स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
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स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: श्री राम गोपाल यादव) ने 12 सितंबर, 2022 को ‘कैंसर देखभाल की योजना और प्रबंधन: रोकथाम, निदान, अनुसंधान और कैंसर उपचार की वहनीयता (एफोर्डेबिलिटी)’ पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। कमिटी के मुख्य निष्कर्ष और सुझाव निम्नलिखित हैं:
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कैंसर की रोकथाम: कमिटी ने कहा कि भारत में सभी प्रकार के कैंसर में से लगभग 50% का कारण तंबाकू का सेवन है। उसने कहा कि उत्तर पूर्वी क्षेत्रों में तंबाकू से संबंधित कैंसर के बहुत अधिक मामले होते हैं। ऐसे कैंसर की रोकथाम की जा सकती है, लेकिन तंबाकू के सेवन को कम करने पर अपेक्षित ध्यान नहीं दिया गया है। कमिटी ने सरकार को सुझाव दिया कि वह तंबाकू के सेवन के खिलाफ अभियान पर ध्यान केंद्रित करे और किशोरों को तंबाकू की लत से बचाने के लिए रणनीति तैयार करे। कुछ सामान्य कैंसर जैसे सर्वाइकल और वुल्वर कैंसर को वैक्सीनेशन से रोका जा सकता है। कमिटी ने कहा कि सर्वाइकल कैंसर के लक्षणों के बारे में जागरूकता बढ़ाना जरूरी है। उसने सर्वाइकल कैंसर के लिए ह्यूमन पैपिलोमा वायरस (एचपीवी) वैक्सीन के असर का पता लगाने के लिए और ज्यादा टेस्ट कराने का सुझाव दिया। अगर नतीजे संतोषजनक होते हैं तो सरकार वैक्सीनेशन कार्यक्रम में एचपीवी वैक्सीन को शामिल कर सकती है।
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कैंसर की स्क्रीनिंग और उसका पता लगाना: कमिटी ने कहा कि राष्ट्रीय कैंसर, डायबिटीज़, कार्डियोवैस्कुलर रोग और स्ट्रोक रोकथाम और नियंत्रण कार्यक्रम (एनपीसीडीसीएस) के अंतर्गत कॉमन कैंसर की स्क्रीनिंग वॉलिंटियर आधारित है और इसीलिए इसमें अधिक जांच और उपचार के लिए फॉलोअप की नीति शामिल नहीं है। केंद्र सरकार को भारत में कैंसर के राष्ट्रीय स्क्रीनिंग कार्यक्रम को स्पांसर करने की जरूरत है। सरकार को राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) स्तर पर देशव्यापी जनसंख्या आधारित स्क्रीनिंग की एक योजना बनानी चाहिए। हर पीएचसी अपने क्षेत्र में लोगों की स्क्रीनिंग के लिए जिम्मेदार होनी चाहिए। बेहतर प्रबंधन के लिए देश भर में स्क्रीनिंग कार्यक्रमों को कैंसर रजिस्ट्रियों से जोड़ने के लिए व्यवस्था तैयार की जानी चाहिए। एनपीसीडीसीएस केवल तीन कॉमन कैंसर (ओरल, सर्वाइकल और ब्रेस्ट) को कवर करता है। कमिटी ने सुझाव दिया कि सरकार को एनपीसीडीसीएस के तहत अन्य प्रचलित कैंसरों को शामिल करने पर विचार करना चाहिए।
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कैंसर का डायग्नॉसिस: कैंसर की डायग्नॉस्टिक प्रक्रियाएं महंगी हैं और सार्वजनिक अस्पतालों में डायग्नॉस्टिक सुविधाओं का अभाव है जिसके कारण मरीजों को निजी अस्पतालों पर निर्भर रहना पड़ता है। कमिटी ने डायग्नॉस्टिक टेस्टिंग के चार्ज की अधिकतम सीमा तय करने का सुझाव दिया। उसने स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय को सुझाव दिया कि वह सभी जिला अस्पतालों में डायग्नॉस्टिक सुविधाओं का आकलन करे और एक विकेंद्रीकृत डायग्नॉस्टिक टेस्टिंग नेटवर्क बनाए।
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कैंसर रजिस्ट्रियां: कमिटी ने कहा कि भारत की जनसंख्या का केवल 10% ही राष्ट्रीय कैंसर रजिस्ट्री कार्यक्रम के तहत जनसंख्या-आधारित कैंसर रजिस्ट्रियों (पीबीसीआर) के दायरे में आता है। उसने कहा कि पूरे भारत में कैंसर के मामलों और प्रकारों के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए ग्रामीण स्तर पर अधिक पीबीसीआर की तत्काल जरूरत है। उसने राष्ट्रीय रोग सूचना विज्ञान और अनुसंधान केंद्र को सुझाव दिया कि वह उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों में कैंसर रजिस्ट्रियां बनाए।
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प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (पीएम-जय): पीएम-जय के अंतर्गत लाभार्थी परिवारों को माध्यमिक और तृतीयक स्तर की स्वास्थ्य सेवा के लिए प्रति परिवार पांच लाख रुपए का वार्षिक परिभाषित स्वास्थ्य कवर मिलता है। कमिटी ने सुझाव दिया कि योजना में कैंसर देखभाल के लिए डायग्नॉस्टिक टेस्ट्स और अन्य सेवाओं को शामिल किया जाना चाहिए। उसने यह भी कहा कि योजना के अंतर्गत सभी प्रकार की दवाएं और नई थेरेपी शामिल नहीं हैं। कमिटी ने मंत्रालय को सुझाव दिया कि वह योजना के अंतर्गत दवाओं की सूची को नियमित रूप से अपडेट करे।
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एंटी कैंसर दवाओं की कीमतों पर बातचीत: एंटी-कैंसर दवाएं और उपकरण बहुत महंगे हैं। कैंसर देखभाल केंद्रों को उपकरण निर्माताओं और फार्मास्युटिकल उद्योग के साथ प्रतिस्पर्धात्मक कीमतों पर बातचीत करना मुश्किल हो सकता है। कमिटी ने कहा कि राष्ट्रीय कैंसर ग्रिड (कैंसर देखभाल के समान मानकों के लिए तैयार) ने कई केंद्रों द्वारा आम तौर पर इस्तेमाल की जाने वाली, हाई वैल्यू वस्तुओं की मांग का एक साथ आकलन किया और फिर उद्योग के साथ बातचीत की। इस प्रकार ग्रिड ने प्राइस डिस्कवरी मैथेड पर काम किया है। इससे कैंसर देखभाल की लागत को कम करने और दवाओं की गुणवत्ता बरकरार रखने में मदद मिली है। कमिटी ने सुझाव दिया कि सरकार को निम्नलिखित करना चाहिए: (i) केंद्रीय टेंडरिंग प्लेटफॉर्म के जरिए कैंसर की दवाओं के लिए सामूहिक बातचीत को बढ़ावा देने वाले उपाय करना, और (ii) उपकरणों और उपभोक्ता वस्तुओं के लिए भी ऐसी बातचीत की जाए।
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राष्ट्रीय फार्मास्युटिकल मूल्य निर्धारण अथॉरिटी (एनपीपीए): एनपीपीए आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची (एनएलईएम) के तहत अनुसूचित दवाओं की कीमतों को तय, संशोधित और उनकी निगरानी करता है। एनएलईएम में खुदरा विक्रेताओं को दवाओं की कीमतों में 16% मार्जिन की अनुमति है। कमिटी ने कहा कि यह मार्जिन बहुत अधिक था। उसने सरकार को सुझाव दिया कि वह खुदरा विक्रेताओं के 16% मार्जिन को कम करे या खुदरा विक्रेताओं/उपभोक्ताओं को सब्सिडी दे। कमिटी ने यह सुझाव भी दिया कि गैर-अनुसूचित दवाओं की कीमतों में अनुमत 10% वार्षिक वृद्धि को घटाकर 5% किया जाना चाहिए।
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