स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
- वाणिज्य संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी) ने 8 फरवरी, 2024 को 'निर्यात बढ़ाने और आयात कम करने के लिए प्रमुख उत्पादों और देशों को मैप करने की व्यापक रणनीति' पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। कमिटी के प्रमुख निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- पेट्रोलियम उत्पादों का आयात: भारत के कुल आयात के एक तिहाई हिस्से में कच्चा पेट्रोलियम, कोयला, कोक और अन्य पेट्रोलियम उत्पाद शामिल हैं। कमिटी ने कहा कि जीवाश्म ईंधन (फॉसिल फ्यूल) से हाइड्रोकार्बन की खोज और निकासी को प्रोत्साहित करके, इनके घरेलू उत्पादन को बढ़ाने की जरूरत है। पेट्रोलियम उत्पादों के आयात को कम करने के लिए पारंपरिक ईंधन आधारित वाहनों से इलेक्ट्रॉनिक वाहनों की ओर संक्रमण करना जरूरी है।
- इंजीनियरिंग निर्यात: भारत के कुल वस्तु निर्यात में इंजीनियरिंग निर्यात का हिस्सा 25% से अधिक है। 2022-23 में भारत ने 107 बिलियन USD मूल्य की इंजीनियरिंग वस्तुओं का निर्यात किया। कमिटी ने कहा कि संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ (ईयू) की टैरिफ और नॉन-टैरिफ बाधाएं भारत के इंजीनियरिंग निर्यात की वृद्धि में रुकावट बन सकती हैं। इसमें यूरोपीय संघ का कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म (सीबीएएम) शामिल है जिसके कारण उर्वरक, एल्यूमीनियम और सीमेंट जैसे विभिन्न उत्पादों पर अतिरिक्त आयात शुल्क लग सकता है। कमिटी ने कहा कि एमएसएमई क्षेत्र के भारतीय मैन्यूफैक्चरर्स के पास ऐसे जरूरी वित्तीय संसाधन नहीं होते जिनसे सीबीएएम का मुकाबला किया जा सके। कमिटी ने सरकार को सुझाव दिया कि एमएसएमई क्षेत्र पर सीबीएएम को लागू करने के लिए कम से कम तीन साल का वक्त दिया जाए।
- परिधान (एपेरल) निर्यात: पिछले कुछ वर्षों में भारत के रेडी-मेड गारमेंट्स का निर्यात 15-17 बिलियन USD के बीच रहा है। इसका कारण इस क्षेत्र में चीन, बांग्लादेश और वियतनाम जैसे अन्य देशों से प्रतिस्पर्धा है। कमिटी ने कहा कि भारत का परिधान निर्यात कम देशों में केंद्रित है। उसने मुक्त व्यापार समझौतों के जरिए नए बाजारों की खोज के लिए विविधीकरण का सुझाव दिया। परिधान उत्पादों में भारत का निर्यात बास्केट भी बहुत छोटा है। कमिटी ने कपास आधारित निर्यात से मानव निर्मित फाइबर की ओर स्थानांतरित करके निर्यात बास्केट में विविधता लाने का सुझाव दिया। उसने क्षेत्र में तकनीकी उन्नयन के लिए एक नई योजना पेश करने का सुझाव दिया जिससे पुरानी मशीनरी को बदला जा सके और कार्यकुशलता में सुधार किया जा सके।
- निर्यात उत्पादों पर शुल्क या कर में छूट (आरओडीटीईपी) योजना: निर्यात पर शुल्क छूट के लिए आरओडीटीईपी योजना जनवरी 2021 से लागू की जा रही है। यह उन करों, शुल्कों और लेवी की प्रतिपूर्ति करता है जो किसी दूसरे रिफंड मैकेनिज्म के दायरे में नहीं आते। कमिटी ने कहा कि योजना के तहत निम्न छूट दर भारतीय निर्यात को अप्रतिस्पर्धी बनाती है। उसने सुझाव दिया कि विभिन्न क्षेत्रों के लिए दरों की जांच करने वाली आरओडीटीईपी समिति को अपनी रिपोर्ट जल्द देनी चाहिए। कमिटी ने योजना के अंतर्गत आने वाले उत्पादों की संख्या बढ़ाने का भी सुझाव दिया।
- ब्याज समानीकरण योजना: इस योजना का उद्देश्य शिपमेंट से पहले और बाद की गतिविधियों के लिए बैंक ऋण की ब्याज दर को कम करना है। कमिटी ने कहा कि रेपो रेट अक्टूबर 2021 में 4% से बढ़कर फरवरी 2023 में 6.5% हो गई है लेकिन योजना के तहत ब्याज समानीकरण लाभ को समायोजित नहीं किया गया है। कमिटी ने एमएसएमई निर्यातकों के लिए योजना के तहत दर को 3% से बढ़ाकर 5% और कुछ चिन्हित वस्तुओं के मैन्यूफैक्चरर्स और निर्यातकों के लिए 2% से 3% तक बढ़ाने का सुझाव दिया।
- आयात पर इनवर्टेड शुल्क संरचना: इनवर्टेड शुल्क संरचना के कारण भारतीय निर्यातकों को मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) के भागीदारों को निर्यात में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। यह उन विभिन्न उत्पादों के लिए मौजूद है जहां कच्चे माल के आयात पर कई शुल्क लगते हैं। कमिटी ने कहा कि इनवर्टेड शुल्क संरचना निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता में रुकावट पैदा करती है और मूल्यवर्धित उत्पादों की घरेलू मैन्यूफैक्चरिंग को बाधित करती है। उसने इनपुट के लिए समान टैरिफ कटौती को लागू करने का सुझाव दिया, जहां तैयार उत्पादों को एफटीए के तहत कम आयात शुल्क से लाभ होता है।
- सीमा पारीय ई-कॉमर्स: कमिटी ने कहा कि ई-कॉमर्स निर्यात आर्थिक विकास का एक महत्वपूर्ण पहलू बनकर उभरा है। हालांकि इसे कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जैसे शिपमेंट से पहले और उसके बाद निर्यात ऋण की कमी और ई-कॉमर्स नीति को लागू करने में देरी। कमिटी ने ई-कॉमर्स निर्यातकों के लिए शिपमेंट से पहले और बाद में निर्यात क्रेडिट के प्रावधान का सुझाव दिया। उसने यह सुझाव भी दिया कि क्षेत्र के विकास के लिए ई-कॉमर्स नीति को पेश करने मे तेजी लाई जाए।
- एमएसएमई के निर्यात: भारत के निर्यात में एमएसएमई क्षेत्र का योगदान 2019-20 में 49.8% से घटकर 2021-22 में 45% हो गया। एमएसएमई निर्यातकों को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है, उनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) उत्पाद की मांग के बारे में सीमित जानकारी, (ii) विदेशी मार्केट के कामकाज से परिचित न होना, और (iii) निर्यात वितरण तंत्र तक पहुंच में समस्याएं। कमिटी ने ट्रेड शोज़ और प्रदर्शनियों में एमएसएमई की भागीदारी बढ़ाकर एमएसएमई निर्यात को मजबूत करने का सुझाव दिया। एमएसएमई को निर्यात प्रक्रियाओं, दस्तावेज़ीकरण और मानकों के महत्वपूर्ण पहलुओं के संबंध में भी प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।
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