अध्यादेश का सारांश
आर्बिट्रेशन और कंसीलिएशन (संशोधन) अध्यादेश, 2020
- आर्बिट्रेशन और कंसीलिएशन (संशोधन) अध्यादेश, 2020 को 4 नवंबर, 2020 को जारी किया गया। यह आर्बिट्रेशन और कंसीलिएशन एक्ट, 1996 में संशोधन करता है। एक्ट में घरेलू और अंतरराष्ट्रीय आर्बिट्रेशन से संबंधित प्रावधान हैं और यह सुलह प्रक्रिया को संचालित करने से संबंधित कानून को स्पष्ट करता है। अध्यादेश की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं:
- फैसले पर ऑटोमैटिक स्टे: 1996 के एक्ट में विभिन्न पक्षों को इस बात की अनुमति दी गई है कि वे आर्बिट्रेशन संबंधी किसी फैसले (आर्बिट्रेशन अवार्ड यानी आर्बिट्रेशन की प्रक्रिया में दिए गया कोई आदेश) के निवारण (सेटिंग असाइड) के लिए आवेदन दे सकते हैं। अदालतों ने इस प्रावधान की व्याख्या इस तरह की कि अदालत के समक्ष जैसे ही निवारण के लिए कोई आवेदन रखा जाता है, उसी क्षण आर्बिट्रेशन के फैसले पर ऑटोमैटिक स्टे लग जाएगा। 2015 में इस एक्ट में संशोधन किया गया और कहा गया कि आर्बिट्रेशन संबंधी किसी फैसले पर सिर्फ इस वजह से स्टे नहीं लगाया जाएगा, क्योंकि उसके निवारण के लिए अदालत में कोई आवेदन दायर किया गया है।
- अध्यादेश में निर्दिष्ट किया गया है कि आर्बिट्रेशन संबंधी किसी फैसले पर स्टे दिया जा सकता है (आवेदन के लंबित रहने के बावजूद), अगर अदालत को इस बात का विश्वास है कि: (i) संबंधित आर्बिट्रेशन एग्रीमेंट या कॉन्ट्रैक्ट, या (ii) फैसला, धोखाधड़ी या भ्रष्टाचार से प्रेरित या प्रभावित था। यह बदलाव 23 अक्टूबर, 2015 से प्रभावी होगा।
- आर्बिट्रेटर्स की क्वालिफिकेशन: एक्ट एक अलग अनुसूची में आर्बिट्रेटर्स की कुछ क्वालिफिकेशंस, अनुभव और एक्रेडेशन के नियमों को निर्दिष्ट करता है। अनुसूची के अंतर्गत शर्तों में कहा गया है कि आर्बिट्रेटर को (i) 1961 के एडवोकेट्स एक्ट के अंतर्गत वकील होना चाहिए और उसे 10 वर्ष का अनुभव होना चाहिए, या (ii) उसे इंडियन लीगल सर्विस का एक अधिकारी होना चाहिए। इसके अतिरिक्त आर्बिट्रेटर पर लागू सामान्य नियमों में यह भी शामिल है कि उन्हें भारतीय संविधान का जानकार होना चाहिए। अध्यादेश में इस अनुसूची को हटा दिया गया है और कहा गया है कि आर्बिट्रेटर्स की क्वालिफिकेशन, अनुभव और एक्रेडेशन के नियमों को रेगुलेशंस द्वारा निर्दिष्ट किया जाएगा।
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