मंत्रालय: 
गृह मामले

नागरिकता एक्ट, 1955 यह रेगुलेट करता है कि कौन भारतीय नागरिकता हासिल कर सकता है और किस आधार पर। एक व्यक्ति भारतीय नागरिक बन सकता है, अगर उसने भारत में जन्म लिया हो या उसके माता-पिता भारतीय हों या एक निश्चित अवधि से वह भारत में रह रहा हो, इत्यादि। हालांकि अवैध प्रवासियों द्वारा भारतीय नागरिकता हासिल करना प्रतिबंधित है। एक अवैध प्रवासी वह विदेशी है जो: (i) वैध यात्रा दस्तावेजों, जैसे पासपोर्ट और वीजा के बिना देश में प्रवेश करता है, या (ii) वैध दस्तावेजों के साथ देश में प्रवेश करता है लेकिन अनुमत समयावधि के बाद भी देश में रुका रहता है।[1] 

अवैध प्रवासियों को विदेशी एक्ट, 1946 और पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) एक्ट, 1920 के अंतर्गत कारावास दिया जा सकता है या निर्वासित किया जा सकता है। 1946 और 1920 के एक्ट केंद्र सरकार को भारत में विदेशियों के प्रवेश, निकास और निवास को रेगुलेट करने की शक्ति प्रदान करते हैं। 2015 और 2016 में केंद्र सरकार ने दो अधिसूचनाएं जारी करके अवैध प्रवासियों के कुछ समूहों को 1946 और 1920 के एक्ट्स के प्रावधानों से छूट प्रदान की।[2] ये समूह अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई हैं जिन्होंने भारत में 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले प्रवेश किया है।2  इसका अर्थ यह है कि अवैध प्रवासियों के इन समूहों को वैध दस्तावेजों के बिना भी भारत में रहने पर निर्वासित नहीं किया जाएगा या कारावास नहीं भेजा जाएगा।

2016 में नागरिकता एक्ट, 1955 में संशोधन करने के लिए एक बिल पेश किया गया।[3] यह बिल उन्हीं छह धर्मों और तीन देशों के अवैध प्रवासियों को नागरिकता की पात्रता प्रदान करने के लिए संशोधन का प्रस्ताव रखता है। बिल भारत की विदेशी नागरिकता (ओसीआई) वाले कार्डहोल्डरों के पंजीकरण से संबंधित प्रावधानों में भी संशोधन प्रस्तावित करता है। इसे ज्वाइंट पार्लियामेंटरी कमिटी को भेजा गया जिसने 7 जनवरी, 2019 को अपनी रिपोर्ट सौंपी।[4]  8 जनवरी, 2019 को बिल लोकसभा में पारित हो गया।[5]  हालांकि 16वीं लोकसभा के भंग होने के साथ बिल लैप्स हो गया। परिणामस्वरूप दिसंबर, 2019 को लोकसभा में नागरिकता (संशोधन) बिल, 2019 को पेश किया गया। 

2019 का बिल अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई अवैध प्रवासियों को नागरिकता की पात्रता प्रदान करने का प्रयास करता है। वह पूर्वोत्तर के कुछ क्षेत्रों को इस प्रावधान से छूट देता है। बिल ओसीआई कार्डहोल्डर्स से संबंधित प्रावधानों में भी संशोधन करता है। एक विदेशी 1955 के एक्ट के अंतर्गत ओसीआई के रूप में पंजीकरण करा सकता है, अगर वह भारतीय मूल का है (जैसे भारत के पूर्व नागरिक या उनके वंशज) या भारतीय मूल के किसी व्यक्ति का स्पाउस (पति या पत्नी) है। इससे वे भारत आने और यहां काम करने एवं अध्ययन करने जैसे लाभों को प्राप्त करने के लिए अधिकृत हो जाएंगे। बिल एक्ट में संशोधन का प्रस्ताव रखता है जिसके अंतर्गत अगर ओसीआई कार्डहोल्डर केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित किसी कानून का उल्लंघन करता है तो उसका पंजीकरण रद्द किया जा सकता है।

तालिका 1 में 2016 के प्रावधानों (लोकसभा द्वारा पारित) की तुलना 2019 के बिल से की गई है।

तालिका 1: लोकसभा द्वारा पारित नागरिकता (संशोधन) बिल, 2016 और नागरिकता (संशोधन) बिल, 2019 की तुलना  

नागरिकता (संशोधन) बिल, 2016 (लोकसभा द्वारा पारित)

नागरिकता (संशोधन) बिल, 2019

·    कुछ अवैध प्रवासियों के लिए नागरिकता की पात्रता: एक्ट अवैध प्रवासियों को भारतीय नागरिकता हासिल करने से प्रतिबंधित करता है। अवैध प्रवासी वे विदेशी हैं जो भारत में पासपोर्ट या यात्रा दस्तावेज के बिना प्रवेश करते हैं या अनुमत समय से अधिक रहते हैं।

·    बिल एक्ट में संशोधन करता है ताकि अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई लोगों के साथ अवैध प्रवासियों जैसा व्यवहार न किया जाए। इस लाभ को हासिल करने के लिए उन्हें केंद्र सरकार द्वारा विदेशी एक्ट, 1946 और पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) एक्ट, 1920 से छूट दी जानी चाहिए। 1920 के एक्ट में विदेशियों के पास पासपोर्ट होने का निर्देश दिया गया है जबकि 1946 का एक्ट भारत में विदेशियों के प्रवेश और वापसी को रेगुलेट करता है।

·    इसके अतिरिक्त बिल कहता है कि इसके लागू होने की तिथि से, ऐसे अवैध प्रवासी के खिलाफ लंबित सभी कानूनी कार्रवाई को बंद कर दिया जाएगा।

·   बिल इन तीन देशों के इन धर्मों के अवैध प्रवासियों की नागरिकता से संबंधित दो अतिरिक्त प्रावधान जोड़ता है।

·   नागरिकता हासिल करने के परिणाम: बिल कहता है कि नागरिकता हासिल करने पर: (i) इन लोगों को उस तिथि से भारत का नागरिक माना जाना चाहिए जब उन्होंने भारत में प्रवेश किया था, और (ii) उनके खिलाफ गैर कानूनी प्रवास या नागरिकता से संबंधित कानूनी कार्रवाई को बंद कर दिया जाएगा।

·   अपवाद: इसके अतिरिक्त बिल कहता है कि अवैध प्रवासियों के लिए नागरिकता के प्रावधान संविधान की छठी अनुसूची में शामिल असम, मेघालय, मिजोरम या त्रिपुरा के आदिवासी क्षेत्रों पर लागू नहीं होंगे। इन आदिवासी क्षेत्रों में कर्बी आंगलोंग (असम), गारो हिल्स (मेघालय), चकमा जिला (मिजोरम) और त्रिपुरा आदिवासी क्षेत्र जिला शामिल हैं। यह बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन, 1873 के अंतर्गत ‘इनर लाइन’ में आने वाले क्षेत्रों में भी लागू नहीं होगा। इनर लाइन परमिट अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम और नागालैंड में भारतीयों की यात्रा को रेगुलेट करता है।   

·    देशीकरण द्वारा नागरिकता: एक्ट कुछ शर्तों को पूरा करने वाले किसी व्यक्ति को देशीयकरण द्वारा नागरिकता का आवेदन करने की अनुमति देता है। इनमें से एक शर्त यह है कि वह व्यक्ति पिछले 12 महीने और 14 वर्षों में से कम से कम 11 वर्षों तक भारत में रहा हो या केंद्र सरकार की नौकरी में हो।

·    बिल अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई लोगों के लिए इस शर्त में अपवाद प्रस्तुत करता है। इस समूह के लोगों के लिए 11 वर्ष की अवधि को घटाकर छह वर्ष कर दिया जाएगा।

·    इसके अतिरिक्त बिल इस समूह के लोगों के लिए देशीयकरण की अवधि को छह वर्ष से पांच वर्ष करता है।

·    ओसीआई के पंजीकरण को रद्द करने के आधार: एक्ट कहता है कि केंद्र सरकार पांच आधार पर ओसीआई के पंजीकरण को रद्द कर सकती है जैसे धोखाधड़ी से पंजीकरण कराना, संविधान के प्रति असंतोष जताना, युद्ध के दौरान शत्रु के साथ जा मिलना, भारत की संप्रभुता, राज्य की सुरक्षा या जनहित के लिए जरूरी, पंजीकरण के पांच वर्ष के दौरान दो वर्ष या उससे अधिक समय के लिए कारावास की सजा। बिल पंजीकरण को रद्द करने का एक और आधार प्रदान करता है। वह यह कि अगर ओसीआई ने देश में लागू किसी कानून का उल्लंघन किया हो।

·    जब बिल लोकसभा में पारित हुआ तब यह नागरिकता एक्ट के उल्लंघन या केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित किसी अन्य कानून के उल्लंघन तक सीमित कर दिया गया। साथ ही कार्ड होल्डर को सुनवाई का अवसर दिया गया। 

·   लोकसभा द्वारा पारित 2016 के बिल के समान।

Sources: The Citizenship (Amendment) Bill, 2016, as passed by Lok Sabha; The Citizenship (Amendment) Bill, 2019; PRS.

विचारणीय मुद्दे

क्या धर्म के आधार पर अंतर करना अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है

बिल में प्रावधान है कि चार शर्तों को पूरा करने वाले प्रवासी भारतीयों के साथ एक्ट के अंतर्गत अवैध प्रवासियों के तौर पर व्यवहार नहीं किया जाएगा। ये शर्तें निम्नलिखित हैं: (क) वे हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी या ईसाई हैं, (ख) अफगानिस्तान, बांग्लादेश या पाकिस्तान के हैं, (ग) उन्होंने 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले भारत में प्रवेश किया है, (घ) वे संविधान की छठी अनुसूची में शामिल असम, मेघालय, मिजोरम या त्रिपुरा के कुछ आदिवासी क्षेत्रों, या ‘इनर लाइन’ परमिट के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों यानी अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम और नागालैंड में नहीं आते।

अनुच्छेद 14 व्यक्तियों, नागरिकों और विदेशियों को समानता की गारंटी देता है। यह कानून को व्यक्ति समूहों के बीच अंतर करने की अनुमति देता है जब किसी उपयुक्त उद्देश्य को पूरा करने के लिए ऐसा करना तार्किक हो।[6] प्रश्न यह है कि क्या यह प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 14 के अंतर्गत समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है, चूंकि यह निम्नलिखित के आधार पर अवैध प्रवासियों के साथ-साथ भिन्न-भिन्न व्यवहार करता है (क) मूल देश, (ख) धर्म, (ग) भारत में प्रवेश की तिथि, (घ) भारत में निवास का स्थान। हम इस बात का विश्लेषण कर रहे हैं कि क्या ऐसे भिन्न-भिन्न कारक एक उपयुक्त उद्देश्य की पूर्ति कर सकते हैं।

पहले बिल केवल अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश को शामिल करने के लिए प्रवासियों को उनके मूल देश के आधार पर वर्गीकृत करता है। बिल के उद्देश्यों और कारणों के कथन (एसओआर) में कहा गया है कि भारत में अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से लोगों का ऐतिहासिक प्रवास होता रहा है, और इन सभी देशों का अपना राज्य धर्म है, जिसके परिणामस्वरूप अल्पसंख्यक समूहों का धार्मिक उत्पीड़न हुआ है। एसओआर यह तर्क तो देता है कि अविभाजित भारत के लाखों नागरिक पाकिस्तान और बांग्लादेश में रहते हैं, वह अफगानिस्तान को इसमें शामिल करने का कोई कारण नहीं देता।

इसके अतिरिक्त यह स्पष्ट नहीं है कि इन देशों के प्रवासियों को दूसरे पड़ोसी देशों जैसे श्रीलंका (बौद्ध राज्य धर्म)[7] और म्यांमार (बौद्ध धर्म की प्रधानता)[8] के प्रवासियों से अलग क्यों रखा गया है। श्रीलंका का इतिहास तमिल ईलम नामक भाषाई अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न का गवाह रहा है।[9]  इसी प्रकार भारत म्यांमार के साथ सीमा साझा करता है जहां रोहिंग्या मुसलमानों जैसे धार्मिक अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न का इतिहास रहा है।[10] पिछले कुछ वर्षों के दौरान तमिल ईलम और रोहिंग्या मुसलमान, दोनों अपने-अपने देशों में उत्पीड़न से बचने के लिए भारत में शरण लेते रहे हैं।[11] यह देखते हुए कि बिल का उद्देश्य धार्मिक उत्पीड़न के शिकार प्रवासियों को नागरिकता प्रदान करना है, यह स्पष्ट नहीं है कि इन देशों में धार्मिक अल्पसंख्यक समूहों के अवैध प्रवासियों को बिल से बाहर क्यों रखा गया है।

दूसरा पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के कुछ अल्पसंख्यकों के धार्मिक उत्पीड़न का वर्गीकरण करने पर यह तर्क दिया जा सकता है कि इन देशों में दूसरे धार्मिक अल्पसंख्यकों का भी धार्मिक उत्पीड़न होता है। वे भी भारत में अवैध रूप से प्रवास कर सकते हैं। उदाहरण के लिए पाकिस्तान में अहमदिया मुसलमानों के उत्पीड़न की खबरें आती रही हैं (जिन्हें वहां गैर मुसलमान माना जाता है)[12], और बांग्लादेश में नास्तिकों की हत्याओं की भी खबरें आती रही हैं।[13] यह अस्पष्ट है कि केवल छह निर्दिष्ट धार्मिक अल्पसंख्यक समूहों के अवैध प्रवासियों को बिल में क्यों शामिल किया गया है।

तीसरा, यह भी अस्पष्ट है कि भारत में प्रवेश की तिथि के आधार पर प्रवासियों के बीच अंतर क्यों किया गया है, यानी वे 31 दिसंबर, 2014, से पहले भारत में दाखिल हुए हैं या उसके बाद।

चौथा, बिल छठी अनुसूची के दायरे में आने वाले क्षेत्रों, यानी असम, मेघालय और त्रिपुरा के अधिसूचित आदिवासी क्षेत्रों में रहने वाले अवैध प्रवासियों को भी अपने दायरे से बाहर रखता है। संविधान की छठी अनुसूची को लागू करने का उद्देश्य यह था कि स्वायत्त परिषदों के जरिए आदिवासी क्षेत्रों के विकास में मदद की जा सके और इन क्षेत्रों के मूल निवासियों को शोषण से बचाया जा सके, साथ ही उनके विशिष्ट सामाजिक रीति-रिवाज का संरक्षण किया जा सके।[14]  बिल इनर लाइन परमिट वाले क्षेत्रों को भी अपने दायरे से बाहर रखता है। इनर लाइन परमिट अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम और नागालैंड में लोगों, जिनमें भारतीय नागरिक भी शामिल हैं, के प्रवेश को रेगुलेट करता है। एक बार इन क्षेत्रों में रहने वाले अवैध प्रवासी को नागरिकता मिल जाती है तो वह इन क्षेत्रों में लगे प्रतिबंधों के अधीन होगा, जोकि अन्य भारतीय नागरिकों पर भी लागू होते हैं। इसलिए यह अस्पष्ट है कि इस बिल ने इन क्षेत्रों में निवास करने वाले अवैध प्रवासियों को अपने दायरे से बाहर क्यों रखा है।

ओसीआई पंजीकरण रद्द करने का सरकार को व्यापक अधिकार देना

1955 के एक्ट में प्रावधान है कि केंद्र सरकार विभिन्न कारणों से ओसीआईज़ का पंजीकरण रद्द कर सकती है। बिल पंजीकरण रद्द करने का एक और आधार जोड़ता है जोकि यह है कि अगर ओसीआई ने केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित किसी कानून का उल्लंघन किया है। वह कहता है कि कार्डहोल्डर को सुनवाई का मौका दिए बिना ओसीआई को रद्द करने का आदेश नहीं दिया जाएगा।

यह कहा जा सकता है कि केंद्र सरकार को उन कानूनों की सूची निर्दिष्ट करने की शक्ति देना, जिनके उल्लंघन के कारण ओसीआई पंजीकरण को रद्द किया जा सकता है, विधायिका को अत्यधिक शक्तियां देने जैसा हो सकता है। सर्वोच्च न्यायालय ने एक फैसले में कहा था कि कार्यकारिणी को शक्तियां देते हुए विधायिका को उसके दिशानिर्देश के लिए नीति, मानदंड या नियम निर्दिष्ट करने चाहिए। इससे कार्यकारिणी की शक्तियों की सीमाएं तय होंगी और उसे मनमाने तरीके से नियम बनाने की छूट नहीं मिलेगी।[15]  बिल उन कानूनों की प्रकृति पर कोई दिशानिर्देश नहीं देता, जिन्हें केंद्र सरकार अधिसूचित कर सकती है। इसलिए मानदंड, आधार या सिद्धांतों के अभाव में यह कहा जा सकता है कि कार्यकारिणी को प्रदत्त शक्तियां वैध प्रत्यायोजन (डेलिगेशन) की अनुमत सीमाओं से परे जाती हैं।

 

[1]Section 2(1)(b) of the Citizenship Act, 1955.

[2]G.S.R. 685 (E) and G.S.R. 686 (E), Gazette of India, September 7, 2015, http://egazette.nic.in/WriteReadData/2015/165755.pdf; G.S.R. 702(E) and G.S.R. 703(E), Gazette of India, July 18, 2016, http://egazette.nic.in/WriteReadData/2016/170822.pdf.

[3]. The Citizenship (Amendment) Bill, 2016, https://www.prsindia.org/sites/default/files/bill_files/Citizenship_%28A%29_bill%2C_2016_0.pdf.

[4]. Report of the Joint Committee on the Citizenship (Amendment) Bill, 2016, Joint Parliamentary Committee, Lok Sabha, January 7, 2019, https://www.prsindia.org/sites/default/files/bill_files/Joint%20committee%20report%20on%20citizenship%20%28A%29%20bill.pdf..

[5]. The Citizenship (Amendment) Bill, 2016 (As passed by Lok Sabha), https://www.prsindia.org/sites/default/files/bill_files/Citizenship%20%28A%29%20Bill%2C%202019%20as%20passed%20by%20LS.pdf.

[6]State of West Bengal vs Anwar Ali Sarkar, AIR 1952 SC 75

[7]Article 9 of the Constitution of the Democratic Socialist Republic of Sri Lanka states: “The Republic of Sri Lanka shall give to Buddhism the foremost place and accordingly it shall be the duty of the State to protect and foster the Buddha Sasana, while assuring to all religions the rights granted by Articles 10 and 14(1)(e).”

[8]Articles 361 and 362 of the Constitution of the Republic of the Union of Myanmar state the following.  “361. The Union recognizes special position of Buddhism as the faith professed by the great majority of the citizens of the Union. 362. The Union also recognizes Christianity, Islam, Hinduism and Animism as the religions existing in the Union at the day of the coming into operation of this Constitution.”

[9]. It is estimated that there are over a lakh Sri Lankan refugees in India, two-thirds of them in government campsSee https://timesofindia.indiatimes.com/city/chennai/why-lankan-refugees-are-reluctant-to-go-back-home/articleshow/65591130.cms

[10]. “Myanmar Rohingya: What you need to know about the crisis, BBC News, April 24, 2018, https://www.bbc.com/news/world-asia-41566561.

[11]. “Why India is refusing refuge to Rohingyas, Times of India, September 6, 2017, https://timesofindia.indiatimes.com/india/why-india-is-refusing-refuge-to-rohingyas/articleshow/60386974.cms.

[12]The Second Amendment to the Constitution of Pakistan passed in 1974 effectively declared Ahmaddiyas as non-Muslims.

[13].  For example, see https://www.theguardian.com/world/2016/jun/11/bangladesh-murders-bloggers-foreigners-religion.

[14]Report of the Sub-Committee on North East Frontier (Assam) Tribal and Excluded Areas (Chairperson: Gopinath Bardoloi), July 28, 1947; Constituent Assembly of India Debates, Volume IX, 5th, 6th and 7th September, 1949.

[15]Hamdard Dawakhana and Anr., v. The Union of India (UOI) and Ors., AIR1960SC554; Confederation of Indian Alcoholic Beverage Companies and Ors. vs. The State of Bihar and Ors., 2016(4) PLJR369.

 

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