स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
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परिवहन, पर्यटन और संस्कृति संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: श्री वी. विजयसाई रेड्डी) ने 8 फरवरी, 2024 को 'देश में जहाज निर्माण, मरम्मत और विध्वंस उद्योगों की स्थिति' पर अपनी रिपोर्ट पेश की। कमिटी के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
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वित्तीय सहायता नीति: प्रारंभिक वित्तीय सहायता नीति के तहत जहाज निर्माताओं को घरेलू बाजार के लिए 80 मीटर से अधिक लंबे व्यापारिक जहाजों के निर्माण पर 30% अतिरिक्त सहायता प्रदान की गई थी। निर्यात ऑर्डर के लिए, सभी प्रकार और क्षमताओं के जहाज सबसिडी के लिए पात्र थे। राज्य के स्वामित्व वाले और निजी शिपयार्ड दोनों के लिए एक नई वित्तीय सहायता योजना शुरू की गई, जिसमें प्रत्येक प्रकार के जहाज को सहायता दी जाएगी, भले ही उनका आकार कोई भी हो। इस नीति के तहत अनुबंध मूल्य, उचित मूल्य या प्राप्त वास्तविक भुगतान के 20% के बराबर वित्तीय सहायता, जो भी सबसे कम हो, की पेशकश की जाएगी। कमिटी ने कहा कि नीति के तहत निर्मित 4,000 करोड़ रुपए के कॉरपस में से सिर्फ 6-7% का ही उपयोग किया गया है। कमिटी ने सुझाव दिया कि योजना के कम उपयोग के कारणों का मूल्यांकन किया जाए, और यह भी पता लगाया जाए कि क्या जहाज निर्माण के लिए सामग्री के अत्यधिक आयात और कम स्वचालन जैसे कारक भारतीय शिपयार्ड्स की प्रतिस्पर्धात्मकता को प्रभावित कर रहे हैं।
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टन भार को बढ़ावा: जहाज निर्माण की उच्च लागत के कारण विश्वव्यापी जहाज निर्माण उद्योग में भारत की हिस्सेदारी लगभग 1% -2% है। रंगराजन आयोग ने सुझाव दिया था कि जहाजों और अन्य जलयानों का वर्गीकरण इंफ्रास्ट्रक्चर के रूप में किया जाए। वर्तमान में, शिपयार्ड्स को इंफ्रास्ट्रक्चर का दर्जा दिया गया है जो उसे निम्न दरों पर दीर्घकालिक वित्तपोषण की सुविधा उपलब्ध कराएगा। कमिटी ने सुझाव दिया कि शिपयार्ड्स की ही तरह जहाजों और दूसरे जलयानों को भी इंफ्रास्ट्रक्चर का दर्जा दिया जाए। उसने निम्नलिखित सुझाव भी दिए: (i) स्पेशियलाइज्ड स्टील के घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहित करना और (ii) कार्यशील पूंजी और दीर्घकालिक वित्त तक पहुंच के लिए समुद्री विकास कोष की स्थापना करना।
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ग्रीनशिप निर्माण: कमिटी ने कहा कि जहाज के इंजन और ईंधन फॉसिल फ्यूल से ग्रीन मीथेनॉल और अमोनिया जैसे विकल्पों की ओर बढ़ रहे हैं। उसने भारतीय जहाज निर्माताओं के सामने आने वाली वित्तीय चुनौतियों का भी उल्लेख किया, जिसके कारण उन्हें कम ऑर्ड और कम मुनाफा हो रहा है और पुनर्निवेश की क्षमता सीमित हुई है। उसने निम्नलिखित सुझाव दिए: (i) नेशनल सेंटर फॉर एक्सीलेंस इन ग्रीन पोर्ट्स एंड शिपिंग, ग्रीन शिपिंग के लिए एक नोडल इकाई के रूप में कार्य करे, (ii) भारतीय शिपयार्ड्स के लिए कार्यशील पूंजी पर ब्याज दरों को कम करने के उपाय खोजे जाएं, और (iii) एसंभावित प्रोडक्शन लिंक्ड इन्सेंटिव योजना तैयार की जाए जिसमें जहाज निर्माण उद्योग को बढ़ावा देने के लिए आउटपुट-आधारित पुरस्कार और निवेश प्रोत्साहन दिए जाएं।
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जहाजों की मरम्मत: विश्वव्यापी जहाज मरम्मत बाजार में भारत की हिस्सेदारी 1% से भी कम है। कमिटी ने विश्वव्यापी जहाज मरम्मत बाजार में भारतीय सार्वजनिक क्षेत्र के शिपयार्ड्स की सीमित प्रतिस्पर्धात्मकता पर गौर किया। उसने कहा कि 2019-20 और 2021-22 के बीच निजी शिपयार्ड्स में 725 और सरकारी/पीएसयू शिपयार्ड्स में 448 जहाजों की मरम्मत की गई। पिछले कुछ वर्षों में मुंबई, विशाखापत्तनम, पारादीप और दीनदयाल बंदरगाह जैसे प्रमुख बंदरगाहों पर ड्राई डॉक्स में जहाज मरम्मत का कोई काम नहीं हुआ। कमिटी ने निम्नलिखित सुझाव दिए: (i) जहाज की मरम्मत में मदद देने वाले इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ाना, और (ii) वित्तीय चुनौतियों को कम करने के लिए जहाज मरम्मत के काम को फिर से शुरू करने की व्यावहारिकता का पता लगाना।
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जहाजों की रीसाइकलिंग: जहाज रीसाइकलिंग उद्योग एंड ऑफ लाइफ जहाजों से निर्माण उद्योग के लिए स्टील के बार, बिलेट्स बनाता है, और घरों और बिजनेस के लिए इलेक्ट्रॉनिक टूल्स। कमिटी ने शिप ब्रेकिंग स्टील प्लेट्स से टीएमटी बार बनाने में डेटा की कमी और मानकीकरण संबंधी समस्याओं जैसी चुनौतियों पर गौर किया। इसके कारण टीएमटी बार बेचने वाले छोटे उद्योगों में श्रमिकों की नौकरियां चली गई हैं। कमिटी ने इस संबंध में निम्नलिखित सुझाव दिए: (i) जहाज के स्क्रैप से वैकल्पिक प्रकार का स्टील बनाना, जिसके लिए टीएमटी बार के समान मानक जरूरी न हों और (ii) जहाज रीसाइकलिंग की विभिन्न प्रक्रियाओं में श्रमिकों को प्रशिक्षण देना।
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कमिटी ने रणनीतिक योजना की जरूरत पर जोर दिया ताकि यह सुनिश्चित हो कि जहाज की रीसाइकलिंग के दौरान पर्यावरणीय परिस्थितियों और श्रमिकों की सुरक्षा और स्वास्थ्य मानकों से समझौता न किया जाए। श्रमिकों के प्रदूषक तत्वों के संपर्क में आने की आशंका को ध्यान में रखते हुए कमिटी ने निम्नलिखित सुझाव दिए: (i) जोखिम मूल्यांकन अध्ययन करना, (ii) प्रदूषण जोखिम की निरंतर निगरानी करना, और (iii) श्रमिकों के आवासीय क्षेत्रों में हर्बल गार्डन और ग्रीन एवेन्यू जैसी हरित पहल करना।
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