स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश

एंटी मैरीटाइम पायरेसी बिल, 2019 

  • विदेशी मामलों से संबंधित स्टैंडिंग कमिटी (चेयरपी.पी.चौधरी) ने 11 फरवरी, 2021 को एंटी मैरीटाइम पायरेसी बिल, 2019 पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। बिल मैरीटाइम पायरेसी रोकने और पायरेसी के अपराधियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई का प्रावधान करता है। यह संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि (यूएनसीएलओएस), 1982 के पायरेसी से संबंधित प्रावधानों को लागू करने का प्रयास करता है। कमिटी के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
     
  • बिल की एप्लिकेबिलिटीबिल में प्रावधान है कि वह भारत के एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक जोन (ईईज़ेड) की सीमाओं से लगे और उससे परे के सभी समुद्री भागों, यानी समुद्री तट के 200 नॉटिकल मील के परे सभी हिस्सों पर लागू होगा। कमिटी ने कहा है कि यूएनसीएलओएस के अंतर्गत विभिन्न देशों को अपने ईईज़ेड में एंटी पायरेसी संबंधी गतिविधियां संचालित करने का अधिकार है। उसने सुझाव दिया कि बिल की एप्लिकेबिलिटी में ईईज़ेड को भी शामिल किया जाए। 
     
  • पायरेसी की परिभाषा: बिल में पायरेसी का अर्थ है, किसी निजी जहाज या एयरक्राफ्ट के चालक दल या यात्रियों द्वारा निजी उद्देश्य के लिए किसी जहाज, एयरक्राफ्ट, व्यक्ति या प्रॉपर्टी के खिलाफ हिंसा, बंधक बनाने या नष्ट करने की गैरकानूनी कार्रवाई करना। कमिटी ने कहा कि यह परिभाषा यूएनसीएलओएस के अनुरूप है।
     
  • हालांकि उसने सुझाव दिया कि इस परिभाषा में वेसल (जलयान) को शामिल किया जाए ताकि जल परिवहन के सभी साधन इसके दायरे में आ जाएं। कमिटी ने यह भी कहा कि पायरेसी का कार्य चालक दल या यात्रियों के अलावा कोई अन्य व्यक्ति भी कर सकता है। उसने सुझाव दिया कि लोगों की परिभाषा में अन्य व्यक्ति को जोड़ा जाए जोकि पायरेसी कर सकते हैं।
     
  • पायरेसी के लिए सजाबिल में प्रावधान है कि पायरेसी करने पर निम्नलिखित सजा हो सकती है (iआजीवन कारावास, या (ii) मृत्यु, अगर पायरेसी में हत्या की कोशिश शामिल है और उसके कारण किसी की मृत्यु हो जाती है। कमिटी ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि अनिवार्य मृत्यु दंड का प्रावधान मनमाना और अनुचित है और संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन है। इसके अतिरिक्त उसने कहा कि अन्य कानूनों के प्रावधान जोकि अनिवार्य मृत्यु दंड का प्रावधान करते थे, उन्हें अदालतों ने रद्द कर दिया है। हालांकि कमिटी ने सुझाव दिया है कि पायरेसी करने के दौरान अगर नतीजा किसी की मृत्यु होता है तो उसके लिए अनिवार्य मृत्यु दंड का प्रावधान किया जा सकता है। उसने यह भी कहा कि अगर पायरेसी की कोशिश में किसी की मृत्यु नहीं होती तो मृत्यु दंड नहीं दिया जाना चाहिए।
     
  • गिरफ्तारी और जब्तीबिल में प्रावधान है कि अंतरराष्ट्रीय जलक्षेत्र में या भारत के क्षेत्राधिकार से बाहर पायरेट्स के नियंत्रण वाले जहाज या एयरक्राफ्ट को जब्त किया जा सकता है। कमिटी ने सुझाव दिया कि इस प्रावधान में सिर्फ भारत ही नहीं, ‘किसी भी राज्य’ के क्षेत्राधिकार से बाहर का क्षेत्र शामिल किया जाए ताकि सार्वभौमिक क्षेत्राधिकार इसके दायरे में आ जाए जोकि यूएनसीएलओएस में भी स्पष्ट है। इसके अतिरिक्त अदालत के आदेश से जब्त की गई प्रॉपर्टी का निपटारा किया जा सकता है। 
     
  • कमिटी ने यह भी कहा कि बिल पायरेट जहाज या एयरक्राफ्ट, या पायरेट्स के नियंत्रण वाले जहाजों और एयरक्राफ्ट्स की गिरफ्तारी और जब्ती का प्रावधान करता है। वह उस स्थिति में कार्रवाई करने का प्रावधान नहीं करता, जब पायरेसी का संहेद हो। कमिटी ने सुझाव दिया कि अधिकृत कर्मचारी ऐसा संदेह होने की स्थिति में उचित आधार पर मुआयने के अधिकार का इस्तेमाल कर सकते हैं, कि जलयान पायरेसी में शामिल है।   
     
  • अदालतों का क्षेत्राधिकारबिल में प्रावधान है कि किसी विदेशी जहाज पर किए गए अपराध निर्दिष्ट अदालत के क्षेत्राधिकार में नहीं आते, जब तक निम्नलिखित के द्वारा हस्तक्षेप का अनुरोध नहीं किया जाता: (i) जहाज का मूल देश, (ii) जहाज का मालिक, या (iii) जहाज पर मौजूद कोई अन्य व्यक्ति। कमिटी ने सुझाव दिया कि इस प्रावधान को हटा दिया जाए।
     
  • इसके अतिरिक्त बिल में प्रावधान है कि अदालत किसी व्यक्ति पर तब भी विचार कर सकती है, जब वह अदालत में शारीरिक रूप से मौजूद न हो। कमिटी ने कहा कि यह संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है जोकि प्रावधान करता है कि कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अतिरिक्त किसी और प्रकार से किसी व्यक्ति को उसके जीवन या स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता। कमिटी ने गैरमौजूदगी की स्थिति में मुकदमा चलाए जाने पर कुछ सुरक्षात्मक कदम उठाने का सुझाव दिया, जैसे: (iअगर आरोपी को मुकदमे की जानकारी है, (iiवकील उसकी जगह ले ले, और (iiiआरोपी तय समय में अपील का अनुरोध नहीं करता। 
     
  • संबद्ध मंत्रालयों के बीच समन्वयबिल में प्रावधान है कि केंद्र सरकार विभिन्न विषयों, जैसे गिरफ्तारी का अधिकार, जांच और प्रॉसीक्यूशन, निर्दिष्ट अदालत और उसका क्षेत्राधिकार, निर्दिष्ट अदालत द्वारा अपराध पर मुकदमा चलाना, पर नियम बनाएगी। कमिटी ने कहा कि पायरेसी में कई मंत्रालय जैसे विदेशी मामलों का मंत्रालय, गृह मामलों का मंत्रालय, कानून एवं न्याय तथा शिपिंग मंत्रालय शामिल होते हैं। उसने सुझाव दिया कि नियमों में विभिन्न एजेंसियों और विभागों की स्पष्ट भूमिका स्पष्ट की जाए और राज्य सरकारों सहित सभी संबंधित एजेंसियों को शामिल करके एक समन्वय प्रणाली तैयार की जाए।  
     
  • इसके अतिरिक्त कमिटी ने सुझाव दिया कि गृह मामलों का मंत्रालय एक तय समय सीमा में पायरेट्स के निर्वासन और प्रत्यर्पण के लिए स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर्स बनाए ताकि कानून को लागू करने में देरी न हो।

 

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