता है और स्पष्ट करता है कि यह प्रतिबंध उस स्थिति में लागू होगा, जब क्रेडिटर ने ऐसी गारंटी का इस्तेमाल कर लिया है, फिर भी ऋण नहीं चुकाया है।
     
  • सूक्ष्म, लघु और मध्यम दर्जे के उपक्रमों (एमएसएमईज़) पर संहिता का लागू होना: संहिता में यह प्रावधान है कि एमएसएमईज़ के रेज़ोल्यूशन के लिए आवेदन करने वाले व्यक्तियों पर एनपीएज़ और गारंटरों से संबंधित अयोग्यता के मानदंड लागू नहीं होंगे। केंद्र सरकार जनहित में यह अधिसूचित कर सकती है कि एमएसएमईज़ पर संहिता के कौन से प्रावधान लागू होंगे।
     
  • कॉरपोरेट रेज़ोल्यूशन: अध्यादेश प्रावधान करता है कि इनसॉल्वेंसी रेज़ोल्यूशन प्रोसेस को शुरू करने वाले कॉरपोरेट एप्लीकेंट को स्पेशल रेज़ोल्यूशन सौंपना होगा। इस स्पेशल रेज़ोल्यूशन को कॉरपोरेट देनदार के तीन चौथाई पार्टनर्स द्वारा मंजूर किया जाना चाहिए।
  • सौंपी गई एप्लीकेशंस को वापस लेना: रेज़ोल्यूशन एप्लीकेंट इनसॉल्वेंसी रेज़ोल्यूशन प्रोसेस शुरू करने के लिए राष्ट्रीय कंपनी कानून ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) में दायर की गई किसी एप्लीकेशन को वापस ले सकता है, इसके बावजूद कि वह प्रोसेस शुरू हो गया हो। वापसी के इस प्रस्ताव को कमिटी ऑफ क्रेडिटर्स के 90% वोट द्वारा मंजूर किया जाना चाहिए।
     
  • रेज़ोल्यूशन प्लान्स को लागू करना: अध्यादेश स्पष्ट करता है कि एनसीएलटी को किसी रेज़ोल्यूशन प्लान को मंजूर करने से पहले यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उसे प्रभावी तरीके से लागू किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त एक बार प्लान के मंजूर होने के बाद रेज़ोल्यूशन एप्लीकेंट को एक साल के भीतर सभी जरूरी मंजूरियां हासिल करनी चाहिए जो कानून के हिसाब से जरूरी हों।

 

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