स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
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श्रम, कपड़ा और दक्षता विकास संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: श्री भर्तृहरि महताब) ने 7 फरवरी, 2024 को 'कपास क्षेत्र के विकास' पर अपनी रिपोर्ट पेश की। कमिटी के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
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कपास की निम्न उत्पादकता: भारत में कपास की उत्पादकता लगभग 447 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है, जो ब्राजील (1,830 किलोग्राम/हेक्टेयर) और अमेरिका (1,065 किलोग्राम/हेक्टेयर) जैसे अन्य कपास उत्पादक देशों की तुलना में काफी कम है। कमिटी ने ऐसे कई कारणों का उल्लेख किया जिनके चलते अपेक्षा से कम उत्पादन होता है। भारत में कपास की लगभग 67% उपज वर्षा जल पर निर्भर है इसीलिए मौसम में परिवर्तन के कारण उस पर काफी असर होता है। इसके अलावा जिन क्षेत्रों में कपास की फसल में सिंचाई की जाती है, वहां सिंचाई नहर के पानी के छोड़े जाने पर निर्भर करती है, न कि फसल की जरूरत पर। कमिटी ने कपास के खेती क्षेत्र को बड़ी मात्रा में सिंचाई के अंतर्गत लाने के लिए स्थायी कदम उठाने का सुझाव दिया और कहा कि सिंचाई को धीरे-धीरे मांग आधारित बनाया जाना चाहिए।
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कमिटी ने कहा कि कम उत्पादकता का मुद्दा और भी गंभीर हो गया है क्योंकि कपास को फसल चक्र या अवशेष प्रबंधन के बिना लगातार उगाया जाता है। इससे मिट्टी की सेहत खराब होती है। कमिटी ने कहा कि खेती की नई तकनीकें विकसित की जाएं, फसल स्वास्थ्य और कीट उन्मूलन के लिए अभियान चलाए जाएं और अच्छी कार्य पद्धतियों का प्रदर्शन किया जाए।
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पुरानी किस्म के बीजों के कारण निम्न उत्पादकता: कमिटी ने यह भी कहा कि उपयोग में आने वाली बीज तकनीक पुरानी हो चुकी है और नई किस्म के बीजों की तत्काल आवश्यकता है। कपास के उच्च उपज वाले मैक्सिको जैसे देशों ने बीटी+ हर्बिसाइड टॉलरेंट ट्रेट्स (शाकनाशी सहिष्णु गुण) वाले जेनेटिकली मॉडिफाइड बीजों का इस्तेमाल किया है। कमिटी ने सुझाव दिया कि मंत्रालय भारतीय आवश्यकताओं के अनुरूप शीघ्र परिपक्व होने वाले और हाइब्रिड (संकर) बीजों के विकास को बढ़ाए। नागपुर के केंद्रीय कपास अनुसंधान संस्थान ने सुझाव दिया है कि जल्दी पकने वाली बीटी और गैर-बीटी किस्मों का उपयोग 20% कपास क्षेत्र में किया जा सकता है जहां लंबी अवधि के बीटी हाइब्रिड बीज का उपयोग किया जाता है। कमिटी ने कहा कि बीज किस्मों के विकास में निजी भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए इन बीजों को पौधा किस्म और किसान अधिकार संरक्षण प्राधिकरण द्वारा संरक्षित किया जाना चाहिए।
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किसानों के लिए कुछ बीजों का इस्तेमाल महंगा है: वर्तमान में बीटी कपास हाइब्रिड बीज ज्यादातर निजी क्षेत्र द्वारा उत्पादित किए जाते हैं। हर साल इन बीजों को खरीदने से किसानों का कर्ज काफी बढ़ जाता है। कमिटी ने सुझाव दिया कि किसानों को गुणवत्तापूर्ण बीज खरीदने और खेती की अच्छी पद्धतियों को अपनाने के लिए वित्तीय सहायता दी जानी चाहिए। उसने यह भी कहा कि कपड़ा मंत्रालय और कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय को मूल्य सीमा लगानी चाहिए और बीज विकास को प्रोत्साहन देना चाहिए।
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उच्च गुणवत्ता वाली किस्मों का विकास: एक्स्ट्रा-लॉन्ग स्टेपल कॉटन (अतिरिक्त लंबा स्टेपल कपास) अपनी उच्च गुणवत्ता के कारण सबसे अधिक मांग वाली किस्म है। इस किस्म का घरेलू उत्पादन घरेलू मांग को पूरा नहीं करता। कमिटी ने सुझाव दिया कि ऐसे बीज विकसित किए जाने चाहिए जो सूखे और शुष्क क्षेत्रों के प्रति सहनशील हों और जिनमें कीटों और बीमारियों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता हो। इसके अलावा, ड्रिप फर्टिगेशन (ड्रिप सिंचाई प्रणाली में उर्वरकों का उपयोग) की अत्याधुनिक तकनीकों को भी अपनाया जाना चाहिए। कमिटी ने कहा कि कपास विकास के सभी क्षेत्रों में निजी क्षेत्र के साथ साझेदारी एक व्यवहार्य विकल्प है।
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कपास का व्यापार और एमएसपी: कमिटी ने कहा कि कपास पर आयात शुल्क ने कपड़ा उद्योग के लिए इसे और अधिक महंगा बना दिया और इससे यह कम प्रतिस्पर्धी हो जाता है। हालांकि आयात शुल्क में छूट से सस्ते कपास की आमद होती है। लाभकारी मूल्यों पर सुनिश्चित खरीद के अभाव में इससे किसानों पर बोझ बढ़ सकता है। कमिटी ने सुझाव दिया कि केंद्र सरकार उत्पादन लागत से कम से कम 1.5 गुना अधिक कीमत पर सुनिश्चित खरीद करे। उसने यह सुझाव भी दिया कि सरकार को आयात शुल्क राजस्व नहीं छोड़ना चाहिए। वर्तमान में कृषि लागत और मूल्य आयोग कपास के लिए ए2+एफएल उत्पादन लागत की 1.5 गुना एमएसपी का सुझाव देता है। ए2+एफएल लागत में इनपुट लागत और पारिवारिक श्रम की लागत शामिल है।
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जागरूकता अभियान: भारतीय कपास निगम ने क्षेत्रीय भाषाओं में किसानों की जागरूकता बढ़ाने के लिए Cott-Ally नामक एक ऐप विकसित किया है। यह क्षेत्रीय भाषाओं में जानकारी प्रदान करता है। कमिटी ने सुझाव दिया कि ऐप को कपास के बीज की बिक्री, बाजार के रुझान और मांग और कपास की गुणवत्ता से संबंधित पहलुओं जैसी जानकारी भी प्रदान करनी चाहिए। ऐप का उपयोग बिचौलियों से बचने और बाजार तक सीधे पहुंच के बारे में जानकारी प्रसारित करने के लिए भी किया जा सकता है।
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