मंत्रालय: 
वित्त
  • वित्त और कॉरपोरेट मामलों के मंत्री पीयूष गोयल ने 23 जुलाई, 2018 को इनसॉल्वेंसी और बैंकरप्सी संहिता (दूसरा संशोधन) बिल, 2018 पेश किया। बिल इनसॉल्वेंसी और बैंकरप्सी संहिता, 2016 में संशोधन करता है और इनसॉल्वेंसी और बैंकरप्सी संहिता (संशोधन) अध्यादेश, 2018 का स्थान लेता है जिसे 6 जून, 2018 को जारी किया गया था। संहिता कंपनियों और व्यक्तियों के बीच इनसॉल्वेंसी को रिज़ॉल्व करने के लिए एक समयबद्ध प्रक्रिया प्रदान करती है। इनसॉल्वेंसी वह स्थिति है, जब व्यक्ति या कंपनियां अपना बकाया ऋण नहीं चुका पाते।
     
  • फाइनांशियल क्रेडिटर्स (वित्तीय लेनदार): संहिता स्पष्ट करती है कि फाइनांशियल क्रेडिटर्स ऐसे व्यक्ति होते हैं जिनका वित्तीय ऋण बकाया होता है। इस ऋण में ऐसी कोई भी राशि शामिल है जिसे कमर्शियल स्तर पर उधार लेकर जमा किया गया है। बिल स्पष्ट करता है कि रियल ऐस्टेट प्रॉजेक्ट में एलॉटी को फाइनांशियल क्रेडिटर माना जाएगा। एलॉटी में ऐसे सभी लोग शामिल हैं जिन्हें प्लॉट, अपार्टमेंट या बिल्डिंग एलॉट की गई है, बेची गई है या प्रमोटर (रियल ऐस्टेट डेवलपर या डेवलपमेंट अथॉरिटी) द्वारा ट्रांसफर की गई है।
     
  • फाइनांशियल क्रेडिटर्स के प्रतिनिधि: बिल स्पष्ट करता है कि कुछ मामलों में, जैसे जब ऋण क्रेडिटर्स के एक समूह पर बकाया है, कमिटी ऑफ क्रेडिटर्स में फाइनांशियल क्रेडिटर्स का प्रतिनिधित्व अधिकृत प्रतिनिधियों द्वारा किया जाएगा। क्रेडिटर्स से मिलने वाले पूर्व निर्देशों के अनुसार, ये प्रतिनिधि कमिटी ऑफ क्रेडिटर्स में वोट देंगे। अध्यादेश के अंतर्गत फाइनांशियल क्रेडिटर्स मिल-जुलकर इस प्रतिनिधि को मेहनताना चुकाएंगे। बिल इसमें परिवर्तन करते हुए कहता है कि यह मेहनताना इनसॉल्वेसी रेज़ोल्यूशन की लागत का हिस्सा होगा।
     
  • कमिटी ऑफ क्रेडिटर्स की वोटिंग की सीमा: संहिता यह स्पष्ट करती है कि फाइनांशियल क्रेडिटर्स के कम से कम 75% बहुमत के साथ कमिटी ऑफ क्रेडिटर्स अपने सभी फैसले लेगी। बिल इस सीमा को कम करके 51% करता है। कमिटी के कुछ फैसलों के लिए वोटिंग की सीमा 75% से कम करके 66% की गई है। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं : (i) रेज़ोल्यूशन प्रोफेशनल की नियुक्ति और उनका रिप्लेसमेंट, और (ii) रेज़ोल्यूशन प्लान को मंजूरी।
     
  • रेज़ोल्यूशन एप्लीकेंट की अयोग्यता: बिल उस मानदंड में संशोधन करता है जोकि कुछ व्यक्तियों को रेज़ोल्यूशन प्लान सौंपने से प्रतिबंधित करता है। उदाहरण के लिए संहिता ऐसे व्यक्ति को रेज़ोल्यूशन एप्लीकेंट होने से रोकती है जिसे किसी अपराध के लिए दो या उससे अधिक वर्षों के कारावास की सजा हुई है है। बिल के अंतर्गत यह प्रावधान केवल कुछ खास अपराधों पर लागू होगा और उसके जेल से रिहा होने की तारीख के दो वर्ष बाद लागू नहीं होगा।
     
  • बिल उस मानदंड में संशोधन करता है जो कुछ व्यक्तियों को रेज़ोल्यूशन एप्लीकेंट होने से रोकता है। उदाहरण के लिए संहिता किसी ऐसे व्यक्ति को रेज़ोल्यूशन एप्लीकेंट होने से रोकती है, जिसके एकाउंट को एक वर्ष से अधिक समय से नॉन परफॉर्मिंग एसेट (एनपीए) के रूप में चिन्हित किया गया है। बिल प्रावधान करता है कि यह मानदंड लागू नहीं होगा, अगर वह एप्लीकेंट एक फाइनांशियल एंटिटी है और देनदार से संबंधित पक्ष नहीं है (कुछ अपवादों को छोड़कर)। दूसरी ओर संहिता डीफॉल्टर के गारंटर को भी रेज़ोल्यूशन एप्लीकेंट होने से रोकती है। बिल स्पष्ट करता है कि यह प्रतिबंध उस स्थिति में लागू होगा, जब क्रेडिटर ने ऐसी गारंटी का इस्तेमाल कर लिया है, लेकिन ऋण नहीं चुकाया है।
     
  • सूक्ष्म, लघु और मध्यम दर्जे के उपक्रमों (एमएसएमईज़) पर संहिता का लागू होना: बिल कहता है कि एमएसएमईज़ के रेज़ोल्यूशन के लिए आवेदन करने वाले व्यक्तियों पर एनपीएज़ और गारंटरों से संबंधित अयोग्यता के मानदंड लागू नहीं होंगे। संहिता के प्रावधानों को एमएसएमईज़ पर लागू करते समय केंद्र सरकार उनमें परिवर्तन कर सकती है या उन्हें हटा सकती है।
     
  • कॉरपोरेट रेज़ोल्यूशन: बिल प्रावधान करता है कि इनसॉल्वेंसी रेज़ोल्यूशन प्रोसेस को शुरू करने वाले कॉरपोरेट एप्लीकेंट को स्पेशल रेज़ोल्यूशन सौंपना होगा। इस स्पेशल रेज़ोल्यूशन को कॉरपोरेट देनदार के कम से कम तीन चौथाई पार्टनर्स द्वारा मंजूर किया जाना चाहिए।
     
  • सौंपी गई एप्लीकेशंस को वापस लेना: बिल के अंतर्गत रेज़ोल्यूशन एप्लीकेंट राष्ट्रीय कंपनी कानून ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) में दायर की गई किसी एप्लीकेशन को वापस ले सकता है वापसी के इस प्रस्ताव को कमिटी ऑफ क्रेडिटर्स के 90% वोट द्वारा मंजूर किया जाना चाहिए।
     
  • रेज़ोल्यूशन प्लान्स को लागू करना: अध्यादेश स्पष्ट करता है कि एनसीएलटी को किसी रेज़ोल्यूशन प्लान को मंजूर करने से पहले यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उसे प्रभावी तरीके से लागू किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त एक बार प्लान के मंजूर होने के बाद रेज़ोल्यूशन एप्लीकेंट को एक साल के भीतर सभी जरूरी मंजूरियां हासिल करनी होंगी जो कानून के हिसाब से जरूरी हों। बिल इसमें एक शर्त जोड़ता है। बिल कहता है कि अगर रेज़ोल्यूशन प्लान में उद्यम के अधिग्रहण या मर्जर का कोई प्रावधान है तो रेज़ोल्यूशन एप्लीकेंट को भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (कॉम्पिटीशन कमीशन ऑफ इंडिया) से इस संबंध में मंजूरी हासिल करनी होगी। यह मंजूरी क्रेडिटर्स कमिटी द्वारा रेज़ोल्यूशन प्लान मंजूर करने से पहले हासिल करनी होगी।

 

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