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प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना- एक मूल्यांकन

स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश

  • कृषि संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: पी. सी. गद्दीगौदर) ने 10 अगस्त, 2021 को प्रधानमंत्री फसल बीमा (पीएमएफबीवाई) के मूल्यांकन पर  अपनी रिपोर्ट सौंपी। पीएमएफबीवाई के अंतर्गत किसानों को उस प्राकृतिक संकट से सुरक्षित रखने के लिए फसल बीमा मिलता है जिनका निवारण नहीं किया जा सकता। कमिटी के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
     
  • राज्यों की भागीदारी: कमिटी ने कहा कि योजना के दिशानिर्देशों में हाल ही में संशोधन हुए हैं जिनके कारण राज्य सरकारें उससे पीछे हट सकती हैं। कमिटी ने ऐसे संशोधनों में परिवर्तन का सुझाव दिया जो: (i) राज्यों को योजना में भागीदारी करने से इस आधार पर प्रतिबंधित करते हैं कि उन्होंने सबसिडी जारी करने में देरी की (एक निश्चित समय सीमा के बाद), और (ii) राज्य सरकारों के लिए अनिवार्य करते हैं कि वे निर्दिष्ट दरों से अधिक प्रीमियम दरों वाले क्षेत्रों/फसलों के लिए पूरी सबसिडी का वहन करें। कमिटी ने आगे कहा कि बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे कई राज्य इस योजना से हट गए हैं, जबकि पंजाब ने इसे कभी लागू ही नहीं किया। उसने वित्तीय अवरोध और सामान्य मौसम में निम्न दावा अनुपात को इसकी वजह बताया। उसने राज्यों की भागीदारी बढ़ाने के लिए उपाय करने की सिफारिश की।
     
  • कवरेज: कमिटी ने कहा कि किसान जिन्होंने लोन लिया हुआ है, वे एक डेक्लेरेशन फॉर्म भरकर इस योजना से बाहर हो सकते हैं। हालांकि जागरूकता की कमी की वजह से कई किसान जरूरी फॉर्म जमा नहीं करते और उनके बैंक खाते से प्रीमियम की कटौती हो जाती है। कमिटी ने सुझाव दिया कि इस प्रावधान में संशोधन किए जाएं जिससे ऐसे किसान और इस योजना का लाभ लेने वाले किसान अलग से इसका विकल्प चुन सकें।  
     
  • निपटारे में देरी: कमिटी ने बीमा दावों के निपटान में देरी को योजना के कार्यान्वयन की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक माना। उसने कहा कि देरी के कई कारण हो सकते हैं, जैसे: (i) उपज डेटा और राज्यों द्वारा प्रीमियम सबसिडी को समय पर जारी न करना, (ii) बीमा कंपनियों और राज्यों के बीच उपज से संबंधित विवाद, और (iii) किसानों के खातों का विवरण न मिलना। उसने तकनीक और सभी संस्थागत प्रणालियों के बीच समन्वय के जरिए इन समस्याओं को दूर करने का सुझाव दिया। कमिटी ने बीमा कंपनियों के दावों के निपटान की एक समय सीमा लागू करने का भी सुझाव दिया। जिन मामलों में देरी इसलिए हुई क्योंकि राज्य सरकार ने सबसिडी नहीं चुकाई, ऐसे हालात में कमिटी ने सुझाव दिया कि किसानों को ब्याज के साथ प्रीमियम एक निश्चित समय सीमा में लौटाया जाए। 
     
  • बीमा कंपनियां: कमिटी ने गौर किया कि बीमा कंपनियों के लिए प्रत्येक तहसील में एक चालू कार्यालय होना आवश्यक है। हालांकि कई जिलों में इनका अभाव है। यह कहा गया कि ये कार्यालय किसानों के लिए योजना का लाभ प्राप्त करने में आने वाली समस्याओं को कम करने हेतु महत्वपूर्ण हैं। इसके अतिरिक्त कमिटी ने बीमा पोर्टल पर अधिकारियों के संपर्क विवरण अपलोड करने का सुझाव दिया।
     
  • कंपनियों के लिए सजा: कमिटी ने गौर किया कि डीफॉल्टिंग बीमा कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई करने में देरी होती है। उसने प्रक्रियागत जटिलताओं को इसका कारण बताया और सुझाव दिया कि एक निश्चित समय सीमा में डीफॉल्टर्स को दंडित किया जाए। 
     
  • शिकायत निवारण: कमिटी ने कहा कि राज्य और जिला स्तर पर सिर्फ 15 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने शिकायत निवारण कमिटी बनाई है, जबकि योजना के अंतर्गत ऐसा करना अनिवार्य है। उसने यह सुनिश्चित किए जाने का सुझाव दिया कि अन्य सभी राज्यों में ऐसी कमिटी बनाई गई हैं। उसने कृषि एवं किसान कल्याण विभाग को भी सुझाव दिया कि वह जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए जिला स्तरीय कमिटी में स्थानीय जन प्रतिनिधि (संसद सदस्यों सहित) को नामित करे। उसने कहा कि कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के पास प्राप्त होने और हल होने वाली शिकायतों का कोई डेटा नहीं होता और कमिटी ने ऐसे डेटा रिकॉर्ड करने का सुझाव दिया। उसने किसानों के सवालों के जवाब देने के लिए टोल-फ्री हेल्पलाइन बनाने का भी सुझाव दिया। 
     
  • तकनीकी दखल: कमिटी ने कहा कि दावों के निपटारे में देरी की मुख्य वजहों में उपज संबंधी विवाद और उपज डेटा को भेजने में विलंब शामिल हैं। उसने कहा कि राज्य सरकारें यह डेटा देती हैं जोकि क्रॉप कटिंग प्रयोगों पर आधारित होता है। इसमें काफी ज्यादा समय लगता है और यह श्रम गहन होता है। इसके लिए कमिटी ने उपग्रह डेटा या ड्रोन के उपयोग जैसे तकनीकों का उपयोग करके सभी राज्यों द्वारा स्मार्ट सैंपलिंग तकनीकों को अपनाने का सुझाव दिया। इसके अतिरिक्त कमिटी ने 3% प्रशासनिक व्यय के उपयोग की नियमित निगरानी करने का सुझाव दिया। इस राशि को इंफ्रास्ट्रक्चर और तकनीक को विकसित करने के लिए निर्धारत किया गया है।
     
  • कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (सीएसआर): कमिटी ने कहा कि यह योजना बीमा कंपनियों को इस बात के लिए बाध्य नहीं करती कि वे अपने मुनाफे का हिस्सा उन जिलों में खर्च करें जहां से मुनाफा कमाया जाता है। कमिटी ने ऐसा करने के लिए एक प्रावधान जोड़ने का सुझाव दिया।

 

अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (पीआरएस) के नाम उल्लेख के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।

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