स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश

पंजीकरण (संशोधन) बिल, 2013

  • ग्रामीण विकास संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयरपर्सनः डॉ. पी. वेणुगोपाल) ने 8 मई, 2015 को पंजीकरण (संशोधन) बिल, 2013 पर अपनी रिपोर्ट सौंपी।
     
  • बिल पंजीकरण एक्ट, 1908 में संशोधन का प्रयास करता है। एक्ट देश में प्रॉपर्टी, वसीयत इत्यादि से संबंधित दस्तावेजों के पंजीकरण की प्रक्रिया को शासित करता है। यह निम्नलिखित का उल्लेख करता हैः (i) अथॉरिटीज, जोकि पंजीकरण के लिए उत्तरदायी हैं, (ii) पंजीकरण की प्रक्रिया, (iii) दस्तावेज, जिन्हें पंजीकृत किए जाने की जरूरत है, और (iv) एक्ट के निश्चित प्रावधानों का पालन न करने पर दंड।
     
  • कमिटी ने बिल का समर्थन किया लेकिन कुछ सुझाव भी रखे। कमिटी के प्रमुख सुझाव निम्नलिखित हैं।
     
  • एक वर्ष से कम अवधि की लीज का अनिवार्य पंजीकरणः वर्तमान में, एक्ट में एक वर्ष से कम अवधि की लीज के पंजीकरण की अनिवार्यता नहीं है। बिल सभी लीजों (अचल संपत्ति की) के पंजीकरण को अनिवार्य बनाता है, जिसमें एक साल से कम अवधि की लीज भी शामिल है, अगर संपत्ति का मासिक किराया 50,000 रुपये से अधिक हो।
     
  • कमिटी ने इन दस्तावेजों के पंजीकरण को अनिवार्य बनाए जाने पर सहमति जताई। फिर भी, उसने यह सुझाव दिया कि सरकार को अनिवार्य पंजीकरण से छूट देने के लिए मानदंड (जैसे देय किराया) निर्धारित करने की अनुमति दी जानी चाहिए। इससे राज्य सरकार को उस देय किराये की राशि निर्धारित करने की अनुमति मिलेगी जिस पर लीज को पंजीकृत करना अनिवार्य होगा, बजाय राशि को 50,000 रुपये पर निश्चित करना।
     
  • राज्य सरकारों की भूमिकाः एक्ट राज्य सरकारों को एक्ट के कार्यान्वयन से क्षेत्रों को बाहर रखने की अनुमति देता है। बिल में इस प्रावधान को हटाया गया है। कमिटी ने सुझाव दिया है कि सरकार को राज्य सरकारों को यह अनुमति देनी चाहिए कि वे राज्य की जरूरतों को देखते हुए, एक्ट के अनुरूप राज्य कानूनों के जरिये क्षेत्रों को बाहर रख सकें।
     
  • बिल राज्य सरकारों को एक्ट से संबंधित नियम जैसे पंजीकरण के लिए दस्तावेजों को प्रस्तुत करने का तरीका और अपील को निस्तारित करने का तरीका इत्यादि को निर्धारित करने की अनुमति देने का प्रयास करता है। कमिटी ने सुझाव दिया कि राज्य सरकारों के लिए नियम बनाने की समय सीमा निश्चित की जानी चाहिए।
     
  • पंजीकरण का स्थानः एक्ट में अपेक्षित है कि भूमि संबंधित दस्तावेजों को उप जिला स्तर पर पंजीकृत कराया जाना चाहिए जहां भूमि स्थित है। बिल में देश में किसी भी स्थान पर इन दस्तावेजों का पंजीकरण कराने की अनुमति दिए जाने का प्रावधान है।
     
  • कमिटी ने पाया कि जमीनी स्तर पर ढांचागत सुविधाओं के अभाव में पंजीकरण में बेइमानी की जा सकती है या भूमि के पंजीकरण के इच्छुक लोगों को समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए उसने सुझाव दिया कि इन दस्तावेजों को देश में किसी भी स्थान पर पंजीकृत कराए जाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। इसके अतिरिक्त उप जिला स्तर पर पंजीकरण के बजाय जिला स्तर पर पंजीकरण की अनुमति दी जानी चाहिए।
     
  • वसीयतों का अनिवार्य पंजीकरणः एक्ट में कुछ दस्तावेजों, जैसे वसीयत के पंजीकरण को वैकल्पिक बनाया गया है। बिल उन दस्तावेजों के प्रकारों को निश्चित करता है जिनमें पंजीकरण वैकल्पिक हैः (i) वसीयत और (ii) राज्य सरकार द्वारा निर्दिष्ट अन्य दस्तावेज।
     
  • कमिटी ने सुझाव दिया कि सरकार को वसीयतों के पंजीकरण को अनिवार्य बनाने पर विचार करना चाहिए। इसके अतिरिक्त कमिटी का सुझाव है कि केंद्र सरकार को उन दस्तावेजों की सूची बनानी चाहिए जिनके लिए पंजीकरण करना वैकल्पिक होगा। राज्य सरकारें दूसरे दस्तावेजों को अधिसूचित कर सकती हैं जिनमें पंजीकरण वैकल्पिक होगा।
     
  • एडॉप्शन डीड (दत्तक ग्रहण विलेख) का अनिवार्य पंजीकरणः एक्ट बेटे के एडॉप्शन को अधिकृत करने वाले दस्तावेजों के अनिवार्य पंजीकरण का प्रावधान करता है। बिल में बेटी को एडॉप्ट करने से संबंधित दस्तावेजों के पंजीकरण को भी अनिवार्य करने की बात कही गई है। कमिटी ने सुझाव दिया है कि एडॉप्शन डीड (दत्तक ग्रहण विलेख) को भी अनिवार्य रूप से पंजीकृत किया जाना चाहिए।
     
  • इलेक्ट्रॉनिक पंजीकरणः बिल में दस्तावेजों के ई-पंजीकरण का प्रस्ताव है। कमिटी ने सुझाव दिया है कि ई-पंजीकरण की अनुमति तभी दी जानी चाहिए जब उप रजिस्ट्रार कार्यालयों में ऐसी सुविधाएं उपलब्ध हों जिनकी मदद से ऑनलाइन आवेदन करने वालों की पहचान की जा सके।
     
  • परिभाषाः कमिटी ने संकेत दिया है कि रजिस्ट्रार, सब रजिस्ट्रार और रजिस्ट्रेशन ऑफिस को एक्ट में पारिभाषित नहीं किया गया है। कमिटी ने यह सुझाव दिया कि इन शब्दों की परिभाषा दी जानी चाहिए।

 

 

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