मंत्रालय: 
महिला एवं बाल कल्याण

बिल की मुख्‍य विशेषताएं

  • बिल सभी प्रकार की मानव तस्करी की जांच, उसके निवारण, संरक्षण और तस्करी के पीड़ितों के पुनर्वास के लिए कानून बनाता है।
     
  • बिल जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर जांच और पुनर्वास अथॉरिटीज़ की स्थापना करता है। पीड़ितों को छुड़ाने और मानव तस्करी के मामलों की जांच करने के लिए एंटी ट्रैफिकिंग यूनिट्स की स्थापना की जाएगी। पुनर्वास कमिटीज़ छुड़ाए गए पीड़ितों की देखभाल और पुनर्वास करेगी।
     
  • बिल कुछ उद्देश्यों के लिए की गई तस्करी को तस्करी के गंभीर (एग्रेवेटेड) प्रकार मानता है। इनमें बलात श्रम करवाने, बच्चे पैदा करने, भीख मंगवाने के लिए तस्करी करना शामिल है। साथ ही अगर किसी व्यक्ति में जल्दी यौन परिपक्वता (सेक्सुअल मेच्योरिटी) लाने के लिए उसकी तस्करी की जाती है, तो ऐसा मामला भी गंभीर मामला माना जाएगा। गंभीर तस्करी के लिए अधिक बड़ा दंड दिया जाएगा।
     
  • बिल तस्करी से संबंधित अनेक अपराधों के लिए सजा का प्रावधान करता है। अधिकतर मामलों में मौजूदा कानूनों के अंतर्गत दी जाने वाली सजा से अधिक सजा निर्धारित की गई है।  

प्रमुख मुद्दे और विश्‍लेषण

  • बिल में निर्दिष्ट विभिन्न प्रकार की तस्करी (जैसे बलात श्रम और यौन उत्पीड़न) मौजूदा कानूनों के दायरे में भी आती है। बिल के कुछ प्रावधान इन कानूनों में समान परिस्थितियों के लिए किए गए प्रावधानों से अलग हैं। चूंकि ये कानून निरस्त नहीं किए गए हैं, इसलिए बिल के कार्यान्वयन को लेकर कुछ अनिश्चितता हो सकती है।
     
  • बिल किसी परिसर के मालिक या पट्टाधारी के लिए सजा का प्रावधान करता है, अगर वह जानबूझकर परिसर में तस्करी करने की अनुमति देता है। बिल के अंतर्गत यह माना जा रहा है कि मालिक या पट्टाधारी को अपराध की जानकारी है, बशर्ते वह साबित कर सके कि ऐसा नहीं है। इस प्रावधान से संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन हो सकता है।
     
  • बिल कहता है कि अगर किसी पीड़ित ने ऐसा कोई अपराध किया है जिसकी सजा 10 वर्ष से अधिक है तो उस पर मुकदमा नहीं चलाया जाएगा (यानी उसे इम्यूनिटी दी गई है), पर ऐसा इससे कम सजा पाने वाले अपराधों के लिए नहीं है। यह सीमा बहुत अधिक है जिससे इम्यूनिटी देने का उद्देश्य विफल हो सकता है।
     
  • बिल उन व्यक्तियों के लिए सजा का प्रावधान करता है जिन्होंने ऐसी सामग्री वितरित या प्रकाशित की है जिनका परिणाम तस्करी हो सकता है। यह अस्पष्ट है कि किसी कार्रवाई का नतीजा तस्करी हो सकती है या नहीं, यह कैसे तय होगा।
     
  • बिल तस्करी के कुछ प्रकार को गंभीर मानता है जिनके लिए अन्य प्रकारों से अधिक बड़ी सजा होगी। इसलिए कुछ गंभीर अपराधों, जैसे भीख मंगवाने के लिए दूसरे अपराधों, जैसे दास बनाने, से अधिक बड़ी सजा का प्रावधान है।

भाग क : बिल की मुख्य विशेषताएं

संदर्भ

तालिका 1: विभिन्न कारणों से तस्करी के शिकार लोगों को छुड़ाने के कुल मामले

कारण

2016

(% में)

बलात श्रम

10509

45.5

वेश्यावृत्ति

4980

21.5

यौन उत्पीड़न के अन्य प्रकार

2590

11.5

घरेलू दास

412

1.8

जबरन शादी

349

1.5

मामूली अपराध

212

0.9

बच्चों की पोर्नोग्राफी

162

0.7

भीख मंगवाना

71

0.3

ड्रग पेडलिंग

8

0

मानव अंग निकालना

2

0

अन्य कारण

3824

16.5

कुल व्यक्ति

23117

100

Source: Human Trafficking, Crime in India, 2016, National Crime Records Bureau.

 

भारत में मानव तस्करी मुख्यतया भारतीय दंड संहिता, 1860 के अंतर्गत एक अपराध है। संहिता कहती है कि तस्करी का अर्थ है, बलपूर्वक तरीकों से, शोषण के लिए (i) किसी व्यक्ति की भर्ती, (ii) उसका परिवहन, (iii) उसे रखना, (iv) उसे ट्रांसफर करना, या (v) उसकी प्राप्ति। इसके अतिरिक्त ऐसे कानून भी हैं जो विशिष्ट कारणों से की गई तस्करी को रेगुलेट करते हैं। उदाहरण के लिए यौन उत्पीड़न के लिए मानव तस्करी के संबंध में अनैतिक तस्करी (निवारण) एक्ट, 1986 है। इसी प्रकार बंधुआ मजदूरी रेगुलेशन एक्ट, 1986 और बाल श्रम रेगुलेशन एक्ट, 1986 बंधुआ मजदूरी के लिए शोषण से संबंधित हैं। इनमें से प्रत्येक कानून स्वतंत्र तरीके से काम करता है, उनकी अपनी प्रवर्तन प्रणाली है और ये कानून मानव तस्करी से संबंधित अपराधों के लिए दंड का प्रावधान करते हैं।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो के अनुसार, भारत में 2016 में भारतीय दंड संहिता, 1860 के अंतर्गत मानव तस्करी के कुल 8,132 मामले दर्ज किए गए थे।[1]  पिछले वर्ष की तुलना में इसमें 15% की वृद्धि थी। उसी वर्ष (2016) तस्करी के शिकार 23,117 लोगों को छुड़ाया गया था। इनमें से बलात श्रम के लिए तस्करी का शिकार हुए व्यक्तियों को सबसे अधिक संख्या में छुड़ाया गया था (45.5%)। इसके बाद वेश्यावृत्ति का स्थान था (21.5%)। तालिका 1 में विभिन्न कारणों से तस्करी का शिकार हुए लोगों का विवरण है (2016 का)।

2011 में भारत ने यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन अगेंस्ट ट्रांसनेशनल ऑर्गेनाइज्ड क्राइम्स, 2000 और मानव तस्करी के निवारण, उसके शमन और दंड से संबंधित प्रोटोकॉल को मंजूरी दी थी।[2]  2015 में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद महिला एवं बाल विकास मंत्री ने एक कमिटी का गठन किया ताकि मानव तस्करी पर व्यापक कानून बनाने की व्यावहारिकता की जांच की जा सके।[3]

18 जुलाई, 2018 को महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने मानव तस्करी (निवारण, संरक्षण और पुनर्वास) बिल, 2018 को लोकसभा में पेश किया। 26 जुलाई, 2018 को बिल एक सदन में पारित हो गया। बिल तस्करी के शिकार लोगों के बचाव, उन्हें छुड़ाने और उनके पुनर्वास का प्रावधान करता है। 

प्रमुख विशेषताएं

बिल कहता है कि उसके प्रावधानों को दूसरे कानूनों के संयोजन से पढ़ा जाएगा और उसके प्रावधान तभी लागू होंगे, जब किसी प्रकार असंगति होगी। बिल की प्रमुख विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • तस्करी की परिभाषा: बिल कहता है कि बलपूर्वक तरीकों से, शोषण के लिए (i) किसी व्यक्ति की भर्ती, (ii) उसका परिवहन, (iii) उसे रखना, (iv) उसे ट्रांसफर करना, या (v) उसकी प्राप्ति तस्करी है। इन तरीकों में धमकी देना, बल का प्रयोग करना, अपहरण करना, धोखाधड़ी और चालाकी करना, ताकत का दुरुपयोग करना या लालच देना शामिल हैं। उत्पीड़न में शारीरिक या यौन उत्पीड़न, दास बनाना, या जबरन शरीर के अंग निकालना शामिल हैं।
     
  • गंभीर प्रकार की तस्करी: बिल कुछ विशेष उद्देश्यों से की गई तस्करी को तस्करी के गंभीरप्रकार कहता है। इनमें: (i) बलात श्रम करवाने, (ii) बच्चे पैदा करने, (iii) कम उम्र में यौन परिपक्व करने के लिए रासायनिक पदार्थ या हारमोन्स देने, या (iv) भीख मंगवाने के लिए तस्करी शामिल है। गंभीर किस्म की तस्करी के लिए सजा सामान्य तस्करी से अधिक है।
     
  • तस्करी के पीड़ितों को छुड़ाना और उसकी जांच: बिल तस्करी के शिकार लोगों को छुड़ाने और अपराधों की जांच के लिए जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तरों पर विभिन्न अथॉरिटीज़ की स्थापना करता है।
     
  • जिला स्तर पर राज्य सरकार एंटी ट्रैफिकिंग पुलिस अधिकारियों को नियुक्त करेगी और लोगों को छुड़ाने तथा अपराधों की जांच करने के लिए एक या अधिक जिलों में एंटी ट्रैफिकिंग यूनिट्स की स्थापना करेगी। छुड़ाए गए लोगों को मैजिस्ट्रेट या बाल कल्याण समिति (अगर पीड़ित बच्चा है) के सामने पेश किया जाएगा। अथॉरिटीज़ से अपेक्षा की जाएगी कि वे अपराध की जांच एफआईआर दर्ज होने की तिथि से 90 दिनों के अंदर पूरी करें। जिला पुलिस नोडल अधिकारी जिला प्रशासन के कार्यों का निरीक्षण करेगा, जिसे राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किया जाएगा।
     
  • राज्य सरकार, राज्य स्तर पर भी एक नोडल अधिकारी को नियुक्त करेगी, जिसके निम्नलिखित कार्य होंगे: (i) राज्य में मानव तस्करी को रोकना, (ii) जिला स्तरीय एंटी ट्रैफिकिंग अधिकारियों के कामकाज का निरीक्षण करना, और (iii) राज्यों के भीतर और बाहर पीड़ितों, गवाहों, सबूतों और अपराधियों के ट्रांसफर का समन्वय करना, और उनका निरीक्षण करना। जिला पुलिस नोडल अधिकारी, राज्य नोडल अधिकारी को रिपोर्ट करेगा।
     
  • राष्ट्रीय स्तर पर केंद्र सरकार राष्ट्रीय एंटी ट्रैफिकिंग ब्यूरो बनाएगी जोकि दो या उससे अधिक राज्यों से आने वाले मामलों की जांच कर सकती है।
     
  • संरक्षण और पुनर्वास: बिल अपेक्षा करता है कि पीड़ितों को शरण, भोजन, काउंसिलिंग और मेडिकल सुविधाएं प्रदान करने के लिए केंद्र या राज्य सरकार संरक्षण गृह बनाए। इसके अतिरिक्त केंद्र या राज्य सरकार प्रत्येक जिले में पुनर्वास गृह भी बनाए ताकि लंबे समय के लिए पीड़ितों का पुनर्वास किया जा सके। बिल केंद्र और राज्य सरकारों से यह अपेक्षा भी करता है कि वे पीड़ितों के पुनर्वास के लिए जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर एंटी ट्रैफिकिंग कमिटियां बनाए।
     
  • जिला स्तर की एंटी ट्रैफिकिंग अथॉरिटीज़ जब किसी व्यक्ति को छुड़ाए तो उनसे यह अपेक्षा की जाएगी कि वे बचाव अभियान के बारे में जिला स्तरीय एंटी ट्रैफिकिंग कमिटी को सूचना देंगी। इसके बाद कमिटी छुड़ाए गए व्यक्ति को अंतरिम राहत और पुनर्वास सेवाएं प्रदान करेगी। जिला कमिटी निम्नलिखित कार्य भी करेगी: (i) पीड़ितों का संरक्षण, उनका पुनर्वास और बहाली सुनिश्चित करने के लिए संरक्षण और पुनर्वास गृहों को निर्देश जारी करना, और (ii) अगर छुड़ाए गए व्यक्तियों से बंधुआ मजदूरी कराई जा रही थी, तो उनके अंतरराज्यीय प्रत्यर्पण को आसान बनाना।
     
  • राज्य स्तर पर एंटी ट्रैफिकिंग कमिटी निम्नलिखित के लिए जिम्मेदार होगी: (i) कर्मचारियों के प्रशिक्षण और संवेदीकरण (सेंसिटाइजेशन) का प्रबंधन करना, और (ii) अपराधों, विशेषकर ऐसे अपराधों को रोकने में मदद करना और इनपुट्स देना, जिनका असर अंतरराज्यीय हो या जिनकी विशिष्टता संगठित अपराध जैसी हो।
     
  • राष्ट्रीय स्तर पर एंटी ट्रैफिकिंग कमिटी की निम्नलिखित जिम्मेदारियां होंगी: (i) संबंधित मंत्रालयों और सांविधिक निकायों के जरिए पीड़ितों के लिए राहत और पुनर्वास सुनिश्चित करना, (ii) संबंधित सरकार और राज्य एवं जिला एंटी ट्रैफिकिंग कमिटियों से गृहों की सेवाओं और कामकाज की गुणवत्ता पर रिपोर्ट लेना, और (iii) पुनर्वास फंड की निगरानी करना।
     
  • पीड़ितों का पुनर्वास आरोपी के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही शुरू होने या उस कार्यवाही के परिणाम पर निर्भर नहीं करेगा। केंद्र सरकार एक पुनर्वास फंड भी बनाएगी जिसे संरक्षण एवं पुनर्वास गृह बनाने में इस्तेमाल किया जाएगा।
     
  • बचाव उपाय: जिला और राज्य स्तरीय एंटी ट्रैफिकिंग कमिटियां ऐसे उपाय करेंगी जिनसे अति संवेदनशील लोगों को सुरक्षा मिले और उन्हें तस्करी का शिकार होने से रोका जा सके। इन उपायों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) अति संवेदनशील समुदायों के लिए जीविकोपार्जन और शैक्षणिक कार्यक्रम चलाना, (ii) तस्करी को रोकने के लिए विभिन्न सरकारी कार्यक्रमों और योजनाओं के कार्यान्वयन को आसान बनाना, और (iii) तस्करी के निवारण को सुनिश्चित करने के लिए कानून और व्यवस्था संबंधी फ्रेमवर्क बनाना।
     
  • विशेष अदालतें: बिल कहता है कि प्रत्येक जिले में निर्दिष्ट अदालतें बनाई जाएं जोकि तस्करी के मामलों में एक वर्ष के अंदर ट्रायल पूरा करने का प्रयास करें।
     
  • सजा: बिल विभिन्न अपराधों के लिए सजा निर्दिष्ट करता है। तालिका 2 में इनका विवरण दिया गया है। सभी अपराध संज्ञेय (यानी पुलिस अधिकारी किसी व्यक्ति को बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकता है) और गैर जमानती हैं। उल्लेखनीय है कि अगर कोई व्यक्ति इस बिल और किसी दूसरे कानून, दोनों के अंतर्गत दोषी पाया जाता है तो जिस कानून के अंतर्गत अधिक बड़ी सजा निर्दिष्ट है, वही लागू होगा।

तालिका 2 : बिल के अंतर्गत विभिन्न अपराधों की सजा

अपराध

सजा

प्रत्यक्ष अपराध

तस्करी

एक व्यक्ति की तस्करी: 7-10 वर्ष का कारावास और जुर्माना;

एक से अधिक व्यक्तियों की तस्करी10 वर्ष के कारावास से लेकर आजीवन कारावास, और जुर्माना;

नाबालिग की तस्करी10 वर्ष के कारावास से लेकर आजीवन कारावास, और जुर्माना;

एक से अधिक नाबालिग व्यक्ति की तस्करी:  आजीवन कारावास, और जुर्माना;

तस्करी में शामिल लोकसेवक या सरकारी अधिकारी:  आजीवन कारावास, और जुर्माना।  

तस्करी के गंभीर प्रकार

10 वर्ष के कारावास से लेकर आजीवन कारावास, और कम से कम 1,00,000 रुपए का जुर्माना।

बार-बार गंभीर अपराधों करने वाला तस्कर

आजीवन कारावास, और कम से कम 2,00,000 रुपए का जुर्माना।

लोगों की खरीद-फरोख्त

7-10 वर्ष का कारावास और कम से कम 1,00,000 लाख रुपए का जुर्माना।

मीडिया की सहायता से तस्करी

7-10 वर्ष का कारावास और कम से कम 1,00,000 लाख रुपए का जुर्माना।

संबंधित अपराध

तस्करी से जुड़े परिसर का प्रबंधक

पहली बार दोष सिद्ध होने पर: 5 वर्ष तक का कारावास और 1,00,000 रुपए तक का जुर्माना; अगली बार दोष सिद्ध होने पर: कम से कम 7 वर्ष का कारावास और 2,00,000 रुपए तक का जुर्माना।

तस्करी से जुड़े परिसर का मालिक/कब्जाधारी

पहली बार दोष सिद्ध होने पर: 3 वर्ष तक का कारावास और 1,00,000 रुपए तक का जुर्माना; अगली बार दोष सिद्ध होने पर: कम से कम 5 वर्ष का कारावास और 2,00,000 रुपए तक का जुर्माना।

अश्लील सामग्री का प्रकाशन या वितरण जिससे तस्करी की आशंका हो सकती है

5-10 वर्ष का कारावास और 50,000-1,00,000 रुपए तक का जुर्माना।

अथॉरिटी द्वारा कर्तव्य न निभाना

पहली बार दोष सिद्ध होने पर: कम से कम 50,000 रुपए का जुर्माना;  अगली बार दोष सिद्ध होने पर: एक वर्ष तक का कारावास और कम से कम 1,00,000 रुपए का जुर्माना।

  Sources: Indian Penal Code, 1860; The Trafficking of Persons (Prevention, Protection and Rehabilitation) Bill, 2018; PRS.

  • कुर्की और जब्ती: बिल उस संपत्ति की कुर्की करने का प्रावधान करता है, जहां अपराध होने की आशंका हो। दोष सिद्ध होने पर उस संपत्ति को सरकार जब्त कर लेगी। सरकार उसे बेच सकती है। संपत्ति की बिक्री से प्राप्त राशि को पुनर्वास फंड में जमा कर दिया जाएगा।  

भाग ख: प्रमुख मुद्दे और विश्‍लेषण

मौजूदा कानूनों और बिल के अंतर्गत प्रावधानों की तुलना

वर्तमान में ऐसे अनेक कानून हैं जो मानव तस्करी के विभिन्न प्रकारों से संबंधित हैं। उदाहरण के लिए अनैतिक तस्करी (निवारण) एक्ट, 1986 व्यावसायिक यौन शोषण के लिए तस्करी से संबंधित है, जबकि बंधुआ मजदूरी प्रणाली (उन्मूलन) एक्ट, 1976 बंधुआ मजदूरी करवाने के लिए सजा का प्रावधान करता है। इन कानूनों में अपनी खुद की प्रवर्तन प्रणाली है। बिल के उद्देश्यों और कारणों के कथन के अनुसार बिल मानव तस्करी से संबंधित सभी मामलों से निपटने के लिए एक व्यापक कानून बनाने का उद्देश्य रखता है। हालांकि बिल मानव तस्करी से संबंधित सभी मौजूदा कानूनों को बरकरार रखता है। इससे कुछ मामलों में तस्करी से निपटने के लिए एक समानांतर कानून व्यवस्था और प्रवर्तन प्रणाली तैयार होती है। चूंकि इन सभी कानूनों की भिन्न-भिन्न प्रक्रियाएं हैं, इस बारे में भ्रम पैदा हो सकता है कि तस्करी के ऐसे मामलों में कौन सी प्रक्रिया लागू होगी।   

उदाहरण के लिए अनैतिक तस्करी (निवारण) एक्ट, 1986 के अंतर्गत तस्करी का शिकार यौन उत्पीड़ितों के पुनर्वास के लिए संरक्षण गृहों की स्थापना की गई है। वर्तमान बिल भी संरक्षण गृहों की स्थापना पर विचार करता है। यह स्पष्ट नहीं है कि यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाओं को छुड़ाने पर उन्हें किस गृह में भेजा जाएगा। इसके अतिरिक्त इनमें से प्रत्येक कानून अपराधों की सुनवाई के लिए अदालतों को निर्दिष्ट करता है। सवाल यह उठता है कि इनमें से कौन सी अदालत मामले की सुनवाई करेगी। तालिका 3 में इन कानूनों और बिल के बीच तुलना की गई है। वैसे, बिल स्पष्ट करता है कि बच्चों के पुनर्वास के मामलों में किशोर न्याय (बच्चों की देखरेख और संरक्षण) एक्ट, 2015 लागू होगा।    

तालिका 3 : मौजूदा बिल और अन्य कानूनों में मानव तस्करी के बीच तुलना

विशेषता

2018 का बिल

बंधुआ मजदूरी एक्ट

अनैतिक तस्करी एक्ट

किशोर न्याय एक्ट

आईपीसी

तस्करी का उद्देश्य

·       कोई भी उद्देश्य, जिसमें बंधुआ मजदूरी, या यौन उत्पीड़न शामिल है।  

·       बंधुआ मजदूर बनाकर शोषण।

·       व्यावसायिक यौन शोषण के लिए तस्करी।

·       तस्करी का शिकार होने की आशंका वाले बच्चे।

·       कोई भी उद्देश्य, जिसमें दास बनाना, या यौन उत्पीड़न शामिल है।  

तस्करों से छुड़ाना और अपराध की जांच

·       अपराधों की जांच और व्यक्तियों को छुड़ाने के लिए एंटी ट्रैफिकिंग पुलिस अधिकारी और एंटी ट्रैफिकिंग यूनिट्स।

·       जिला मैजिस्ट्रेट एक्ट को लागू करता है (अपराधों की जांच और व्यक्तियों को छुड़ाया जाना भी सुनिश्चित करता है)।

·       अपराधों की जांच और महिलाओं को छुड़ाने के लिए ट्रैफिकिंग पुलिस अधिकारी।

·       बाल कल्याण पुलिस अधिकारी अपराधों की जांच करते हैं और बच्चों को छुड़ाते हैं। 

·       पुलिस अधिकारी (एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट्स सहित) अपराधों की जांच करते हैं और व्यक्तियों को छुड़ाते हैं।

राहत और पुनर्वास

·       देखरेख करने और पुनर्वास के लिए संरक्षण गृह। 

·       लंबे समय तक पुनर्वास करने के लिए पुनर्वास गृह भी प्रदान करता है।

·       सतर्कता समितियां आर्थिक पुनर्वास करने और मुक्त कराए गए श्रमिकों को ऋण प्रदान करने पर ध्यान देती हैं।   

·       संरक्षण गृह देखभाल और पुनर्वास प्रदान करते हैं।

पीड़ितों को तत्काल सुरक्षित कस्टडी भी प्रदान करते हैं।   

·       बाल कल्याण समिति यह तय करती है कि बच्चे को उसके माता-पिता के पास भेजा जाए या पुनर्वास गृह। 

·       प्रावधान नहीं है।

न्यायिक निर्णय

·       सुनवाई के लिए विशेष अदालत।

·       राज्य एग्जीक्यूटिव मैजिस्ट्रेट को मामलों की सुनवाई का अधिकार दे सकता है।**

·       विशेष अदालत मामलों की सुनवाई करती है।

·       विशेष अदालत मामलों की सुनवाई करती है।

·       कोई विशेष अदालत निर्दिष्ट नहीं है। 

Sources: 2018 Bill; Indian Penal Code, 1860; The Immoral Traffic (Prevention) Act, 1956; Bonded Labour System (Abolition) Act 1976; The Juvenile Justice (Care and Protection of Children) Act, 2015; Project on Strengthening The Law Enforcement Response In India Against Trafficking In Persons Through Training And Capacity Building, Ministry of Home Affairs; PRS.

** हनुमंतसिंह कुबेरसिंह बनाम मध्य प्रदेश राज्य (1996(0)एमपीएलजे 389) मामले में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने एग्जीक्यूटिव मैजिस्ट्रेट को न्यायिक अधिकार देने वाले प्रावधान को निरस्त कर दिया था, चूंकि कार्यकारिणी और न्यायपालिका के बीच सेपरेशन ऑफ पावर्स का उल्लंघन करने के कारण यह प्रावधान असंवैधानिक है।  

सजा और अपराध

बिल विभिन्न अपराधों के लिए सजा निर्दिष्ट करता है, जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं (i) व्यक्तियों की तस्करी, (ii) गंभीर प्रकार की तस्करी (जैसे बंधुआ मजदूरी और भीख मंगवाना), और (iii) तस्करी के लिए उकसाना। 

किसी परिसर के मालिक पर खुद को निर्दोष साबित करने की जिम्मेदारी डालना, क्या अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है

बिल उस परिसर मालिक के लिए सजा का प्रावधान करता है जिसने जानबूझकर अपने परिसर में तस्करी करने की अनुमति दी हो। बिल यह मानकर चलता है कि परिसर मालिक को अपने परिसर में अपराध होने की जानकारी थी। यह परिसर मालिक की जिम्मेदारी है कि वह इस बात को साबित करे कि उसे इसकी जानकारी नहीं थी। आपराधिक मामलों में यह आम तौर पर प्रॉसीक्यूशन की जिम्मेदारी होती है कि वह सभी उचित संदेह से परे जाकर, आरोपी के अपराध को साबित करे। बिल साबित करने की जिम्मेदारी (बर्डन ऑफ प्रूफ) को पलटकर रख देता है। जिन दूसरे कानूनों में परिसर मालिक पर खुद को निर्दोष साबित करने की जिम्मेदारी पलटी गई है, उनमें सुरक्षात्मक उपाय हैं। इस बिल में ऐसे उपाय नहीं किए गए हैं। सवाल यह उठता है कि क्या बिल का यह प्रावधान अनुच्छेद 21 का उल्लंघन करता है। चूंकि अन्य कानूनों में मौजूद सुरक्षात्मक उपायों के बिना ही यह बिल आरोपी पर खुद को निर्दोष साबित करने की जिम्मेदारी डालता है।[4]  अनुच्छेद 21 कहता है कि कानून के अतिरिक्त किसी भी दूसरे तरीके से किसी व्यक्ति को उसके जीवन के अधिकार या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता। अदालतों ने इसकी व्याख्या इस तरह की है कि कोई भी कानून या स्थापित की गई प्रक्रिया निष्पक्ष और उचित होनी चाहिए।[5]  

अनैतिक तस्करी (निवारण) एक्ट, 1986 एक उदाहरण प्रस्तुत करता है जिसमें परिसर मालिक को खुद को निर्दोष साबित करने की जिम्मेदारी दी गई है। यह एक्ट किसी ऐसे परिसर मालिक के लिए सजा का प्रावधान करता है जोकि यह जानते हुए परिसर के इस्तेमाल की अनुमति देता है कि उसे चकला (ब्रॉथल) चलाने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा। एक्ट में कुछ सुरक्षात्मक उपाय हैं। जैसे एक्ट उन्हीं परिस्थितियों में यह मानता है कि परिसर मालिक को जानकारी थी, जब (i) एक समाचार पत्र में यह रिपोर्ट छपती है कि उस परिसर का इस्तेमाल वेश्यावृत्ति के लिए किया जाना पाया गया है, और (ii) परिसर की तलाशी के दौरान पाई गई सभी चीजों की एक प्रति उस व्यक्ति को दी गई है। इसी प्रकार नारकोटिक्स और साइकोट्रॉपिक सबस्टांसेज एक्ट, 1985 ऐसे परिसर मालिक के लिए सजा का प्रावधान करता है, जिसने एक्ट के अंतर्गत अपराध करने के लिए परिसर के इस्तेमाल की जानबूझकर अनुमति दी है। यहां भी जानकारी होना तब माना जाता है जब प्रॉसीक्यूशन यह साबित कर सके कि आरोपी मामले के हालात से जुड़ा हुआ था। इस तर्क का इस्तेमाल करते हुए अदालतों ने यह फैसला दिया है कि ट्रक (जिन्हें मादक पदार्थों को ट्रांसपोर्ट करने के लिए इस्तेमाल किया गया) के स्वामित्व के आधार पर यह माना नहीं जा सकता कि उसके मालिक को अपराध होने की जानकारी थी।[6]  उदाहरण के लिए यह जानकारी होना तब माना जा सकता है, जब प्रॉसीक्यूशन यह भी साबित कर पाए कि जब मादक पदार्थों को ट्रांसपोर्ट किया जा रहा था, तब ट्रक मालिक ही ट्रक चला रहा था।[7] 

विशेष श्रेणी के पीड़ितों के मामले में आरोपी को दोषी मान लेने का तर्क अस्पष्ट है  

बिल ऐसे व्यक्ति को सजा देने का प्रावधान करता है जिसने मानव तस्करी से संबंधित अपराध किया हो, उसमें मदद की हो, या अपराध करने के लिए उकसाया हो। बिल के अंतर्गत अगर पीड़ित कोई महिला, बच्चा या मानसिक/शारीरिक रूप से विकलांग हो, तो ऐसा माना जाता है कि आरोपी व्यक्ति ने अपराध किया है। ऐसे मामलों में आरोपी व्यक्ति पर यह जिम्मेदारी है कि वह खुद को निर्दोष साबित करे (बर्डन ऑफ प्रूफ)। यहां दो मुद्दों पर विचार किए जाने की जरूरत है।

पहला, यह स्पष्ट नहीं है कि ऐसे मामलों में बर्डन ऑफ प्रूफ को क्यों पलटा गया है। दूसरा, यह स्पष्ट नहीं है कि एक ओर महिलाओं, बच्चों और विकलांगों तथा दूसरी ओर वयस्क पुरुषों के बीच भेद क्यों किया गया है।

पीड़ित को इम्यूनिटी देने की सीमा बहुत अधिक है

बिल में उस पीड़ित को इम्यूनिटी देने का प्रावधान किया गया है जिसे मृत्यु दंड, आजीवन कारावास या 10 वर्ष के कारावास की सजा दी गई है। इसके अतिरिक्त निम्नलिखित परिस्थितियों के अंतर्गत ऐसे अपराध किए गए हों: (i) दबाव में, धमकी देने या अनुचित असर के कारण, और (ii) जहां मृत्यु या गंभीर क्षति की तर्कसंगत आशंका हो। इससे दो सवाल उठते हैं।

इम्यूनिटी देने का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना हो सकता है कि तस्करी के शिकार लोगों को उन अपराधों के लिए प्रॉसीक्यूट नहीं किया जाएगा, जोकि तस्करी का सीधा नतीजा होते हैं।[8]  हालांकि बिल सिर्फ गंभीर अपराधों के लिए इम्यूनिटी देता है। उदाहरण के लिए अगर तस्करी का पीड़ित व्यक्ति अपने तस्कर के दबाव में किसी की हत्या कर देता है तो वह इम्यूनिटी का दावा कर सकता है। लेकिन अगर वह तस्कर के दबाव में छोटी चोरी (जैसे पॉकेटमारी) करता है तो उसे इम्यूनिटी नहीं मिलेगी।

दूसरी ओर इम्यूनिटी केवल तभी मिलती है जब पीड़ित यह साबित कर सके कि अपराध दबाव में, डराकर, धमकी देकर या अनुचित तरीके से प्रभावित करके करवाया गया था, और अपराध करने के समय मौत या क्षति की तर्कसंगत आशंका थी। इसलिए यह कहा जा सकता है कि प्रॉसीक्यूशन से इम्यूनिटी का दावा करने की सीमा बहुत अधिक है और इससे इम्यूनिटी देने का उद्देश्य विफल हो सकता है।

अश्लील तस्वीरों के प्रकाशन और उनके जरिए उकसावे (सॉलिसिटेशन) से संबंधित अपराधों का दायरा व्यापक हो सकता है

बिल उन सभी लोगों के लिए सजा का प्रावधान करता है जिनकी गतिविधियों का परिणाम मानव तस्करी हो सकती है। इन गतिविधियों में निम्नलिखित शामिल हैं : (i) इलेक्ट्रॉनिक प्रकाशन या उनके जरिए उकसाना, (ii) अश्लील फोटो या वीडियो लेना या उन्हें वितरित करना, अथवा (iii) पर्यटकों को उकसाना। ऐसे अपराध के लिए दोषी सिद्ध होने पर न्यूनतम पांच वर्ष से लेकर 10 वर्ष तक की सजा भुगतनी पड़ सकती है, साथ ही न्यूनतम 50,000 रुपए से लेकर एक लाख रुपए तक का जुर्माना भरना पड़ सकता है। बिल में यह अपेक्षा नहीं की गई है कि अपराधी तस्करी का इरादा साबित करे (यानी भले ही उसका इरादा न रहा हो, बिल उसे अपराधी मानता है)। इसलिए यह अस्पष्ट है कि इस गतिविधि का परिणाम तस्करी हो सकता है, यह कैसे तय होगा। 

सजा के लायक गतिविधियों का तस्करी से संबंधित न होने का तर्क अस्पष्ट है

बिल के अंतर्गत जबरदस्ती वसूली, दबाव बनाने या गैर कानूनी तरीके से फायदा लेने के लिए अगर कोई व्यक्ति यौन उत्पीड़न या हमले को प्रदर्शित करने वाली सामग्री को वितरित करता है या उसे बेचता है तो उसे तीन से सात वर्ष के कारावास की सजा भुगतनी पड़ सकती है और कम से कम एक लाख रुपए का जुर्माना भरना पड़ सकता है। इस प्रावधान में ऐसी गतिविधियों का तस्करी के अपराध से संबंधित होना जरूरी नहीं है। यह अस्पष्ट है कि बिल ऐसी गतिविधियों के लिए सजा देने की आज्ञा क्यों देता है, जिनका मानव तस्करी से कोई संबंध नहीं हो सकता है। उल्लेखनीय है कि भारतीय दंड संहिता, 1860 का सेक्शन 383 जबरदस्ती वसूली के अपराध से संबंधित है और इसके लिए तीन वर्ष तक की सजा और/अथवा जुर्माने की सजा देता है।   

सजा के श्रेणीकरण का तर्क अस्पष्ट है

बिल तस्करी की कुछ श्रेणियों को गंभीर तस्करी के रूप में वर्गीकृत करता है। गंभीर किस्म की तस्करी में बलात श्रम करवाने, भीख मंगवाने, बच्चे पैदा करने या किसी को गंभीर क्षति पहुंचाने के उद्देश्य से की गई तस्करी शामिल है। शारीरिक या यौन शोषण, दास बनाना और शरीर से जबरदस्ती अंग निकालना गंभीर किस्म की तस्करी में शामिल नहीं है। जबकि सामान्य तस्करी में सात से दस वर्ष की सजा का प्रावधान है, गंभीर किस्म की तस्करी के मामलों में न्यूनतम दस वर्ष से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान है। यह कहा जा सकता है कि तस्करी की सामान्य और गंभीर किस्मों के लिए दी जाने वाली सजा परस्पर अनुपात में नहीं है। उदाहरण के लिए मानव अंग निकालने या यौन उत्पीड़न के लिए तस्करी करने के मुकाबले भीख मंगवाने के लिए तस्करी करने पर अधिक सजा है।    

इसके अतिरिक्त बिल कहता है कि तस्करी के लिए किसी व्यक्ति को भाड़ेपर रखने की स्थिति में तीन से पांच वर्ष के कारावास की सजा भुगतनी पड़ सकती है और कम से कम एक लाख रुपए तक का जुर्माना भरना पड़ सकता है। हालांकि बिल के अंतर्गत तस्कर की परिभाषा में ऐसे व्यक्ति शामिल हैं जो शोषण के लिए दूसरे व्यक्तियों को भर्ती करते हैं। ऐसे लोगों को सात वर्ष तक की सजा भुगतनी पड़ सकती है और जुर्माना भरना पड़ सकता है। यह अस्पष्ट है कि भाड़े पर रखने वाले व्यक्ति और भर्ती करने वाले व्यक्ति, दोनों की सजा अलग-अलग क्यों है।

बिल और दूसरे कानूनों के अंतर्गत निर्धारित सजा के बीच तुलना

बिल मानव तस्करी के अपराध पर अलग-अलग तरह की सजाओं को निर्दिष्ट करता है। अगर कोई व्यक्ति इस बिल और अन्य कानून, दोनों के अंतर्गत दोषी पाया जाता है तो वह सजा लागू होगी, जो अधिक होगी। तालिका 4 में इनमें से कुछ कानूनों के अंतर्गत निर्दिष्ट सजाओं की तुलना, बिल के अंतर्गत निर्दिष्ट सजा से की गई है। उल्लेखनीय है कि अधिकतर मामलों में बिल के अंतर्गत निर्धारित सजा, अन्य कानूनों के अंतर्गत निर्धारित सजा से अधिक है।

तालिका 4 : बिल और दूसरे कानूनों के अंतर्गत निर्धारित सजा के बीच तुलना

अपराध

बिल के अंतर्गत सजा

मौजूदा कानूनों के अंतर्गत सजा

वेश्यावृत्ति के लिए तस्करी

·        7-10 वर्ष तक का कारावास और जुर्माना।

·        आईटीपीए: वेश्यावृत्ति के लिए तस्करी विभिन्न अपराधों के अंतर्गत सजा के योग्य है और उनके लिए 3-14 वर्ष तक के कारावास और जुर्माने की सजा का प्रावधान है।

तस्करी के शिकार व्यक्ति का यौन शोषण

·        7-10 वर्ष का कारावास और कम से कम 1,00,000 रुपए का जुर्माना।

·        आईपीसी: 3-5 वर्ष का कारावास और जुर्माना।

किसी व्यक्ति को बंधुआ मजदूरी के लिए मजबूर करना

·        10 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास की सजा और जुर्माना।

·        बिएलएसएए: 3 वर्ष तक का कारावास, और 2,000 रुपए तक का जुर्माना।

नाबालिगों की तस्करी

·        10 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास की सजा और जुर्माना।

·        आईटीपीए: वेश्यावृत्ति के लिए किसी नाबालिग (16-18 वर्ष) की तस्करी करने पर 7-14 वर्ष तक के कारावास की सजा और जुर्माने का प्रावधान है।

·        आईटीपीए: वेश्यावृत्ति के लिए किसी नाबालिग (16 वर्ष से कम आयु के) की तस्करी करने पर 7 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा और जुर्माने का प्रावधान है।

·        आईपीसी: यौन शोषण के लिए किसी नाबालिग लड़की (18 वर्ष के कम आयु की) को हासिल करने या विदेशी लड़की (21 वर्ष के कम आयु की) का आयात करने पर 10 वर्ष तक के कारावास की सजा और जुर्माने का प्रावधान है।

·        जेजे एक्ट: किसी नाबालिग को बंधुआ मजदूरी के लिए मजबूर करने पर 5 वर्ष के कारावास की सजा भुगतनी पड़ती है और एक लाख रुपए का जुर्माना भरना पड़ता है। 

नाबालिगों को खरीदना या बेचना

·        7-10 वर्ष का कारावास और कम से कम 1,00,000 रुपए का जुर्माना।

·        आईपीसी: पांच वर्ष तक का कारावास और एक लाख रुपए का जुर्माना।

नारकोटिक ड्रग देकर तस्करी

·        10 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास की सजा और जुर्माना।

·        आईपीसी: 10 वर्ष तक का कारावास और जुर्माना।

शादी के लिए अपहरण करना

·        10 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास की सजा और जुर्माना।

·        आईपीसी: 10 वर्ष तक का कारावास और जुर्माना।

नोट्स: आईपीसी- भारतीय दंड संहिता, 1860; आईटीपीए – अनैतिक तस्करी (निवारण) एक्ट, 1956; बीएलएसएए – बंधुआ मजदूरी प्रणाली (उन्मूलन) एक्ट 1976; जेजे एक्ट – किशोर न्याय (बच्चों की देखरेख और संरक्षण) एक्ट, 2015; पीआरएस।

 

[1]. ‘Crime in India2016, National Crime Records Bureau.

[2]. United Nations Protocol to Prevent, Suppress and Punish Trafficking in Persons Especially Women and Children, 2000, OHCHR, https://www.ohchr.org/en/professionalinterest/pages/protocoltraffickinginpersons.aspx

[3]. Prajwala vs. Union of India 2016 (1) SCALE 298.

[4]. Noor Aga vs. State of Punjab (2008) 16 SCC 417.

[5]. Maneka Gandhi vs. Union of India 1978 AIR 597.

[6]. Bhola Singh vs. State of Punjab (2011) 11 SCC 653.

[7]. Sushant Gupta vs. Union of India 2014 (308) ELT 661 (All.).

[8]. Guideline 7, Recommended Principles and Guidelines on Human Rights and Human Trafficking, OHCHR,  https://www.ohchr.org/Documents/Publications/Traffickingen.pdf.

 

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