स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश

राष्ट्रीय मेडिकल कमीशन बिल, 2017  

  • स्वास्थ्य और परिवार कल्याण संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयरपर्सन : प्रोफेसर राम गोपाल यादव) ने 20 मार्च, 2018 को राष्ट्रीय मेडिकल कमीशन बिल, 2017 पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। कमिटी के मुख्य निष्कर्ष और सुझाव निम्नलिखित हैं :
     
  • राष्ट्रीय मेडिकल कमीशन (एनएमसी) की संरचना: कमिटी ने यह गौर किया कि एनएमसी प्रभावशाली तरीके से कार्य कर सके, इसके लिए उसकी सदस्य संख्या और राज्यों का प्रतिनिधित्व, जैसा कि बिल में प्रस्तावित है, को बढ़ाया जाना चाहिए। यह भी कहा गया कि एनएमसी की संरचना में चुने हुए मेडिकल प्रोफेशनल्स का उचित प्रतिनिधित्व नहीं है, चूंकि इसके 80% सदस्य नामित हैं। कमिटी ने सुझाव दिया कि एनएमसी की सदस्य संख्या को 25 से 29 किया जाए। इन 29 सदस्यों में चेयरपर्सन, 6 एक्स-ऑफिशियो सदस्य, 9 चुने हुए पंजीकृत मेडिकल प्रैक्टीशनर्स (पार्ट टाइम), राज्यों/यूटीज़ द्वारा नामित 10 सदस्य (पार्ट टाइम) और 3 अन्य पार्ट टाइम सदस्य शामिल हैं।
     
  • एनएमसी के अंतर्गत चार स्वायत्त बोर्डों के गठन के संबंध में कमिटी ने सुझाव दिया कि उनकी सदस्य संख्या को भी तीन से पांच किया जाए। कमिटी के अनुसार, केवल तीन सदस्यों द्वारा फैसला लेने से सीमित विचार प्राप्त होंगे। इनमें एथिक्स और मेडिकल रजिस्ट्रेशन बोर्ड (ईएमआरबी) नामक बोर्ड को एनएमसी से स्वतंत्र किया जाना चाहिए ताकि हितों का कोई टकराव न हो। ईएमआरबी के प्रेज़िडेंट को एनएमसी का सदस्य नहीं होना चाहिए और उसे उच्च न्यायालय का सेवानिवृत्त न्यायाधीश होना चाहिए।
     
  • अपीलीय क्षेत्राधिकार: एनएमसी के सभी फैसलों पर केंद्र सरकार का अपीलीय क्षेत्राधिकार है। इस संबंध में कमिटी ने कहा कि केंद्र सरकार को अपीलीय क्षेत्राधिकार देना शक्तियों के पृथक्करण (सेपरेशन ऑफ पावर्स) के संवैधानिक प्रावधान के अनुरूप नहीं है। कमिटी ने चेयरपर्सन और दो सदस्यों वाले मेडिकल अपीलीय ट्रिब्यूनल की स्थापना का सुझाव दिया। चेयरपर्सन को सर्वोच्च न्यायालय का वर्तमान या सेवानिवृत्त न्यायाधीश या उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश होना चाहिए। अन्य दो सदस्यों को मेडिकल प्रोफेशन एवं शिक्षा और स्वास्थ्य एडमिनिस्ट्रेशन का विशिष्ट ज्ञान होना चाहिए। एनएमसी के फैसलों पर केंद्र सरकार की बजाय इस ट्रिब्यूनल का अपीलीय क्षेत्राधिकार हो।
     
  • फी रेगुलेशन: कमिटी ने कहा कि प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों द्वारा वसूली जाने वाली फीस को रेगुलेट करने के लिए सभी राज्यों के पास अपने-अपने कानून हैं और उन्हीं के अनुसार प्रक्रियाएं अपनाई जाती हैं। कमिटी ने सुझाव दिया कि फीस को रेगुलेट करने वाली इन मौजूदा प्रणालियों को कमजोर नहीं किया जाना चाहिए।
     
  • कमिटी ने यह सुझाव भी दिया कि प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों, डीम्ड विश्वविद्यालयों और डीम्ड होने वाले (डीम्ड-टू-बी) विश्वविद्यालयों, जो किसी मौजूदा प्रणाली के अंतर्गत रेगुलेट नहीं होते, की कम से कम 50% सीटों की फीस को रेगुलेट किया जाए। विभिन्न मेडिकल कॉलेजों में फीस संबंधी विसंगतियों को दूर करने के लिए यह सुझाव दिया गया है।
     
  • लाइसेंशिएट परीक्षा: बिल के अंतर्गत किसी भी एमबीबीएस डॉक्टर को मेडिसिन प्रैक्टिस करने के लिए अनिवार्य रूप से राष्ट्रीय लाइसेंशिएट परीक्षा (एनएलई) देनी होगी। कमिटी के अनुसार, यह शंका जताई जा रही है कि अगर एनएलई को सावधानीपूर्वक डिजाइन नहीं किया गया तो बहुत से एमबीबीएस डॉक्टरों को, जिन्होंने यूनिवर्सिटी स्तर की परीक्षा पास की है, एनएलई में अयोग्य ठहराए जाने पर प्रैक्टिस करने से रोका जा सकता है। इस संबंध में कमिटी ने सुझाव दिया कि एनएलई को एमबीबीएस परीक्षा के फाइनल ईयर में शामिल कर दिया जाए और राज्य स्तर पर संचालित किया जाए।
     
  • बिल के अंतर्गत एनएलई को पोस्ट ग्रैजुएट एंट्रेंस के तौर पर प्रस्तावित किया गया है। कमिटी ने सुझाव दिया कि हालांकि एनएलई सभी ग्रैजुएट्स के बीच न्यूनतम स्टैंडर्ड को बरकरार रखने का अच्छा साधन है लेकिन इस परीक्षा को पोस्ट ग्रैजुएट एंट्रेंस की मैरिट रैंकिंग के लिए इस्तेमल नहीं किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त यह कहा गया कि एनएलई से किसी को छूट नहीं दी जानी चाहिए, जैसा कि बिल में प्रस्तावित है।
     
  • ब्रिज कोर्स: बिल के अंतर्गत आयुर्वेद, योग और नेचुरोपैथी, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी (आयुष) प्रैक्टीशनर्स विशिष्ट किस्म की आधुनिक दवाओं का नुस्खा लिखने के लिए ब्रिज कोर्स कर सकते हैं। कमिटी ने सुझाव दिया कि बिल में ब्रिज कोर्स के प्रावधान का अनिवार्य रूप से उल्लेख नहीं किया जाना चाहिए। प्रत्येक राज्य में अलग किस्म की स्वास्थ्य समस्याएं और चुनौतियां होती हैं। कमिटी ने सुझाव दिया कि राज्य मौजूदा स्वास्थ्यकर्मियों, जिसमें आयुष प्रैक्टीशनर्स, बीएससी (नर्सिंग) और बी.फार्मा भी शामिल हैं, की क्षमता बढ़ाने के लिए अपने स्तर पर उपाय कर सकते हैं। इस प्रकार वे ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़ी अपनी समस्याओं को हल कर सकेंगे।

 

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