बिल का सारांश

बैंकिंग रेगुलेशन (संशोधन) बिल, 2020

 

  • बैंकिंग रेगुलेशन (संशोधन) बिल, 2020 को 14 सितंबर, 2020 को लोकसभा में पेश किया गया। बिल बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट, 1949 में संशोधन करता है। एक्ट बैंकों के कामकाज को रेगुलेट करता है और विभिन्न पहलुओं का विवरण प्रदान करता है जैसे बैंकों की लाइसेंसिंग, प्रबंधन और संचालन। बिल 26 जून, 2020 को जारी बैंकिंग रेगुलेशन (संशोधन) अध्यादेश, 2020 का स्थान लेता है।
  • एक्सक्लूजन्स: एक्ट कुछ कोऑपरेटिव सोसायटीज़ पर लागू नहीं होता, जैसे प्राइमरी कृषि ऋण सोसायटीज़ और कोऑपरेटिव लैंड मॉर्गेज बैंक। बिल निम्नलिखित को एक्ट के प्रावधानों से हटाने के लिए इसमें संशोधन करता है: (i) प्राइमरी कृषि ऋण सोसायटीज़, और (ii) कोऑपरेटिव सोसायटीज़ जिनका मुख्य कारोबार कृषि विकास के लिए दीर्घकालीन वित्त प्रदान करना है। इसके अतिरिक्त इन सोसायटीज़ को अपने नाम या कारोबार के संबंध में ‘बैंक,’ ‘बैंकर’ या ‘बैंकिंग’ शब्दों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, या चेक क्लीयर करने वाली एंटिटीज़ के तौर पर व्यवहार नहीं करना चाहिए।
  • मोराटोरियम लगाए बिना पुनर्गठन या एकीकरण की योजना बनाने की शक्ति: एक्ट के अंतर्गत आरबीआई बैंक को मोराटोरियम में रखकर बैंक के उचित प्रबंधन के लिए, या जमाकर्ताओं, आम लोगों या बैंकिंग प्रणाली के हित के लिए बैंक के पुनर्गठन या एकीकरण के लिए योजना बना सकता है। मोराटोरियम में रखे गए बैंक पर कुछ प्रतिबंध लागू रहते हैं, जैसे वह कोई भुगतान नहीं कर सकता या अपनी देनदारियों को नहीं चुका सकता। बिल आरबीआई को इस बात की अनुमति देता है कि वह मोराटोरियम के बिना भी पुनर्गठन या एकीकरण की योजना शुरू कर सकता है। मोरटोरियम के दौरान बैंक के खिलाफ छह महीने तक कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की जा सकती। इस अतिरिक्त इस दौरान बैंक कोई भुगतान नहीं कर सकता या अपनी देनदारियों को नहीं चुका सकता।
  • बिल में आरबीआई को इस बात की अनुमति दी गई है कि वह मोराटोरियम के बिना बैंक के पुनर्गठन या एकीकरण की योजना शुरू कर सकता है। बिल में कहा गया है कि अगर मोराटोरियम लगाया जाता है तो मौजूदा प्रतिबंधों के अतिरिक्त बैंक कोई लोन नहीं दे सकता या किसी क्रेडिट इंस्ट्रूमेंट में निवेश नहीं कर सकता।
  • कोऑपरेटिव बैंकों का शेयर और सिक्योरिटी जारी करना: बिल में प्रावधान है कि कोऑपरेटिव बैंक फेस वैल्यू पर या अपने सदस्यों अथवा अपने संचालन क्षेत्र में निवास करने वाले अन्य व्यक्तियों को प्रीमियम पर इक्विटी शेयर, प्रिफ्ररेंस शेयर या स्पेशल शेयर जारी कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त वह ऐसे लोगों को दस वर्ष या उससे अधिक की परिपक्वता के साथ अनसिक्योर्ड डिबेंचर्स या बॉन्ड्स या इस जैसी दूसरी सिक्योरिटीज़ जारी कर सकते हैं। इसके लिए उन्हें आरबीआई की पूर्व मंजूरी लेनी होगी और आरबीआई की दूसरी शर्तों, जो भी निर्दिष्ट हों, को मानना होगा।
  • बिल का कहना है कि कोई भी व्यक्ति कोऑपरेटिव बैंक के शेयर्स को सरेंडर करने पर भुगतान की मांग के लिए अधिकृत नहीं है। इसके अतिरिक्त कोऑपरेटिव बैंक केवल आरबीआई द्वारा निर्दिष्ट किए जाने पर ही अपने शेयर कैपिटल को विदड्रॉ या कम कर सकता है।
  • प्रबंधन की क्वालिफिकेशन: बिल एक्ट में कोऑपरेटिव बैंकों के प्रबंधन के संबंध में कुछ प्रावधानों को लागू करता है। अन्य प्रतिबंधों के साथ बिल में प्रावधान किया गया है कि कोऑपरेटिव बैंक किसी ऐसे व्यक्ति को चेयरपर्सन नहीं बना सकते, जो कि इनसॉल्वेंट है या नैतिक अपराध के लिए दोषी ठहराया गया है। आरबीआई ऐसे चेयरपर्सन को हटा सकता है जोकि उपयुक्त या उचित नहीं, और अगर बैंक किसी उपयुक्त व्यक्ति की नियुक्ति नहीं करता, तो आरबीआई ऐसा कर सकता है।
  • इसके अतिरिक्त निदेशक मंडल में कम से कम 51% सदस्यों के पास एकाउंटेंसी, बैंकिंग, अर्थशास्त्र या कानून जैसे क्षेत्रों का विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव होना चाहिए। अगर बैंक इन शर्तों को पूरा नहीं करता तो बिल के अंतर्गत आरबीआई को यह अधिकार दिया गया है कि वह बैंक को मंडल के पुनर्गठन का निर्देश दे। अगर बैंक इस निर्देश का पालन नहीं करता तो आरबीआई निदेशकों को हटा सकता है और उपयुक्त व्यक्ति को नियुक्त कर सकता है।
  • कोऑपरेटिव बैंकों को छूट देने की शक्ति: बिल कहता है कि आरबीआई अधिसूचना के जरिए कोऑपरेटिव बैंक या कोऑपरेटिव बैंकों की किसी श्रेणी को एक्ट के कुछ प्रावधानों से छूट दे सकता है। ये कुछ प्रकार के रोजगार पर प्रतिबंध, बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के क्वालिफिकेशन और चेयरपर्सन की नियुक्ति से जुड़े प्रावधान हैं। छूट की समय अवधि और शर्तों को आरबीआई द्वारा निर्दिष्ट किया जाएगा।
  • बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स का सुपरसेशन: एक्ट कहता है कि आरबीआई कुछ स्थितियों में मल्टी स्टेट कोऑपरेटिव बैंक के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स का अधिकतम पांच वर्षों के लिए सुपरसेशन कर सकता है। इन स्थितियों में ऐसे मामले शामिल हैं जहां आरबीआई के लिए जनहित में या जमाकर्ताओं की सुरक्षा के लिए बोर्ड का सुपरसेशन जरूरी है। बिल कहता है कि अगर कोऑपरेटिव बैंक किसी राज्य के रजिस्ट्रार ऑफ कोऑपरेटिव सोसायटीज में पंजीकृत है तो आरबीआई संबंधित राज्य सरकार की सलाह से बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स को सुपरसीड करेगा और उस अवधि में उनकी टिप्पणियों की मांग करेगा, जिसे निर्दिष्ट किया जाएगा।
  • कुछ प्रावधान हटाए गए: बिल एक्ट से कुछ प्रावधानों को हटाता है। इनमें से एक कोऑपरेटिव बैंकों को अपने खुद के शेयर्स की सिक्योरिटी पर लोन या एडवांस लेने पर पाबंदी लगाने से संबंधित है। इसके अतिरिक्त वह कोऑपरेटिव बैंकों के निदेशकों, और ऐसी निजी कंपनियों, जिनमें बैंक के निदेशक या चेयरपर्सन का हित हो, को अनसिक्योर्ड लोन्स या एडवांस देने से प्रतिबंधित करता है। एक्ट अनसिक्योर्ड लोन्स या एडवांस देने की शर्तों को निर्दिष्ट करता है और यह भी स्पष्ट करता है कि किस तरीके से आरबीआई को लोन रिपोर्ट किए जा सकते हैं। बिल एक्ट से इस प्रावधान को हटाता है। ​  

                         

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