स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
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वाणिज्य संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी) ने 10 अगस्त, 2023 को ‘उत्तर पूर्वी क्षेत्र में व्यापार और उद्योगों का विकास’ पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। कमिटी के प्रमुख निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
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कनेक्टिविटी: उत्तर पूर्वी क्षेत्र में राज्यों के भीतर, और परस्पर परिवहन की खराब व्यवस्था है। उनके बीच कनेक्टिविटी की समस्याएं हैं। इससे इस क्षेत्र में रोजमर्रा का जीवन और औद्योगिक विकास बाधित हुआ है। कनेक्टिविटी में सुधार के लिए कमिटी ने निम्नलिखित सुझाव दिए: (i) नए राज्य राजमार्गों और छोटी/जिला सड़कों का निर्माण, (ii) सीमावर्ती क्षेत्रों में सड़क नेटवर्क को चौड़ा करना, (iii) मालगाड़ियों की फ्रीक्वेंसी बढ़ाना, (iv) हवाई अड्डों पर एयर कार्गो हैंडलिंग और कोल्ड स्टोरेज केंद्र बनाना, और (v) राष्ट्रीय जलमार्गों की व्यावहारिकता से संबंधित अध्ययनों को पूरा करना।
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औद्योगिक उपयोग के लिए जमीन: अधिकांश उत्तर पूर्वी राज्यों में गैर-आदिवासियों को भूमि हस्तांतरित नहीं की जा सकती। औद्योगिक उपयोग के लिए भूमि का कोई डेटाबेस भी नहीं है। कमिटी ने जीआईएस-लिंक्ड औद्योगिक भूमि बैंक के निर्माण का सुझाव दिया। इसमें उपलब्ध औद्योगिक भूमि की प्लॉट-स्तरीय जानकारी और भूमि पुनर्वर्गीकरण जैसे प्रावधान हो सकते हैं। कमिटी ने पट्टे के अधिकारों को हस्तांतरणीय और गिरवी रखने योग्य बनाने के प्रावधानों का भी सुझाव दिया।
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विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज़): इस क्षेत्र में पांच अनुमोदित सेज़ हैं जिनमें से चार अधिसूचित हैं। हालांकि कोई भी सेज़ चालू नहीं हुआ है। कमिटी ने कहा कि उत्तर पूर्वी क्षेत्र को प्लग एंड प्ले सुविधाओं, सड़क कनेक्टिविटी और बिजली और पानी की आपूर्ति के साथ संचालित औद्योगिक पार्कों की आवश्यकता है। उसने क्षेत्र में सेज़ की स्थापना में तेजी लाने और ऐसे और अधिक सेज़ को अधिसूचित करने की संभावनाएं तलाशने का सुझाव दिया।
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आसियान के साथ व्यापार: दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों के संगठन (आसियान) के साथ भारत के व्यापार को बढ़ाने में उत्तर पूर्वी क्षेत्र के राज्यों की भौगोलिक स्थिति का लाभ उठाया जा सकता है। आसियान के साथ निर्यात संबंधों को मजबूत करने के लिए कमिटी ने निम्नलिखित सुझाव दिए: (i) उड़ान (अंतरराष्ट्रीय) योजना के तहत आसियान देशों के लिए सीधी उड़ानें शुरू करना, (ii) अधिक संख्या में लैंड कस्टम स्टेशन स्थापित करना, और (iii) उत्तर पूर्वी क्षेत्र में आसियान देशों के वाणिज्य दूतावास कार्यालय खोलना। सरकार को उत्तर पूर्वी क्षेत्र में ऐसे उद्योगों की पहचान करनी चाहिए और उन्हें बढ़ावा देना चाहिए जो आसियान और अन्य पड़ोसी देशों के बाजारों की जरूरतों को पूरा कर सकें।
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बांस उद्योग: भारत में कुल बांस का लगभग दो बटा पांचवां हिस्सा उत्तर पूर्वी क्षेत्र में पाया जाता है। लेकिन बांस के विश्व स्तरीय व्यापार और वाणिज्य में भारत की हिस्सेदारी का पता लगाना अभी बाकी है। कमिटी ने कहा कि बांस से संबंधित उद्योगों को विकसित करना महत्वपूर्ण है। उसने सुझाव दिया कि क्षेत्र में बांस समूहों को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए। बांस की उपज की शुरुआती प्रोसेसिंग और मूल्य संवर्धन तंत्र के विकास के लिए भी पर्याप्त धन उपलब्ध कराया जाना चाहिए। उसने बांस पर एक राष्ट्रीय नीति बनाने का भी सुझाव दिया।
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पर्यटन: कमिटी ने कहा कि उत्तर पूर्वी क्षेत्र को एक आकर्षक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है। उसने क्षेत्र में पर्यटक सर्किट और दृष्टिकोण विकसित करने का सुझाव दिया। ऐसे क्षेत्रों और अन्य प्रमुख पर्यटन स्थलों तक कनेक्टिविटी प्रदान की जानी चाहिए। कमिटी ने क्षेत्र में होमस्टे विकसित करने का भी सुझाव दिया।
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प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई): उत्तर पूर्वी क्षेत्र को देश में कुल एफडीआई का 1% से भी कम प्राप्त हुआ है। कमिटी ने क्षेत्र में एफडीआई को आकर्षित करने के लिए निवेश प्रोत्साहन एजेंसियां बनाने का सुझाव दिया। उसने इस क्षेत्र को निवेश गंतव्य के रूप में बढ़ावा देने के लिए विदेशों में शिखर सम्मेलन आयोजित करने का भी सुझाव दिया।
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खाद्य प्रसंस्करण उद्योग: क्षेत्र में अधिशेष कृषि और बागवानी उपज की उपलब्धता खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों को विकसित करने और निर्यात को बढ़ावा देने का अवसर प्रदान करती है। हालांकि इस क्षेत्र में प्राकृतिक आपदाओं, परिवहन और कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं की कमी जैसी कुछ चुनौतियां भी हैं। कमिटी ने क्षेत्र के कृषि और स्वदेशी बागवानी उत्पादों के विकास के लिए एक समर्पित एजेंसी स्थापित करने का सुझाव दिया। डीपीआईआईटी को कोल्ड स्टोरेज, कार्गो टर्मिनल और मेगा फूड पार्क सहित एकीकृत कोल्ड चेन विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। कमिटी ने इस क्षेत्र में उपज के ऑर्गेनिक सर्टिफिकेशन के लिए समर्पित प्रयोगशाला की गैरमौजूदगी पर भी गौर किया। उसने सुझाव दिया कि क्षेत्र में चालू प्रयोगशालाओं को राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम के तहत प्रमाणीकरण का विकल्प चुनने के लिए प्रोत्साहित किया जाए।
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एमएसएमई: देश के कुल सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) में उत्तर पूर्वी क्षेत्र की हिस्सेदारी लगभग 3% है। क्षेत्र में एमएसएमई को कम क्रेडिट जमा अनुपात (ऋण के रूप में दी गई जमा का हिस्सा) के कारण उच्च ब्याज दरों पर अनौपचारिक ऋण पर निर्भर रहना पड़ता है। कमिटी ने पूर्वोतर उद्यमी विकास योजना के तहत बजट आवंटन बढ़ाने का सुझाव दिया जो एमएसएमई को रियायती ब्याज दरों पर वित्तीय सहायता प्रदान करती है। आरबीआई के दिशानिर्देशों के अनुसार, इस क्षेत्र की इकाइयों के लिए 10 लाख रुपए तक के ऋण के लिए किसी गारंटी की मांग नहीं की जानी चाहिए।
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