स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
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रसायन एवं उर्वरक संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: डॉ. शशि थरूर) ने 21 मार्च, 2023 को 'सतत फसल उत्पादन और मृदा स्वास्थ्य बरकरार रखने के लिए नैनो-उर्वरक' पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। कमिटी के प्रमुख निष्कर्ष और सुझाव निम्नलिखित हैं:
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कृषि को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जैसे फसल की पैदावार में ठहराव, पोषक तत्वों की कमी और कृषि योग्य भूमि की कम उपलब्धता। काफी हद तक उत्पादकता में वृद्धि से खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि होनी चाहिए, क्योंकि कृषि क्षेत्र में वृद्धि की बहुत कम गुंजाइश है। उर्वरकों से पोषक तत्व मिलते हैं और इनसे इष्टतम फसल उत्पादकता सुनिश्चित होती है। हालांकि भारत में उर्वरकों की खपत असंतुलित है और नाइट्रोजन उर्वरकों में यूरिया का हिस्सा 82% है। यूरिया जैसे पारंपरिक उर्वरक उपयोग के दौरान इकोसिस्टम को प्रदूषित करते हैं।
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नैनो-उर्वरकों का विकास: कमिटी ने कहा कि भारतीय किसान उर्वरक सहकारी लिमिटेड (इफको) ने नैनो यूरिया विकसित किया है जो उर्वरकों के असंतुलित उपयोग को दूर करने का प्रयास करता है। नैनो यूरिया को फरवरी 2021 में कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने नैनो-उर्वरक के रूप में अधिसूचित किया था। इफको ने नैनो जिंक, नैनो कॉपर और नैनो सल्फर जैसे अन्य पोषक तत्वों के लिए नैनो-उर्वरक तकनीक भी विकसित की है। कई फसलों पर अनुसंधान परीक्षण किए गए हैं। कमिटी ने सुझाव दिया कि उर्वरक विभाग और इफको उन नैनो-उर्वरकों के व्यावसायिक उपयोग की प्रक्रिया में तेजी लाएं, जिनका पर्याप्त फील्ड परीक्षण हो चुका है। उसने यह सुझाव भी दिया कि अन्य नैनो-उर्वरकों की कीमत पारंपरिक थोक उर्वरकों की प्रचलित कीमत से काफी सस्ती होनी चाहिए।
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नैनो-उर्वरकों के लाभ: कमिटी ने गौर किया कि नैनो-उर्वरकों की कीमत सबसिडी वाले पारंपरिक उर्वरकों से कम है। इफको फील्ड ट्रायल के अनुसार, नैनो यूरिया की 500 मिलीलीटर की बोतल (240 रुपए) पारंपरिक यूरिया (267 रुपए) के 45 किलोग्राम बैग के स्थान पर खरीदी जा सकती है। कमिटी ने यह भी गौर किया कि नैनो यूरिया परिवहन और वेयरहाउसिंग की लागत को कम कर सकता है, और इसके परिणामस्वरूप फसल की उत्पादकता बेहतर हो सकती है और किसानों की आय में वृद्धि हो सकती है। फील्ड परीक्षणों में यह भी पाया गया है कि नैनो यूरिया के प्रयोग के कारण औसत उपज 8% अधिक थी। हालांकि कृषि अनुसंधान और शिक्षा विभाग के अनुसार, विभिन्न फसलों की पोषण गुणवत्ता पर नैनो-उर्वरकों के दीर्घकालिक प्रभाव को फिलहाल निर्धारित नहीं किया जा सकता क्योंकि अनुसंधान परीक्षणों को केवल एक वर्ष पूरा हुआ है। कमिटी ने सुझाव दिया कि नैनो-उर्वरकों के लाभों और दुष्प्रभावों का आकलन करने के लिए दीर्घकालिक शोध किया जाना चाहिए।
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नैनो-उर्वरकों को अपनाने की दिशा में चुनौतियां: कमिटी ने कहा कि नैनो यूरिया के कारण जो लागत बचेगी, उससे किसानों की आय दोगुनी हो सकती है। हालांकि यह कहा गया कि छोटे और सीमांत किसानों के कारण इसे अपनाना चुनौतीपूर्ण हो जाता है। विभाग ने नैनो यूरिया के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए ग्राम स्तर पर प्रदर्शन और रेडियो पर पैनल चर्चा जैसे कई उपाय किए हैं। कमिटी ने यह भी कहा कि एक एग्रीकल्चरल स्प्रेयर (तरल उर्वरक के छिड़काव के लिए इस्तेमाल किया जाता है) की कीमत 1,200 रुपए से 10,000 रुपए के बीच होती है, जो इसके प्रकार पर निर्भर करता है। कमिटी ने सुझाव दिया कि मंत्रालय नैनो-उर्वरकों के छिड़काव के प्रभावी और सस्ते साधन उपलब्ध कराने की अपनी कोशिशों में तेजी लाए।
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कमिटी ने कहा कि ड्रोन का इस्तेमाल नैनो-उर्वरकों के छिड़काव के लिए भी किया जाता है और नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने ड्रोन के निर्माण के लिए नीतिगत और प्रक्रियागत बाधाओं को दूर कर दिया है। हालांकि कमिटी ने कहा कि एक एग्रीकल्चर ड्रोन की कीमत लगभग 10 लाख रुपए है, जो कि छोटे और सीमांत किसानों (86% किसानों) के लिए वहन करना मुश्किल है। यह भी कहा गया कि किसान ड्रोन का प्रशिक्षण हासिल कर सकें, यह भी आसान नहीं क्योंकि प्रशिक्षण केंद्रों की संख्या कम है। कमिटी ने सुझाव दिया कि विभाग को उद्यमियों और किसानों के लिए ड्रोन आधारित उर्वरक स्प्रेयर्स के बारे में नियमित प्रशिक्षण कार्यक्रम संचालित करने हेतु योजना बनानी चाहिए।
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धनराशि का आवंटन: कमिटी ने कहा कि उर्वरक विभाग ने नैनो टेक्नोलॉजी के लिए अलग से धनराशि आवंटित नहीं की है। उसने सुझाव दिया कि मंत्रालय को उर्वरक पीएसयूज़ के जरिए नैनो-टेक्नोलॉजी-आधारित अनुसंधान के लिए एक बड़ी राशि आवंटित करनी चाहिए। उसने कहा कि विभिन्न नैनो-उर्वरकों के विकास से आत्मनिर्भरता प्राप्त करने में मदद मिलेगी और उर्वरकों के बढ़ते आयात पर खर्च होने वाली विदेशी मुद्रा की बचत होगी।
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आयात: कमिटी ने कहा कि यूरिया का आयात 2016-17 के 55 लाख मीट्रिक टन से बढ़कर 2020-21 में 98 लाख मीट्रिक टन हो गया। यूरिया आयात के कारण सबसिडी का बोझ सरकार द्वारा एक वर्ष में भुगतान की गई कुल यूरिया सबसिडी का 26% है। इसके मद्देनजर कमिटी ने कहा कि यूरिया का उचित इस्तेमाल जरूरी है और नैनो-उर्वरक आयात निर्भरता को कम कर सकते हैं। उसने कहा कि अगर नैनो-उर्वरकों का इस्तेमाल किया जाता है तो सरकार हर साल सबसिडी पर 25,000 करोड़ रुपए बचा सकती है। कमिटी ने कहा कि जो देश कच्चे माल से समृद्ध हैं, उन देशों के साथ विभाग को दीर्घकालिक आयात समझौते करने चाहिए और बाय बैक व्यवस्था के साथ संयुक्त उद्यम संयंत्र स्थापित करने चाहिए।
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कमिटी ने कहा कि सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की कंपनियां जो नैनो-उर्वरकों का निर्माण करना चाहती हैं, उन्हें सरकार द्वारा हर संभव तरीके से समर्थन दिया जाना चाहिए। कमिटी ने सुझाव दिया कि विभाग नैनो-उर्वरकों के लिए प्रोडक्शन लिंक्ड इन्सेंटिव (पीएलआई) योजना लाने के लिए वित्त मंत्रालय से बातचीत करे ताकि उर्वरक उद्योग को बढ़ावा दिया जा सके।
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