सिलेक्ट कमिटी की रिपोर्ट का सारांश

सेरोगेसी (रेगुलेशन) बिल, 2019

  • सेरोगेसी (रेगुलेशन) बिल, 2019 पर सिलेक्ट कमिटी (चेयर: भूपेंद्र यादव) ने 5 फरवरी, 2020 को अपनी रिपोर्ट सौंपी। कमिटी के मुख्य निष्कर्ष और सुझाव निम्नलिखित हैं:
  • कमर्शियल बनाम निस्वार्थ (एलट्रूइस्टिक) सेरोगेसी: सेरोगेसी में कोई महिला किसी इच्छुक दंपत्ति के लिए बच्चे को जन्म देती है और जन्म के बाद उस इच्छुक दंपत्ति को बच्चा सौंप देती है। बिल कमर्शियल सेरोगेसी को प्रतिबंधित करता है और निस्वार्थ सेरोगेसी की अनुमति देता है। निस्वार्थ सेरोगेसी में सेरोगेट माता को गर्भावस्था के दौरान दिए जाने वाले मेडिकल खर्चे और बीमा कवरेज के अतिरिक्त कोई मौद्रिक मुआवजा नहीं दिया जाता।
  • कमिटी ने निस्वार्थ सेरोगेसी के स्थान पर मुआवजे के आधार पर सेरोगेसी मॉडल का सुझाव दिया। इस मुआवजे में सेरोगेट माता के स्वास्थ्य एवं वेतन संबंधी नुकसान की भरपाई होनी चाहिए। कमिटी ने कहा कि सेरोगेसी को आर्थिक रूप से कमजोर पृष्ठभूमि वाली महिलाओं के लिए आर्थिक अवसर के रूप में देखा जाता रहा है। कमर्शियल सेरोगेसी को प्रतिबंधित करके बिल इस सच्चाई को नजरंदाज करता है कि निस्वार्थ सेरोगेसी भी शोषण ही करती है।
  • इस संबंध में कमिटी ने सुझाव दिया कि सेरोगेसी को उस विशिष्ट उद्देश्य के आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता है जिसके कारण कोई महिला सेरोगेसी के लिए तैयार होती है। यह उद्देश्य कोई भी हो सकता है: (i) भुगतान योग्य सेवा देना और कमाई करना, या (ii) निस्वार्थ कारण से सेरोगेसी करना।
  • निकट संबंधीहोने के कारण सेरोगेसी करने का क्या असर हो सकता है: बिल के अंतर्गत सेरोगेट महिला इच्छुक दंपत्ति का केवल ‘निकट संबंधी’ हो सकती है। कमिटी ने कहा कि ‘निकट संबंधी’ के मानदंड से सेरोगेट माताओं की उपलब्धता कम हो सकती है और इसका उस व्यक्ति पर असर हो सकता है जिसे सचमुच सेरोगेसी की जरूरत है। इसलिए कमिटी ने सुझाव दिया कि ‘निकट संबंधी’ की परिभाषा को हटाया जाए और इच्छुक महिला को सेरोगेट माता बनने की अनुमति दी जाए।
  • पांच वर्ष की प्रतीक्षा अवधि: बिल के अंतर्गत इच्छुक दंपत्ति पांच वर्ष तक असुरक्षित सहवास के बाद गर्भधारण में अक्षम रहने पर या किन्हीं अन्य मेडिकल स्थितियों में गर्भधारण न कर पाने के बाद सेरोगेसी की व्यवस्था कर सकता है। कमिटी ने कहा कि पांच वर्ष की यह अवधि विशेषकर कई स्थितियों में बहुत लंबी है, जैसे गर्भाशय न होना, कैंसर, फायब्रॉयड के कारण गर्भाशय निकालना, और ऐसी स्थितियां, जब सामान्य गर्भावस्था संभव नहीं हो।
  • इस संबंध में कमिटी ने सुझाव दिया कि बिल से इनफर्टिलिटी की परिभाषा और पांच वर्ष की प्रतीक्षा अवधि को हटाया जाए। उसने सुझाव दिया कि किसी ऐसी दंपत्ति (दंपत्ति में से कोई एक या दोनों), जिसके लिए गेस्टेशनल सेरोगेसी मेडिकल कारणों से जरूरी हो, को सेरोगेसी की अनुमति दी जानी चाहिए। जेस्टेशनल सेरोगेसी में सेरोगेट माता के गर्भ में भ्रूण को प्रत्यारोपित किया जाता है और बच्चा सेरोगेट माता से जेनेटिकली संबंधित नहीं होता। इस प्रकार वह इच्छुक महिला दंपत्ति का बच्चा कैरी करती है।
  • कौन लोग सेरोगेसी सेवाओं का लाभ उठा सकते हैं: बिल कानूनन विवाहित भारतीय दंपत्ति के लिए सेरोगेसी के विकल्पों को सीमित करता है और आयु संबंधी प्रतिबंध लगाता है। कमिटी ने कहा कि इसमें समाज के दूसरे तबकों की जरूरत को नजरंदाज किया गया है जोकि सेरोगेट बच्चे की इच्छा रख सकते हैं। उसने सुझाव दिया कि पात्रता के मानदंडों को व्यापक बनाया जाना चाहिए ताकि 35 से 45 वर्ष की जिन महिलाओं के पति की मृत्यु हो गई है या जो तलाकशुदा हैं, उन्हें भी यह सेवा उपलब्ध हो। इसके अतिरिक्त भारतीय मूल के इच्छुक दंपत्तियों को भी सेरोगेसी की अनुमति दी जानी चाहिए।
  • बीमा कवर: बिल में प्रावधान है कि सेरोगेट माता को 16 महीने का बीमा कवरेज दिया जाएगा। कमिटी ने इसे समय अवधि को 36 महीने करने का सुझाव दिया है।
  • अपील: सेरोगेट की प्रक्रिया को शुरू करने के लिए सेरोगेट माता और इच्छुक दंपत्ति को पात्रता का सर्टिफिकेट लेना होगा और संबंधित उपयुक्त अथॉरिटीज़ की कुछ शर्तों को पूरा करना होगा। हालांकि बिल में यह कहीं स्पष्ट नहीं किया गया है कि अगर सेरोगेसी की एप्लिकेशन रद्द हो जाती है तो समीक्षा या अपील की क्या प्रक्रिया अपनाई जाएगी। कमिटी ने ऐसे प्रावधान का सुझाव दिया जिसके अंतर्गत इच्छुक दंपत्ति या सेरोगेट माता एप्लिकेशन रद्द होने के 30 दिनों के भीतर राज्य सरकार से अपील कर सकें।
  • असिस्टेड रीप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी (एआरटी) बिल: कमिटी ने कहा कि सेरोगेसी क्लिनिक्स में ऐसे सेंटर्स और लैब्स शामिल हैं जोकि इन विट्रो फर्टिलाइजेशन जैसी एआरटी सेवाएं प्रदान करते हैं। इस संबंध में यह सुझाव दिया गया कि सेरोगेसी (रेगुलेशन) बिल, 2019 से पहले एआरटी बिल पेश किया जाए। इससे सेरोगेसी (रेगुलेशन) बिल, 2019 के उच्च तकनीकी और चिकित्सकीय पहलुओं को संबोधित किया जा सकेगा।

 

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