मंत्रालय: 
विदेशी मामले

 बिल की मुख्‍य विशेषताएं

  • बिल भारतीय अथॉरिटीज़ को अंतरराष्ट्रीय जलक्षेत्र (हाई सी) में पायरेसी के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए सक्षम बनाता है। बिल संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि के मद्देनजर पेश किया गया है। यह एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक जोन (ईईजेड) से परे के समुद्र, यानी भारतीय समुद्री तट के 200 नॉटिकल मील से परे लागू होता है।
     
  • बिल के अनुसार पायरेसी का अर्थ है, किसी निजी जहाज या एयरक्राफ्ट के चालक दल या यात्रियों द्वारा निजी उद्देश्य के लिए किसी जहाज, एयरक्राफ्ट, व्यक्ति या प्रॉपर्टी के खिलाफ हिंसा, उन्हें बंधक बनाने या नष्ट करने की गैरकानूनी कार्रवाई करना।   
     
  • पायरेसी में हिंसा के लिए उकसाना या जानबूझकर इस कार्रवाई को आसान बनाना, तथा  जहाज या एयरक्राफ्ट की पायरेसी में स्वेच्छा से भाग लेना भी शामिल है।
     
  • पायरेसी करने पर निम्नलिखित सजा है: (i) आजीवन कारावास, या (ii) मृत्यु, अगर पायरेसी में हत्या की कोशिश शामिल है और उसके कारण किसी की मृत्यु हो जाती है।
     
  • अगर कोई पायरेसी के कार्य में भाग लेता है, उसकी योजना बनाता है, उसमें मदद करता और उसे समर्थन देता है, पायरेसी की कोशिश करता है और किसी दूसरे को पायरेसी में भाग लेने का निर्देश देता है तो उसके लिए 14 साल तक की सजा भुगतनी पड़ेगी और जुर्माना भरना पड़ेगा।

प्रमुख मुद्दे और विश्‍लेषण

  • बिल के अंतर्गत अगर पायरेसी के दौरान कोई व्यक्ति किसी की हत्या कर देता है या हत्या करने की कोशिश करता है तो उसे मृत्यु दंड मिलेगा। इसका अर्थ यह है कि ऐसे अपराधों के लिए मृत्यु दंड अनिवार्य है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि किसी अपराध के लिए अनिवार्य मृत्यु दंड असंवैधानिक है क्योंकि यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन करता है। हालांकि संसद ने कुछ अपराधों के लिए अनिवार्य मृत्यु दंड का प्रावधान करने वाले कानून पारित किए हैं।
     
  • बिल में प्रावधान है कि अगर कोई व्यक्ति पायरेसी के कार्य में भाग लेता है तो उसे 14 वर्ष तक की कैद हो सकती है। पायरेसी करने (जिसमें जहाज या एयरक्राफ्ट की पायरेसी के कार्य में स्वेच्छा से भाग लेना शामिल है) के लिए आजीवन कारावास की सजा है। चूंकि ये परिस्थितियां ओवरलैप हो सकती हैं, इसलिए यह अस्पष्ट है कि ऐसे मामलों में सजा को किस प्रकार निर्धारित किया जाएगा।
     
  • बिल भारत के एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक जोन (ईईजेड) से सटे और उसके परे के समुद्र, यानी समुद्री तट के 200 नॉटिकल मील के परे सभी हिस्सों पर लागू होगा। सवाल यह है कि क्या बिल में ईईजेड को भी शामिल होना चाहिए यानी 12 नॉटिकल मील और 200 नॉटिकल मील (भारत के समुद्री तट से) के बीच का क्षेत्र भी शामिल होना चाहिए।

भाग क : बिल की मुख्य विशेषताएं

संदर्भ

1982 के संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि (यूएनसीएलओएस) के अनुसार पायरेसी में अंतरराष्ट्रीय जलक्षेत्र या किसी राज्य के क्षेत्राधिकार से बाहर के क्षेत्र में जहाज में मौजूद किसी व्यक्ति या संपत्ति के खिलाफ निजी उद्देश्य से हिंसा करना, उन्हें बंधक बनाना या नष्ट करना शामिल है।[1]  पायरेसी से समुद्र से यात्रा करने वाले लोगों तथा नौपरिवहन एवं वाणिज्य की सुरक्षा को जोखिम होता है और इससे मैरीटाइम सुरक्षा भी खतरे में पड़ती है।[2]  इससे जीवन का नुकसान होता है, शारीरिक हानि होती है, लोगों को बंधक बनाया जाता है, वाणिज्य और नौपरिवहन में रुकावट आती है और जहाज मालिकों को वित्तीय नुकसान होता है। अंतरराष्ट्रीय मैरीटाइम संगठन के अनुसार, 2018 और 2019 के दौरान विश्व स्तर पर पायरेसी के 84 मामले दर्ज किए गए थे।[3]

वर्तमान में भारत में मैरीटाइम पायरेसी पर कोई घरेलू कानून नहीं है। पूर्व में, पायरेट्स पर मुकदमा चलाने के लिए भारतीय दंड संहिता, 1860 (आईपीसी) के सशस्त्र डकैती संबंधी प्रावधानों का इस्तेमाल किया गया है या कुछ अदालतों के एडमिलैरिटी न्यायक्षेत्रों के जरिए उन पर मुकदमा चलाया गया है।[4]  हालांकि भारत की प्रभुता सिर्फ देश के क्षेत्रीय जल तक ही है (समुद्री तट से 12 नॉटिकल मील)।[5] भारत के क्षेत्रीय जल से परे किसी विदेशी द्वारा पायरेसी करना आईपीसी के अंतर्गत अपराध नहीं होता। उदाहरण के लिए एलोंद्रा रेनबो मामले (1999) में मुंबई उच्च न्यायालय ने आरोपी को इस आधार पर बरी कर दिया था कि उस पर मुकदमा चलाना भारत के न्यायक्षेत्र में नहीं आता।4  

1995 में भारत ने यूएनसीएलओएस को मंजूर किया जोकि पायरेसी के कृत्यों को काबू करने के लिए एकसमान अंतरराष्ट्रीय कानूनी संरचना प्रदान करता है। इसके बाद अप्रैल 2012 में लोकसभा में पायरेसी बिल, 2012 को पेश किया गया। 15वीं लोकसभा के भंग होने के साथ यह बिल लैप्स हो गया। इसके बाद 9 दिसंबर, 2019 को लोकसभा में एंटी-मैरीटाइम पायरेसी बिल, 2019 को पेश किया गया। फिर इसे विस्तृत समीक्षा के लिए विदेशी मामलों की स्टैंडिंग कमिटी के पास भेज दिया गया।

मुख्य विशेषताएं 

बिल मैरीटाइम पायरेसी रोकने और पायरेसी संबंधी अपराध करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई का प्रावधान करता है। यह एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक जोन (ईईजेड) की सीमा से सटे और उसके परे के समुद्र, यानी समुद्री तट के 200 नॉटिकल मील के परे सभी हिस्सों पर लागू होगा।   

पायरेसी की परिभाषा

  • बिल के अनुसार पायरेसी का अर्थ है, किसी निजी जहाज या एयरक्राफ्ट के चालक दल या यात्रियों द्वारा निजी उद्देश्य के लिए किसी जहाज, एयरक्राफ्ट, व्यक्ति या प्रॉपर्टी के खिलाफ हिंसा, उन्हें बंधक बनाने या नष्ट करने की गैरकानूनी कार्रवाई करना। ये कृत्य अंतरराष्ट्रीय जलक्षेत्र (भारत के एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक जोन से परे) में किए जा सकते हैं या भारत के न्यायक्षेत्र के बाहर किसी स्थान पर। ऐसे कार्य को उकसाने या जानबूझकर इस कार्रवाई को आसान बनाने को भी पायरेसी माना जाएगा। इसमें ऐसी कार्रवाई भी शामिल है जिसे अंतरराष्ट्रीय कानून के अंतर्गत पायरेसी माना जाता है।
     
  • पायरेट जहाज या पायरेसी के लिए इस्तेमाल होने वाले एयरक्राफ्ट के संचालन में स्वैच्छिक रूप से हिस्सा लेना भी पायरेसी कहलाता है।

अपराध और सजा

  • पायरेसी पर निम्नलिखित दंड दिए जाएंगे: (i) आजीवन कारावास, या (ii) मृत्यु, अगर पायरेसी के कार्य के दौरान किसी की हत्या हो जाती है या हत्या की कोशिश की जाती है। अगर कोई पायरेसी करने की कोशिश करता है, उसमें मदद और उसका समर्थन करता है, उसके लिए सलाह देता है तो उसके लिए 14 साल तक की सजा भुगतनी पड़ेगी और जुर्माना भरना पड़ेगा। पायरेसी के कार्य में भाग लेने, उसके लिए संगठित करने, या दूसरे को इसमें भाग लेने का निर्देश देने पर भी 14 साल की कैद हो सकती है और जुर्माना भरना पड़ सकता है।
     
  • अपराधों को प्रत्यर्पण योग्य माना जाएगा। इसका अर्थ यह है कि आरोपी को कानूनी प्रक्रिया के लिए ऐसे किसी भी देश में ट्रांसफर किया जा सकता है जिसके साथ भारत ने प्रत्यर्पण संधि पर हस्ताक्षर किए हैं। ऐसी संधियों के अभाव में अपराध देशों के बीच पारस्परिकता के आधार पर प्रत्यर्पण योग्य होंगे।

अदालतों का न्यायक्षेत्र 

  • केंद्र सरकार संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की सलाह से सत्र अदालतों को बिल के अंतर्गत निर्दिष्ट अदालत के रूप में अधिसूचित कर सकती है। वह प्रत्येक निर्दिष्ट अदालत के लिए क्षेत्राधिकार को भी अधिसूचित कर सकती है। निर्दिष्ट अदालत निम्नलिखित द्वारा किए गए अपराधों पर विचार करेगी: (i) वह व्यक्ति जो भारतीय नौसेना या तटरक्षकों की कस्टडी में है, भले ही वह किसी भी देश का नागरिक हो, (ii) भारत का नागरिक, भारत में रहने वाला विदेशी नागरिक या राष्ट्रविहीन (स्टेटलेस) व्यक्ति। इसके अतिरिक्त अदालत किसी व्यक्ति पर तब भी विचार कर सकती है, जब वह अदालत में शारीरिक रूप से मौजूद न हो।
     
  • किसी विदेशी जहाज पर किए गए अपराध अदालत के क्षेत्राधिकार में नहीं आते, जब तक निम्नलिखित के द्वारा हस्तक्षेप का अनुरोध नहीं किया जाता: (i) जहाज का मूल देश, (ii) जहाज का मालिक, या (iii) जहाज पर मौजूद कोई अन्य व्यक्ति। 
     
  • युद्धपोत और गैर कमर्शियल उद्देश्यों के लिए काम आने वाले सरकारी जहाज अदालत के क्षेत्राधिकार में नहीं आएंगे।

भाग ख: प्रमुख मुद्दे और विश्‍लेषण

पायरेसी की सजा 

अनिवार्य मृत्यु दंड का प्रावधान असंवैधानिक माना गया है 

बिल के अंतर्गत अगर कोई व्यक्ति पायरेसी करते समय किसी की मृत्यु का कारण बनता है, या ऐसा प्रयास करता है तो उसे मृत्यु दंड मिल सकता है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि किसी अपराध के लिए अनिवार्य मृत्यु दंड संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन है। अदालत ने कहा है कि अनिवार्य मृत्यु दंड का प्रावधान मनमाना और अनुचित है, चूंकि यह प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर ध्यान नहीं देता और अदालतों को मृत्यु दंड देने के अपने विवेक का इस्तेमाल करने के अधिकार से वंचित करता है।7,8  सर्वोच्च न्यायालय ने रेयरेस्ट ऑफ रेयर मामलों में मृत्यु दंड देने की बात कही है और यह निर्धारित करने के लिए मानदंड जारी किए हैं कि किसी आरोपी को मौत की सजा मिलनी चाहिए अथवा नहीं।[6]  

जिन मामलों में अदालत ने ऐसे प्रावधानों को रद्द किया है, उनमें निम्नलिखित शामिल हैं(i) भारतीय दंड संहिता, 1860 का सेक्शन 303 जिसमें उन अपराधियों के लिए अनिवार्य मृत्यु दंड का प्रावधान है जिन्होंने उम्रकैद की सजा काटते हुए हत्या की है, और (iiआर्म्स एक्ट, 1959 का सेक्शन 27 (3) जिसमें उन मामलों में प्रतिबंधित हथियारों के इस्तेमाल के लिए अनिवार्य मृत्यु दंड का प्रावधान है जिसके परिणामस्वरूप किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाए।[7],[8] 

हालांकि संसद ने कई कानून पारित किए हैं जिनमें अनिवार्य मृत्यु दंड का प्रावधान है। इनमें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) एक्ट 1989 (एससी/एसटी एक्ट), समुद्री नौवहन और महाद्वीपीय जलसीमा में स्थिर प्लेटफॉर्म्स की सुरक्षा के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधियों का दमन एक्ट, 2002 और अपहरण रोधी एक्ट, 2016 शामिल हैं।[9] उल्लेखनीय है कि एससी/एसटी एक्ट के अंतर्गत अनिवार्य मृत्यु दंड को चुनौती देने वाली एक याचिका सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है।[10]

बिल संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि (यूएनसीएलओएस) को मंजूरी देता है। दूसरे देशों, जैसे युनाइडेट स्टेट्स ऑफ अमेरिका, केन्या, ऑस्ट्रेलिया, इटली और श्रीलंका ने भी यूएनसीएलओएस को मंजूरी दी है और मैरीटाइम पायरेसी को रोकने के लिए ऐसे ही कानून बनाए हैं लेकिन उनमें अनिवार्य मृत्यु दंड का प्रावधान नहीं है।[11]

उल्लेखनीय है कि भारतीय दंड संहिता, 1860 के अंतर्गत हत्या की कोशिश करने पर अधिकतम सजा आजीवन कारावास है (अगर कोई नुकसान होता है)।[12]  बिल में पायरेसी के दौरान हत्या करने की कोशिश के लिए अनिवार्य मृत्यु दंड का प्रावधान है।

कुछ अन्य कार्य भिन्न अपराधों के अंतर्गत आ सकते हैं और उनके लिए अन्य सजाएं हो सकती हैं

बिल में पायरेसी इस प्रकार परिभाषित है: (iकिसी जहाज, एयरक्राफ्ट, व्यक्ति या प्रॉपर्टी के खिलाफ हिंसा, उन्हें बंधक बनाने या नष्ट करने की गैरकानूनी कार्रवाईया (iiऐसे गैरकानूनी कार्य के लिए उकसाना या जानबूझकर उसे आसान बनाना, या (iiiपायरेट जहाज के संचालन में स्वेच्छा से हिस्सा लेना। पायरेसी करने पर किसी व्यक्ति को निम्नलिखित सजा होगी(i) आजीवन कारावास, या (ii) मृत्यु, अगर पायरेसी में हत्या की कोशिश शामिल है और उसके कारण किसी की मृत्यु हो जाती है। 

हालांकि बिल के दूसरे क्लॉज में प्रावधान है कि अगर कोई पायरेसी के कार्य में मदद देता है, उसमें भाग लेता है, उसकी योजना बनाता है, या किसी दूसरे को पायरेसी में भाग लेने का निर्देश देता है तो उसके लिए 14 साल तक की सजा भुगतनी पड़ेगी और जुर्माना भरना पड़ेगा। दोनों क्लॉजेज़ में अपराध एक समान हैं। यह अस्पष्ट है कि कौन सी सजा किन परिस्थितियों पर लागू होगी।

जैसे क नामक व्यक्ति ख नामक किसी दूसरे व्यक्ति को अंतरराष्ट्रीय जलक्षेत्र में किसी जहाज को नुकसान पहुंचाने का निर्देश देता है। इस पर क को दो तरह से आरोपित किया जा सकता है: (iपायरेसी के कार्य को करने के लिए उकसाने का कार्य, और इसके लिए उसे आजीवन कारावास या मृत्यु दंड मिलेगा, या (iiदूसरे व्यक्ति को पायरेसी के कार्य में भाग लेने का निर्देश देना, और इसके लिए उसे 14 वर्ष तक के कारावास की सजा होगी और जुर्माना भरना पड़ेगा। इसी प्रकार पायरेसी का कार्य करना और पायरेसी के कार्य में भाग लेना’, इनकी एक जैसी व्याख्या हो सकती है। पायरेसी में सहायता और मदद करना, जानबूझकर पायरेसी को आसान बनाने या पायरेट जहाज के संचालन में स्वेच्छा से भाग लेने (पायरेसी की परिभाषा के दायरे में शामिल) के समान हो सकता है। 

उल्लेखनीय है कि पायरेसी पर अंतरराष्ट्रीय कानून से संबंधित संयुक्त राष्ट्र दिशानिर्देशों (2011) में कहा गया है कि सिर्फ पायरेसी करना तो अपराध है ही, इस अपराध में भाग लेने के सभी तरीकों, जैसे आयोजित करने, उकसाने, सहायता और प्रेरित करने, उसे आसान बनाने और परामर्श देने को भी अपराध माना जाए।[13]  संगठित अपराध को काबू में करने के लिए ऐसा किया जाए क्योंकि हर अपराधी इस कार्य में सीधे तरीके से शामिल नहीं होता। दिशानिर्देशों में यह भी कहा गया है कि हालांकि पायरेसी की परिभाषा में इन कार्यों के लिए कानूनी कार्रवाई की अनुमति है लेकिन कई देशों के घरेलू कानूनों में इनका स्पष्ट उल्लेख की जरूरत हो सकती है ताकि कानूनी कार्रवाई के लिए आधार मिल सके।13   

बिल का भौगोलिक दायरा 

बिल के उद्देश्यों और कारण के कथन में कहा गया है कि पायरेसी के मामले बढ़ रहे हैं जिसमें भारत के एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक जोन (ईईजेड) में घटित होने वाले हादसे भी शामिल हैं। ईईजेड भारत की तटीय क्षेत्र से 12 नॉटिकल मील और 200 नॉटिकल मील के बीच का क्षेत्र है। बिल ईईजेड से सटे और उसके परे के समुद्र के सभी हिस्सों पर लागू होता है। इसलिए यह अंतरराष्ट्रीय जलक्षेत्र पर लागू होगा जोकि भारत के समुद्री तट के 200 नॉटिकल मील के परे है। सवाल यह है कि क्या बिल ईईजेड पर भी लागू होना चाहिए।

भारत की संप्रभुता उसके तटीय जल तक है (समुद्र तट से 12 नॉटिकल मील तक) जिसका अर्थ यह है कि देश के सभी घरेलू कानून इस क्षेत्र में लागू होते हैं।5 तटीय जल से बाहर पायरेट्स पर कानूनी कार्रवाई करना एक चुनौती है क्योंकि भारत में मैरीटाइम पायरेसी पर कोई घरेलू कानून नहीं है।4  बिल इसका उपाय करने का प्रयास करता है। 

ईईजेड पर भारत के सीमित अधिकार हैं (जैसे प्राकृतिक संसाधनों को खोजना, उनका दोहन और प्रबंधन करना)।5  वर्तमान में ईईजेड में पायरेसी की कुछ कार्रवाइयां (जैसे जहाज के खिलाफ हिंसा की कार्रवाई और जहाज को कब्जे में करना) समुद्री नौवहन और महाद्वीपीय जलसीमा में स्थिर प्लेटफॉर्म्स की सुरक्षा के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधियों का दमन एक्ट (एसयूए एक्ट), 2002 के दायरे में शामिल हैं।[14] हालांकि एसयूए एक्ट, 2002 में यूएनसीएलओएस के अंतर्गत परिभाषित पायरेसी की सभी कार्रवाइयां शामिल नहीं हैं। उदाहरण के लिए चोरी की कार्रवाई ईईजेड में किसी जहाज की सुरक्षा को खतरा नहीं पहुंचाएगी और एसयूए एक्ट, 2002 में शामिल नहीं होगी। लेकिन यूएनसीएलओएस और इस बिल के अंतर्गत पायरेसी की कार्रवाई मानी जाएगी।

यूएनसीएलओएस कहता है कि पायरेसी से संबंधित प्रावधान ईईजेड और अंतरराष्ट्रीय जलक्षेत्र, दोनों पर लागू होने चाहिए।[15] उल्लेखनीय है कि पायरेसी बिल, 2012 (जो लैप्स हो गया है) के भौगोलिक दायरे में ईईजेड भी शामिल था।[16]  

निम्नलिखित रेखाचित्र में भारत में विभिन्न मैरीटाइम जोन्स की भौगोलिक सीमा को दर्शाया गया है।

रेखाचित्र 1: विभिन्न मैरीटाइम जोम्स की भौगोलिक सीमा

  

नोट: नॉमी का अर्थ, है नॉटिकल मील, 1नॉमी = 1.852 किलोमीटर 
Sources: The Territorial Waters, Continental Shelf, Exclusive Economic Zone and Other Maritime Zones Act, 1976; PRS.

 

[1].  United Nations Convention on the Law of the Sea, https://www.un.org/depts/los/convention_agreements/texts/unclos/unclos_e.pdf.

[2].  Piracy under international law, Oceans and Law of the Sea, United Nations, https://www.un.org/depts/los/piracy/piracy.htm.

[3].  Global Integrated Shipping Information System, Piracy Reports, International Maritime Organisation, last accessed on July 29, 2020, http://www.imo.org/en/OurWork/Security/PiracyArmedRobbery/Reports/Pages/Default.aspx.  

[4].  Report no16, on The Piracy Bill, 2012, Ministry of External Affairs, August 14, 2012, https://prsindia.org/sites/default/files/bill_files/SC_Piracy_Bill_2012.pdf.

[5].  The Territorial Waters, Continental Shelf, Exclusive Economic Zone and Other Maritime Zones Act, 1976, http://legislative.gov.in/sites/default/files/A1976-80.pdf.  

[6].  Bachan Singh vsState of Punjab (19802 SCC 684.

[7].  Dalbir Singh vState of Punjab, Criminal Appeal no117 of 2006, February 1, 2012, https://main.sci.gov.in/jonew/bosir/orderpdf/1465081.pdf.

[8].  Mithu vsState of Punjab (19832 SCC 277, https://main.sci.gov.in/jonew/judis/9810.pdf.

[9].  Anti-Hijacking Act, 2016, https://www.civilaviation.gov.in/sites/default/files/Anti-hijacking%20Act%2C%202016.pdfScheduled Castes and Scheduled Tribes (Prevention of AtrocitiesAct, 1989 http://legislative.gov.in/sites/default/files/A1989-33_2.pdf; Suppression of Unlawful Acts Against Safety of Maritime Navigation and Fixed Platforms on Continental Shelf Act, 2002, http://legislative.gov.in/sites/default/files/A2002-69_0.pdf.

[10].  SC seeks centre's reply on plea challenging mandatory death penalty under SC/ST Act, The Economic Times, May 10, 2019, last accessed on August 6, 2020

[11].  Merchant Shipping Act, 2009, Kenya; Privacy and Privateering, Crimes and Criminal Procedure Code, 1970, United States of America; Part IV – Piracy, Crimes Act, 1914, Australia; Maritime Code, 1942, Italy; Piracy Act, 2002, Sri Lanka.

[12] Section 307 of the Indian Penal Code, 1860.

[13].  Circular letter No.3180, United Nations guidelines on international law on piracy, International Maritime Organisation, May 17, 2011, https://www.un.org/Depts/los/piracy/circular_letter_3180.pdf.

[14].  The Suppression of Unlawful Acts Against Safety of Maritime Navigation and Fixed Platforms on Continental Shelf Act, 2002, https://www.indiacode.nic.in/bitstream/123456789/2009/1/A2002-69.pdf

[15].  Legal Framework for the repression of piracy under UNCLOS, Oceans and Law of the Sea, United Nations, https://www.un.org/depts/los/piracy/piracy_legal_framework.htm.

[16].  The Piracy Bill, 2012, Ministry of External Affairs, https://www.prsindia.org/sites/default/files/bill_files/piracy_bill_text___2012.pdf

 

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