स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश

सिनेमैटोग्राफ (संशोधन) बिल, 2019

  • सूचना प्रौद्योगिकी संबंधी स्टैंडिंग कमिटी ने सिनेमैटोग्राफ (संशोधन) बिल, 2019 पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। यह बिल सिनेमैटोग्राफ एक्ट, 1954 में संशोधन करता है। बिल निर्माता की लिखित अनुमति के बिना किसी फिल्म की प्रति बनाने या उसे प्रसारित करने के लिए रिकॉर्डिंग उपकरण का इस्तेमाल करने पर प्रतिबंध लगाता है। अनुमति के बिना फिल्म की प्रतियां बनाने वाले व्यक्ति को तीन वर्ष तक का कारावास या 10 लाख रुपए तक का जुर्माना, या दोनों भुगतने होंगे। कमिटी ने निम्नलिखित निष्कर्ष और सुझाव दिए:
     
  • बिल की जरूरत: फिल्मों का पायरेसी कॉपीराइट एक्ट, 1957 के अंतर्गत दंडनीय अपराध है। कॉपीराइट एक्ट के अंतर्गत ऐसे अपराधों की सजा में छह महीने से लेकर तीन वर्ष तक का कारावास शामिल है। कमिटी ने कहा कि सिनेमैटोग्राफ एक्ट के अंतर्गत प्रस्तावित संशोधनों की जरूरत नहीं थी क्योंकि ऐसे अपराध पहले ही दूसरे मौजूदा कानूनों के दायरे में आते हैं। इसके अतिरिक्त कमिटी ने पायरेसी से निपटने के लिए कॉपीराइट एक्ट के मौजूदा प्रावधानों के प्रभावी कार्यान्वयन पर चिंता जाहिर की।
     
  • सजा की न्यूनतम अवधि और न्यूनतम जुर्मानाबिल में निर्दिष्ट अपराध के लिए तीन वर्ष तक के कारावास, या 10 लाख रुपए तक के जुर्माने, या दोनों का प्रावधान है। कमिटी ने सुझाव दिया कि सजा की न्यूनतम अवधि और न्यूनतम जुर्माने को बिल में निर्दिष्ट किया जाना चाहिए।  
     
  • जुर्माने की अधिकतम राशिकमिटी ने कहा कि बिल के अंतर्गत प्रस्तावित अधिकतम 10 लाख रुपए का जुर्माना बहुत मामूली है और इसे बढ़ाया जाना चाहिए। कमिटी ने अधिकतम जुर्माने की राशि को फिल्म की ऑडिटेड ग्रॉस प्रोडक्शन कॉस्ट का 5% से 10तक बढ़ाने का प्रस्ताव रखा।
     
  • अपराध की प्रकृतिबिल में निर्दिष्ट अपराध की सजा में उस अपराध की प्रकृति (क्या वह अपराध जमानती है अथवा गैर जमानती) का उल्लेख नहीं है। कमिटी ने सुझाव दिया कि मंत्रालय को अस्पष्टता को दूर करने के लिए इस क्लॉज में अपराध की प्रकृति को निर्दिष्ट करने पर विचार करना चाहिए।
     
  • फेयर यूज का प्रावधानफेयर यूज से कॉपीराइट होल्डर की अनुमति लिए बिना कॉपीराइट वाली सामग्री का सीमित उपयोग किया जा सकता है। कमिटी ने कहा कि फेयर यूज कॉपीराइट एक्ट, 1952 के दायरे में आता है, सिनेमैटोग्राफ एक्ट, 1954 के दायरे में नहीं। इसलिए उसने सुझाव दिया कि बिल में फेयर यूज का प्रावधान शामिल होना चाहिए। ऐसे प्रावधान से उन लोगों को सुरक्षा मिलेगी जोकि नॉन कमर्शियल उद्देश्य से फिल्मों की शॉर्ट क्लिप्स का इस्तेमाल करते हैं (जैसे सोशल मीडिया पर शेयर करने के लिए)। 
     
  • कुछ शब्दों की परिभाषाबिल अनुमति के बिना जान-बूझकर फिल्म की प्रतियां बनाने पर प्रतिबंध लगाता है। कमिटी ने सुझाव दिया कि बिल को जान-बूझकर जैसे शब्द की परिभाषा देनी चाहिए ताकि बेकसूर लोगों को सजा न मिले।
     
  • एक्ट की कायापलटकमिटी ने कहा कि 1954 के एक्ट में सामान्य जन और मौजूदा दौर में सूचना एवं सिनेमैटोग्राफी के बदलते परिदृश्य से संबंधित विभिन्न विषय शामिल नहीं हैं। इस संबंध में कमिटी ने कहा कि मौजूदा कानून को फिल्म सर्टिफिकेशन से संबंधित विभिन्न मुद्दों से निपटने के लिए अपडेट किया जाना चाहिए। बिल में इन मुद्दों को लक्षित नहीं किया गया है। इसलिए कमिटी ने सुझाव दिया कि इसके मद्देनजर एक्ट को भविष्य में संशोधित किया जाना चाहिए।  
  • सीमा पारीय पायरेसी को रोकने के लिए व्यवस्था: कमिटी ने कहा कि भारत ने एंटी काउंटरफीटिंग ट्रेड एग्रीमेंट पर दस्तखत नहीं किए हैं। ऐसे व्यापार समझौतों में विभिन्न देशों के बीच इंटिलेक्चुल प्रॉपर्टी राइट्स से संबंधित अनेक विषय, जैसे फिल्में और संगीत शामिल होते हैं। इसलिए बिल के प्रावधानों को उन स्थिति में लागू करना मुश्किल होगा, जहां सीमा पार से डिजिटल पायरेसी की जाती है। कमिटी ने सुझाव दिया कि यूएसए और यूके जैसे देशों के डिजिटल इकोनॉमी एक्ट के अनुरूप राष्ट्रीय कानून पर विचार किया जाना चाहिए। ऐसा कानून अन्य देशों के साथ इन मामलों पर बातचीत के लिए कानूनी आधार प्रदान करेगा।

 

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