लेजिसलेटिव ब्रीफ
मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेन्सी (संशोधन) बिल, 2020
बिल की मुख्य विशेषताएं
- एक्ट उन स्थितियों को रेगुलेट करता है जिनमें गर्भपात कराया जा सकता है। बिल उस समय अवधि को बढ़ाता है जिस दौरान गर्भपात कराया जा सकता है।
- वर्तमान में अगर गर्भधारण के 12 हफ्ते के भीतर गर्भपात कराना हो तो उसके लिए एक डॉक्टर की और अगर 12 से 20 हफ्ते के बीच गर्भपात कराना हो तो दो डॉक्टरों की सम्मति की जरूरत होती है। बिल में इस समय अवधि को बढ़ाया गया है। इसके अंतर्गत अगर 20 हफ्ते तक गर्भपात कराना है तो एक डॉक्टर की सलाह की जरूरत होगी। इसके अतिरिक्त कुछ श्रेणी की महिलाओं को 20 से 24 हफ्ते के बीच गर्भपात कराने के लिए दो डॉक्टरों की सलाह की जरूरत होगी।
- असामान्य भ्रूण (फीटल अबनॉर्मिलिटी) के मामलों मे 24 हफ्ते के बाद गर्भपात पर फैसला लेने के लिए बिल में राज्य स्तरीय मेडिकल बोर्ड्स का गठन किया गया है।
प्रमुख मुद्दे और विश्लेषण
- गर्भपात की अनुमति पर भिन्न-भिन्न राय हैं। एक कहती है कि गर्भपात कराना महिला की अपनी इच्छा, और उसके प्रजनन अधिकार का मामला है। दूसरी कहती है कि राज्य जीवन के संरक्षण के लिए बाध्य है और इसलिए उसे फीटस यानी भ्रूण को सुरक्षा प्रदान करनी चाहिए। विश्व के अनेक देशों में गर्भपात की शर्तें और समय अवधि अलग-अलग हैं जोकि फीटस के स्वास्थ्य और गर्भवती महिला को जोखिम के आधार पर तय होता है।
- कई महिलाओं ने असामान्य भ्रूण या बलात्कार के कारण 20 हफ्ते के बाद गर्भपात की अनुमति के लिए रिट याचिकाएं दायर की हैं। बिल सिर्फ उन मामलों में 24 हफ्ते के बाद गर्भपात की अनुमति देता है जहां मेडिकल बोर्ड ने भ्रूण को काफी असामान्य पाया है। इसका अर्थ यह है कि जिन मामलों में बलात्कार के कारण गर्भधारण होता है, उनमें 24 हफ्ते के बाद गर्भपात के लिए एक रास्ता बचता है, और वह रिट याचिका है।
- बिल यह स्पष्ट नहीं करता कि किस श्रेणी की महिला 20-24 हफ्ते के बीच गर्भपात करा सकती है और इसे नियमों के तहत निर्दिष्ट करने का प्रावधान करता है। यह कहा जा सकता है कि ऐसे मामलों को संसद द्वारा निर्दिष्ट किया जाना चाहिए, सरकार को नहीं सौंपा जाना चाहिए।
- एक्ट (और बिल) में कहा गया है कि गर्भपात सिर्फ गायनाकोलॉजी या अब्स्टेट्रिक्स में विशेषज्ञता प्राप्त डॉक्टर ही करेंगे। चूंकि ग्रामीण क्षेत्रों के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में ऐसे डॉक्टरों की 75% कमी है, गर्भवती महिलाओं को सुरक्षित गर्भपात के लिए स्वास्थ्य केंद्रों तक पहुंचने में समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
भाग क : बिल की मुख्य विशेषताएं
संदर्भ
भारतीय दंड संहिता, 1860 के अंतर्गत स्वेच्छा से गर्भपात कराना एक क्रिमिनल अपराध है।[1] मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेन्सी एक्ट, 1971 कुछ शर्तों पर मेडिकल डॉक्टरों (विशिष्ट स्पेशलाइजेशन वाले) द्वारा गर्भपात कराने की अनुमति देता है। एक डॉक्टर की सलाह से 12 हफ्ते तक और दो डॉक्टरों की सलाह से 20 हफ्ते तक गर्भपात कराया जा सकता है। गर्भपात की अनुमति तब है, जब गर्भावस्था बरकरार रहने से गर्भवती महिला की जान की खतरा हो, उसके मानसिक या शारीरिक स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान हो सकता हो (बलात्कार और गर्भ निरोध के उपायों के असफल होने सहित), या भ्रूण के असामान्य होने पर। गर्भावस्था के किसी भी चरण में गर्भपात कराया जा सकता है, अगर महिला के जीवन को बचाने के लिए ऐसा करना जरूरी है।
मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेन्सी (संशोधन) बिल, 2020 को 2 मार्च, 2020 को लोकसभा में पेश किया गया और 17 मार्च, 2020 को पारित किया गया। यह कुछ श्रेणी की महिलाओं के लिए गर्भपात की ऊपरी सीमा को 20 से 24 हफ्ते करने के लिए एक्ट में संशोधन करता है, असामान्य भ्रूण के मामले में इस सीमा को हटाता है, और राज्य स्तर पर मेडिकल बोर्ड्स का गठन करता है। बिल के उद्देश्यों और कारणों के कथन में कहा गया है कि सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में ऐसे कई मामले दायर किए गए हैं जिनमें असामान्य भ्रूण या बलात्कार के कारण गर्भधारण के आधार पर 20 हफ्ते के बाद गर्भपात कराने की अनुमति मांगी गई है।[2] इसमें यह भी कहा गया है कि मेडिकल टेक्नोलॉजी के उन्नत होने के साथ, गर्भपात की ऊपरी सीमा को बढ़ाने की गुंजाइश है, खास तौर से संवेदनशील महिलाओं के लिए, और भ्रूण के गंभीर रूप से विकृत (अबनॉर्मल) होने पर।
मुख्य विशेषताएं
बिल मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेन्सी एक्ट, 1971 में संशोधन करता है।
- गर्भपात कराने की समय सीमा और आधार: एक्ट गर्भपात कराने के आधार और उसकी समय सीमा को निर्दिष्ट करता है। बिल इन प्रावधानों में संशोधन करता है। एक्ट और बिल के प्रावधानों को तालिका 1 में स्पष्ट किया गया है।
तालिका 1: गर्भावस्था के विभिन्न चरणों में गर्भपात कराने की शर्तों में प्रस्तावित परिवर्तन
गर्भावस्था के चरण |
गर्भपात की शर्तें |
|
एमटीपी एक्ट, 1971 |
एमटीपी (संशोधन) बिल, 2020 |
|
12 हफ्ते तक |
एक डॉक्टर की सलाह से |
एक डॉक्टर की सलाह से |
12 से 20 हफ्ते |
दो डॉक्टरों की सलाह से |
एक डॉक्टर की सलाह से |
20 से 24 हफ्ते तक |
अनुमति नहीं |
कुछ श्रेणी की महिलाओं के लिए दो डॉक्टरों की सलाह से |
24 हफ्ते से अधिक |
अनुमति नहीं |
भ्रूण के अत्यधिक विकृत होने पर मेडिकल बोर्ड की सलाह से |
गर्भावस्था के दौरान कभी भी |
एक डॉक्टर, अगर गर्भवती महिला का जीवन बचाने के लिए तत्काल ऐसा करना जरूरी हो |
Note: *Doctor refers to registered medical practitioner with experience/training in gynaecology or obstetrics.
Sources: The Medical Termination of Pregnancy Act, 1971, The Medical Termination of Pregnancy (Amendment) Bill, 2020; PRS.
- गर्भनिरोध के तरीके या साधन के असफल होने पर गर्भपात: एक्ट के अंतर्गत, गर्भनिरोध के तरीके या साधन के असफल होने पर विवाहित महिला 20 हफ्ते तक गर्भपात करा सकती है। बिल अविवाहित महिलाओं को इस कारण से गर्भपात कराने की अनुमति देता है।
- मेडिकल बोर्ड्स: सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारें मेडिकल बोर्ड बनाएंगी। बोर्ड यह तय करेगा कि क्या भ्रूण के अत्यधिक असामान्य होने की स्थिति में 24 हफ्ते के बाद गर्भपात कराया जा सकता है। हर बोर्ड में गायनाकोलॉजिस्ट, पीडियाट्रीशियन, रेडियोलॉजिस्ट/सोनोलॉजिस्ट और राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित सदस्य होंगे।
- प्राइवेसी: रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टीशनर सिर्फ कानून द्वारा अधिकृत व्यक्ति को ही गर्भपात कराने वाली महिला का विवरण दे सकता है। इस प्रावधान का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को एक वर्ष तक की सजा, या जुर्माना, या दोनों भुगतने पड़ेंगे।
भाग ख: प्रमुख मुद्दे और विश्लेषण
गर्भपात की शर्तें
व्यापक रूप से गर्भपात की अनुमति पर दो किस्म की राय हैं। एक राय यह है कि गर्भपात कराना एक गर्भवती महिला की अपनी मर्जी, और उसके प्रजनन अधिकार का मामला है। दूसरी तरह का विचार यह कहता है कि जीवन की रक्षा करना राज्य का कर्तव्य है, इसलिए उसे भ्रूण को संरक्षण प्रदान करना चाहिए। विश्व के विभिन्न देशों में गर्भपात के लिए अपनी-अपनी शर्तें और समय अवधियां निर्धारित हैं जोकि अनेक कारणों पर आधारित हैं जैसे फीटल लायबिलिटी (किस बिंदु पर भ्रूण गर्भाशय के बाहर जीवित रह सकता है), भ्रूण का असामान्य होना या गर्भवती महिला को खतरा।
अनेक देशों में एक निश्चित समय अवधि तक गर्भपात की अनुमति है, साथ ही कुछ शर्तें भी हैं। उदाहरण के लिए यूके में निम्नलिखित आधार पर किसी भी समय गर्भपात कराया जा सकता है: (i) महिला के जीवन को बचाने के लिए, (ii) महिला के शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य को होने वाले गंभीर नुकसान को रोकने के लिए, या (iii) अगर बच्चे के गंभीर रूप से विकलांग होने का खतरा है। इसके अतिरिक्त महिला के शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य को होने वाले नुकसान का निर्धारण करना हो, तो उसके वास्तविक या पर्याप्त प्रत्याशित वातावरण पर विचार किया जा सकता है।[3] दक्षिण अफ्रीका में एक महिला के अनुरोध पर 12 हफ्ते तक गर्भपात कराया जा सकता है, और निम्नलिखित के आधार पर 12 से 20 हफ्ते के बीच गर्भपात कराया जा सकता है, अगर: (i) इससे महिला के मानसिक या शारीरिक स्वास्थ्य को खतरा है, (ii) भ्रूण के असामान्य होने का खतरा है, (iii) बलात्कार के कारण ऐसा हुआ है, या (iv) गर्भावस्था बरकरार रहने से महिला की सामाजिक-आर्थिक स्थिति प्रभावित होगी। वहां 20 हफ्ते के बाद भी गर्भपात की अनुमति है, अगर महिला या भ्रूण के जीवन को खतरा है, या भ्रूण के असामान्य होने का खतरा है।[4]
कुछ देशों, जैसे यूएस में, अलग-अलग राज्यों में गर्भपात कानून अलग-अलग हैं। 1973 में यूएस सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि गर्भपात वैध है।[5] हालांकि अलबामा जैसे कुछ राज्यों में सभी मामलों में गर्भपात पर प्रतिबंध है, बशर्ते मां के स्वास्थ्य को गंभीर खतरा हो या भ्रूण में घातक विकृति हो।[6] कुछ राज्यों में भ्रूण के दिल की धड़कन का पता चलने या गर्भधारण के छह हफ्ते के बाद गर्भपात पर प्रतिबंध है (जॉर्जिया, केंटुकी)।[7],[8] कुछ राज्य 24 हफ्ते तक गर्भपात की अनुमति देते हैं (न्यूयॉर्क), या गर्भपात तब नहीं कराया जा सकता, जब भ्रूण गर्भाशय के बाहर अपने आप जीवित रहने की स्थिति में आ जाए, (कैलीफोर्निया, रोड आयलैंड), या गर्भपात की मंजूरी तब है, जब महिला के स्वास्थ्य को खतरा हो या भ्रूण के असामान्य रहने का जोखिम हो।[9],[10],[11]
अध्ययन के अनुसार, विश्व के 67% देशों में (जहां गर्भावस्था को रेगुलेट करने के लिए फेडरल कानून हैं) गर्भपात कराने के लिए कम से कम एक हेल्थ केयर प्रोवाइडर की मंजूरी की जरूरत होती है।[12] विश्व स्वास्थ्य संगठन वह अधिकतम समय सीमा निर्दिष्ट नहीं करता, जिसके बाद गर्भपात नहीं कराया जा सकता।[13]
भारत में भारतीय दंड संहिता, 1860 (आईपीसी) के अंतर्गत स्वेच्छा से गर्भपात करना क्रिमिनल अपराध माना जाता है।1 मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेन्सी एक्ट, 1971 आईपीसी के अपवाद के रूप में काम करता है। इसमें प्रावधान है कि रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टीशनर्स द्वारा गर्भपात कराया जा सकता है। बिल कुछ श्रेणी की महिलाओं के लिए गर्भपात की ऊपरी सीमा को 20 से 24 हफ्ते करने के लिए एक्ट में संशोधन करता है और असामान्य भ्रूण के मामले में इस सीमा को हटाता है। इन प्रावधानों से कुछ मुद्दे उठते हैं जिनकी हम यहां चर्चा कर रहे हैं:
मेडिकल बोर्ड कुछ ही मामलों में गर्भपात पर फैसला देगा
बिल के उद्देश्यों और कारणों के कथन में कहा गया है कि सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में ऐसी कई रिट याचिकाएं दायर की गई हैं जिनमें असामान्य भ्रूण या बलात्कार के कारण गर्भधारण के आधार पर 20 हफ्ते के बाद गर्भपात कराने की अनुमति मांगी गई है।2 बिल सिर्फ उन्हीं मामलों में 24 हफ्ते के बाद गर्भपात कराने की अनुमति देता है जिनमें मेडिकल बोर्ड ने भ्रूण के अत्यधिक असामान्य होने को डायग्नॉज किया है। इसका यह मतलब है कि बलात्कार के कारण गर्भधारण करने वाले मामलों में, जहां 24 हफ्ते की सीमा पार हो गई है, इस पूरी प्रक्रिया में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। ऐसे मामलों के लिए एक ही रास्ता बचता है, वे गर्भपात की मंजूरी के लिए रिट याचिका का सहारा लें।
20-24 हफ्ते के बीच गर्भपात करा सकने वाली महिलाओं की श्रेणियां निर्दिष्ट नहीं
बिल कुछ श्रेणी की महिलाओं को 20 से 24 हफ्ते के बीच गर्भपात कराने की अनुमति देता है। केंद्र सरकार इन श्रेणियों को अधिसूचित करेगी। यह कहा जा सकता है कि 20 से 24 हफ्ते के बीच गर्भपात करा सकने वाली महिलाओं की श्रेणियों को संसद द्वारा निर्दिष्ट किया जाना चाहिए और यह काम सरकार को नहीं सौंपा जाना चाहिए।
मेडिकल बोर्ड के फैसले की समय सीमा निर्दिष्ट नहीं
बिल कहता है कि भ्रूण के अत्यधिक असामान्य होने पर मेडिकल बोर्ड की सलाह से 24 हफ्ते के बाद गर्भपात कराया जा सकता है। लेकिन बिल यह नहीं बताता कि बोर्ड को कितने समय में अपना फैसला देना होगा। गर्भपात एक संवेदनशील मामला है और मेडिकल बोर्ड के फैसला लेने में विलंब होने से गर्भवती महिला की अधिक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
क्या ट्रांसजेंडर व्यक्ति भी दायरे में आएंगे, यह स्पष्ट नहीं
एक्ट और बिल कुछ स्थितियों में ‘गर्भवती महिलाओं’ को गर्भपात कराने की अनुमति देता है। उल्लेखनीय है कि ट्रांसजेंडर व्यक्ति (संरक्षण और अधिकार) एक्ट, 2019 ट्रांसजेंडर को भारत में एक अतिरिक्त जेंडर के रूप में मान्यता देता है।[14] कुछ मेडिकल अध्ययनों में ऐसे मामले सामने आए हैं जहां खुद को ट्रांसजेंडर (महिला नहीं) के रूप में पहचानने वाले लोगों ने महिला से पुरुष बनने की हार्मोन थेरेपी लेने के बावजूद गर्भधारण कर लिया। ऐसे लोगों को भी गर्भपात की जरूरत हो सकती है।[15] चूंकि एक्ट और बिल सिर्फ महिलाओं के मामले में गर्भपात का प्रावधान करता है, यह स्पष्ट नहीं कि क्या ट्रांसजेंडर व्यक्ति भी इस बिल के दायरे में आएंगे।
गर्भपात कराने के लिए क्वालिफाइड मेडिकल प्रोफेशनल्स न मिलना
बिल के उद्देश्यों और कारणों के कथन के अनुसार, असुरक्षित गर्भपात और संबंधित समस्याओं के कारण मातृत्व मृत्यु दर और रोगों को कम करने के लिए यह जरूरी है कि महिलाओं की पहुंच वैध और सुरक्षित गर्भपात सेवाओं तक हो।2 अखिल भारतीय ग्रामीण स्वास्थ्य सांख्यिकी (2018-19) में बताया गया है कि भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में 1,351 गायनाकोलॉजिस्ट और अब्स्टेट्रिशियन्स हैं और 4,002 की कमी है, यानी क्वालिफाइड डॉक्टरों की 75% कमी है।[16] क्वालिफाइड मेडिकल प्रोफेशनल्स की कमी से महिलाओं को सुरक्षित गर्भपात सेवाएं उपलब्ध नहीं होतीं। उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार सर्वेक्षण (2015-16) के अनुसार, सिर्फ 53% गर्भपात रजिस्टर्ड मेडिकल डॉक्टर द्वारा किए जाते हैं और शेष नर्स, ऑक्सिलरी नर्स मिडवाइफ, दाई, परिवार के सदस्यों, या खुद द्वारा किए जाते हैं।[17]
[1]. Indian Penal Code, 1860.
[2]. Statement of Objects and Reasons, Medication Termination of Pregnancy (Amendment) Bill, 2020.
[3]. Section 1, Abortion Act 1967, https://www.legislation.gov.uk/ukpga/1967/87/section/1.
[4]. Choice on Termination Pregnancy Act, 1996, South Africa, https://www.parliament.gov.za/storage/app/media/ProjectsAndEvents/womens_month_2015/docs/Act92of1996.pdf.
[5]. Jane ROE, et al., Appellants, v. Henry WADE., U.S. Supreme Court, January 1973, https://www.law.cornell.edu/supremecourt/text/410/113.
[7]. House Bill 481, Georgia, http://www.legis.ga.gov/Legislation/20192020/184245.pdf.
[8]. AN ACT relating to abortion and declaring an emergency, Senate Bill 9, Kentucky, https://apps.legislature.ky.gov/recorddocuments/bill/19RS/sb9/bill.pdf.
[9]. Article 25-A, Reproductive Health Act, New York, https://legislation.nysenate.gov/pdf/bills/2019/s240; Frequently Asked Questions, The Reproductive Health Act, New York Senate, https://www.nysenate.gov/sites/default/files/article/attachment/rha_faqs.pdf.
[10]. SB-1301 Reproductive Privacy Act, California, http://leginfo.legislature.ca.gov/faces/billCompareClient.xhtml?bill_id=200120020SB1301&showamends=false.
[11]. RI H5125, The Reproductive Privacy Act, Rhode Island, https://www.billtrack50.com/BillDetail/1018806.
[12]. Global Abortion Policies Database: A descriptive analysis of the regulatory and policy environment related to abortion, Best Practice & Research Clinical Obstetrics and Gynaecology, https://abortion-policies.srhr.org/documents/reference/Regulatory-and-policy-environment-of-abortion.pdf.
[13]. Clinical Practice Handbook for Safe Abortion, World Health Organization.
[14]. Transgender Persons Act, 2019.
[15]. Light, A., et al. (2014), Transgender men who experienced pregnancy after female-to-male gender transitioning. Obstetrics and gynaecology, 124(6), 1120-1127.
[16]. Section V, Rural Health Statistics (2018-19), Ministry of Health and Family Welfare.
[17]. Unstarred Question No. 599, Ministry of Health and Family Welfare, Lok Sabha, July 20, 2018.
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