मंत्रालय: 
वित्त
  • सिक्योरिटी इंटरेस्ट और ऋण वसूली संबंधी कानून और विविध प्रावधान (संशोधन) बिल, 2016 को वित्त मंत्री श्री अरुण जेटली ने 11 मई, 2016 को लोकसभा में पेश किया। इसके तहत चार कानूनों: (i) सेक्योरिटाइजेशन एंड रीकंस्ट्रक्शन ऑफ फाइनांशियल एसेट्स एंड एनफोर्समेंट ऑफ सिक्योरिटी इंटरेस्ट एक्ट, 2002 (सरफेसी) (ii) रिकवरी ऑफ डेट्स ड्यू टू बैंक्स एंड फाइनांशियल इंस्टीट्यूशंस एक्ट, 1993 (आरडीडीबीएफआई) (iii) इंडियन स्टैम्प एक्ट, 1899  और (iv) डिपॉजिटरी एक्ट, 1996 को संशोधित करने का प्रयास किया गया है  
     
  • सरफेसी एक्ट में संशोधनः सरफेसी एक्ट सुरक्षित लेनदारों (सेक्योर्ड क्रेडिटर) को उस जमानत, जिसकी एवज में ऋण दिया गया है, पर पुनर्भुगतान न होने की स्थिति में कब्जा करने की अनुमति देता है। यह कार्य जिला मेजिस्ट्रेट के सहयोग से किया जा सकता है और इसके लिए अदालत या ट्रिब्यूनल के हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है। बिल यह प्रस्ताव रखता है कि इस प्रक्रिया को जिला मेजिस्ट्रेट द्वारा 30 दिनों के अंदर पूरा कर लिया जाना चाहिए।
     
  • इसके अतिरिक्त बिल में कहा गया है कि अगर कंपनी ऋण नहीं चुका पाती तो बैंक जिला मेजिस्ट्रेट के जरिये उसके प्रबंधन को अपने नियंत्रण में ले सकता है। यह उस मामले में किया जाएगा, जब बैंक अपने आउटस्टैंडिंग ऋण को इक्विटी शेयर में बदल देता है और कंपनी में 51% या उससे अधिक की हिस्सेदारी रखता है।
     
  • एक्ट के तहत सुरक्षित संपत्तियों से संबंधित लेनदेन के रिकॉर्ड रखने के लिए एक सेंट्रल रेजिस्ट्री बनाई गई है। बिल में एक सेंट्रल डेटाबेस का प्रस्ताव रखा गया है जिसमें इस सेंट्रल रेजिस्ट्री के साथ विभिन्न रेजिस्ट्रेशन सिस्टम के तहत पंजीकृत प्रॉपर्टी के रिकॉर्ड जोड़े जा सकें। इसमें कंपनी अधिनियम, 2013, रेजिस्ट्रेशन एक्ट, 1908 और मोटर वेहिकल एक्ट, 1988 के अंतर्गत किए जाने वाले पंजीकरणों को जोड़ा जाएगा।
     
  • बिल में प्रावधान है कि सुरक्षित लेनदार किसी जमानत को तब तक अपने कब्जे में नहीं ले सकते, जब तक कि वह सेंट्रल रेजिस्ट्री में पंजीकृत न हो। इसके अतिरिक्त, सिक्योरिटी इंटरेस्ट के पंजीकरण के बाद, बकाया राशि की अदायगी के दौरान अन्य के मुकाबले इन लेनदारों को प्राथमिकता मिलेगी।
     
  • एक्ट भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को एसेट रीकंस्ट्रक्शन कंपनियों के व्यवसाय से संबंधित वक्तव्यों और सूचनाओं की जांच करने का अधिकार देता है। बिल आरबीआई को इन कंपनियों का ऑडिट और निरीक्षण करने का अधिकार देता है। आरबीआई किसी कंपनी को दंडित कर सकती है, अगर वह कंपनी आरबीआई द्वारा जारी किए गए किसी निर्देश का अनुपालन नहीं करती।
     
  • बिल में इस बात का प्रस्ताव है कि एसेट रीकंस्ट्रक्शन कंपनियों के पक्ष में वित्तीय संपत्तियों के ट्रांसफर से जुड़े लेनदेन में स्टैम्प ड्यूटी नहीं ली जाएगी। वित्तीय संपत्तियों में ऋण और जमानत शामिल हैं।
     
  • आरडीडीबीएफआई एक्ट में संशोधनः आरडीडीबीएफआई एक्ट ऋण वसूली ट्रिब्यूनल और ऋण वसूली अपीलीय ट्रिब्यूनल की स्थापना करता है। बिल में ऋण वसूली ट्रिब्यूनल के पीठासीन अधिकारी की सेवानिवृति की आयु 62 से 65 वर्ष की गई है। इसके अतिरिक्त, अपीलीय ट्रिब्यूनल के अध्यक्ष की सेवानिवृति की आयु 65 वर्ष से बढ़ाकर 67 वर्ष की गई है। बिल के तहत पीठासीन अधिकारियों और अध्यक्षों की अपने पद पर पुनर्नियुक्ति भी की जा सकती है।
     
  • एक्ट में यह प्रावधान है कि बैंक और वित्तीय संस्थानों को उन ट्रिब्यूनलों में केस फाइल करना होगा जिनके क्षेत्राधिकार में प्रतिवादी के निवास या व्यवसाय के इलाके आते हैं। बिल में बैंक को उस ट्रिब्यूनल में केस फाइल करने की छूट दी गई है जिसके क्षेत्राधिकार में बैंक की वह शाखा आती है जहां ऋण बकाया है।
     
  • बिल प्रस्ताव रखता है कि एक्ट के तहत कुछ प्रक्रियाओं को इलेक्ट्रॉनिक किया जाएगा। इनमें विभिन्न पार्टियों की तरफ से किए जाने वाले दावों की पेशकश और एक्ट के तहत ट्रिब्यूनल द्वारा जारी सम्मन शामिल हैं।
     
  • बिल में ऋण वसूली की कार्यवाहियों की स्थिति में ट्रिब्यूनल द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रियाओं का विस्तृत विवरण है। इसमें आवेदक द्वारा कर्ज़दार की उस संपत्ति का ब्यौरा देना जरूरी किया गया है जिसे जमानत के तौर पर रखा गया है। बिल इनमें से कुछ प्रक्रियाओं के पूरा होने की समय सीमा भी निर्धारित करता है।

 

यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।