स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
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श्रम, कपड़ा और कौशल विकास संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: श्री भर्तृहरि महताब) ने 4 अगस्त, 2023 को ‘संगठित और असंगठित क्षेत्रों के कपड़ा श्रमिकों के लिए कल्याण और सामाजिक सुरक्षा उपाय’ पर अपनी रिपोर्ट पेश की। कमिटी के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
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बीमा योजनाओं के लिए नामांकन में गिरावट: कपड़ा श्रमिकों को तीन योजनाओं के तहत बीमा प्रदान किया जाता है। ये हैं: (i) पीएम जीवन ज्योति बीमा योजना, (ii) पीएम सुरक्षा बीमा योजना, और (iii) सम्मिलित (कन्वर्ज्ड) महात्मा गांधी बुनकर बीमा योजना। कमिटी ने कहा कि इनमें से कुछ योजनाओं के तहत नामांकन में 2022-23 (मई 2023 तक) में गिरावट आई है। कमिटी ने कहा कि ऐसा भुगतान प्रणाली में बदलाव के कारण हुआ, चूंकि अप्रैल 2020 से लाभार्थी या राज्य सरकार को प्रीमियम का भुगतान करना होता है। पहले इसका भुगतान केंद्र और/या राज्य सरकार द्वारा सामाजिक सुरक्षा कोष से किया जाता था। वर्तमान में, केवल कर्नाटक, केरल और सिक्किम ही जीवन ज्योति योजना के तहत प्रीमियम में योगदान करते हैं।
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कमिटी ने सुझाव दिया कि कपड़ा मंत्रालय प्रीमियम के भुगतान के लिए राज्य सरकारों के साथ निगरानी और समन्वय को मजबूत करे।
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पेंशन: मंत्रालय 60 वर्ष से अधिक आयु के बुनकरों और कारीगरों को 8,000 रुपए की मासिक पेंशन प्रदान करता है। पात्र होने के लिए इन श्रमिकों की वार्षिक आय एक लाख रुपए से कम होनी चाहिए। कमिटी ने कहा कि पात्रता के लिए आय सीमा कम है, और इसका तात्पर्य उन लोगों से है जो दैनिक न्यूनतम वेतन से कम कमाते हैं। उसने सुझाव दिया कि पात्रता बढ़ाने के लिए आय सीमा की समीक्षा की जाए और उसे उचित स्तर तक बढ़ाया जाए। 2022-23 में 80 हथकरघा बुनकरों और 339 हस्तशिल्पियों को पेंशन दी गई। मंत्रालय ने कहा कि अपर्याप्त जागरूकता के कारण लोग इसका पर्याप्त लाभ नहीं उठा पाते।
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मुद्रा योजना में छोटे और सूक्ष्म उद्यमों को ऋण प्रदान किया जाता है। कमिटी ने कहा कि 2019-20 के बाद से मुद्रा ऋण में हथकरघा बुनकरों की हिस्सेदारी हस्तशिल्प कारीगरों की तुलना में काफी अधिक थी। उसने कहा कि इसका कारण यह हो सकता है कि योजना में हस्तशिल्प संगठनों को ऐसे ऋण देने की सुविधा नहीं है। बैंक की तरफ से रुचि न दिखाना और ऋण संबंधी दस्तावेजों का पर्याप्त न होना, भी इसके दूसरे कारण हैं। कमिटी ने कहा कि मंत्रालय कारीगर उत्पादक कंपनियों को यह सुविधा दे रहा है।
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कमिटी ने कहा कि योजना वांछित परिणाम नहीं दे रही है क्योंकि दिए गए ऋणों की संख्या और क्रेडिट गारंटी में लगातार गिरावट आई है। उसने सुझाव दिया कि बैंक इस योजना के तहत श्रमिकों को कवर करने के लिए वार्षिक लक्ष्य तय करें। उसने यह भी कहा है कि हस्तशिल्प उत्पादों को बनाने में काफी समय लगता है, जिसके परिणामस्वरूप आय प्राप्त होने में लंबा समय लगता है। कमिटी ने ऐसे कारीगरों को किसान क्रेडिट कार्ड की तर्ज पर क्रेडिट कार्ड उपलब्ध कराने का सुझाव दिया।
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हस्तकरघा बुनकरों के बच्चों के लिए स्कॉलरशिप: मंत्रालय ने हस्तकरघा बुनकरों के उन बच्चों के लिए दो लाख रुपए की वार्षिक स्कॉलरशिप की शुरुआत की है, जो मान्यता प्राप्त कपड़ा संस्थानों से कोर्स करते हैं। लेकिन अक्टूबर 2021 में शुरुआत के बाद से सिर्फ 45 बच्चों को इस योजना का लाभ मिला। राज्यों के साथ समन्वय की कमी और लोगों के बीच जागरूकता की कमी को ध्यान में रखते हुए कमिटी ने सुझाव दिया कि मंत्रालय इन्हें मजबूत करे और जागरूकता फैलाए ताकि अधिक से अधिक लोग इसका लाभ उठा सकें।
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मार्केटिंग: मंत्रालय ने हथकरघा और हस्तशिल्प उत्पादकों और विक्रेताओं के लिए एक ऑनलाइन पोर्टल शुरू किया है। शिपमेंट और दस्तावेज़ीकरण जैसे खर्च मंत्रालय वहन करेगा। वर्तमान में 1.5 लाख बुनकरों ने अपने उत्पाद ऑनलाइन बेचने के लिए पंजीकरण कराया है। कमिटी ने मंत्रालय के प्रयासों की सराहना की कि उसने हस्तशिल्प कारीगरों के लिए बिचौलिया-मुक्त मार्केटिंग स्पेस तैयार किया है। उसने कहा कि बुनकरों और कारीगरों को बिक्री के लिए एक प्लेटफॉर्म देने से विश्व मंच पर उसकी मौजूदगी दर्ज होगी, और बिचौलिये खत्म होंगे। इससे उनकी आय बढ़ेगी।
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पहचान कार्ड: हथकरघा बुनकरों और हस्तशिल्प कारीगरों को पहचान कार्ड जारी किए जाते हैं जिनकी मदद से वे योजना का लाभ उठा सकते हैं। जून 2023 तक 49% हथकरघा श्रमिकों और 89% हस्तशिल्प कारीगरों को ये कार्ड जारी किए जा चुके हैं। कमिटी ने सुझाव दिया कि मंत्रालय कार्ड जारी न किए जाने के कारणों का निर्धारण करे और पात्र व्यक्तियों को कार्ड जारी करने की प्रक्रिया में तेजी लाए।
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मान्यता प्राप्त और लुप्तप्राय कलाओं को अपडेट करना: मंत्रालय वर्तमान में 72 शिल्पों को मान्यता देता है और 35 को लुप्तप्राय के रूप में वर्गीकृत करता है। लुप्तप्राय कलाओं को संवर्धन एवं संरक्षण में प्राथमिकता दी जाती है। कमिटी ने सुझाव दिया कि मंत्रालय मान्यता प्राप्त शिल्पों की सूची की व्यापक समीक्षा और उन्हें अपडेट करे, लुप्त होती कलाओं की पहचान करे और उन्हें लुप्तप्राय के रूप में वर्गीकृत करे।
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पावरलूम क्षेत्र: भारत में पावरलूम क्षेत्र असंगठित है और कई चुनौतियों का सामना कर रहा है। इनमें पुरानी तकनीक का उपयोग, आधुनिकीकरण के लिए अपर्याप्त पूंजी और कच्चे माल की कीमतों में उतार-चढ़ाव शामिल हैं। कमिटी ने सुझाव दिया कि पावरलूम श्रमिकों को कम लागत वाली वित्तीय सहायता और ऋण सुविधाएं प्रदान की जाएं ताकि वे अपने करघों को उन्नत कर सकें और कच्चा माल प्राप्त कर सकें। उसने यह सुझाव भी दिया कि उन्हें हथकरघा बुनकरों की तरह ई-पोर्टल के माध्यम से मार्केट लिंकेज दिया जाए। इसके अलावा कमिटी ने गौर किया कि पावरलूम श्रमिक ज्यादातर महिलाएं हैं। उसने सुझाव दिया कि मंत्रालय उन्हें बुनियादी सुविधाएं, जैसे रेस्ट रूम, अलग वॉश एरिया, क्रेच सुविधाएं और स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करे।
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