स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
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आवासन एवं शहरी मामलों संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: श्री राजीव रंजन सिंह) ने 17 मार्च, 2023 को ‘प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) के कार्यान्वयन का मूल्यांकन’ पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। 2015 में शुरू की गई, प्रधानमंत्री आवास योजना- शहरी (पीएमएवाई-यू) बुनियादी सुविधाओं के साथ पक्के घरों के निर्माण के लिए राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को केंद्रीय सहायता प्रदान करती है। प्रारंभ में योजना की अवधि 2021-22 तक थी, लेकिन इसे 31 दिसंबर, 2024 तक बढ़ा दिया गया है। कमिटी के मुख्य निष्कर्षो और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
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आवास की मांग के आकलन में कमियां: पीएमएवाई-यू के तहत शुरू में यह अनुमान लगाया गया था कि कुल दो करोड़ घरों की कमी है। हालांकि योजना के तहत आवास की वास्तविक मांग 1.23 करोड़ है। मंत्रालय ने कमिटी को बताया कि आवास की कमी का प्रारंभिक आंकड़ा अनुमानों पर आधारित था जबकि योजना मांग आधारित थी। कमिटी ने पाया कि चूंकि यह एक मांग आधारित योजना है, इसलिए हो सकता है कि कुछ बेघर लोगों ने पात्रता शर्तों को पूरा न करने या भूमि की अपेक्षा के कारण इसका लाभ नहीं उठाया हो। उसने मंत्रालय को सुझाव दिया कि वह एक प्रभाव मूल्यांकन करे और उसके अनुसार, आवश्यक परिवर्तनों के साथ योजना को विस्तृत बनाए या या शहरी गरीबों को आवास प्रदान करने के लिए एक अन्य योजना तैयार करे।
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बुनियादी सुविधाओं की कमी: पीएमएवाई-यू दिशानिर्देशों के अनुसार, निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों की साझेदारी में किफायती आवास के तहत सभी घरों और इन-सीटू स्लम पुनर्विकास (आईएसएसआर) वर्टिकल में पानी, स्वच्छता और बिजली जैसी बुनियादी सुविधाएं होनी चाहिए। इसके अलावा शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबी) को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि क्रेडिट लिंक्ड सबसिडी योजना और लाभार्थी आधारित निर्माण (बीएलसी) वर्टिकल के तहत घरों की ऐसी बुनियादी सेवाओं तक पहुंच हो। कमिटी ने कहा कि बुनियादी सेवाओं की कमी के कारण दिसंबर 2022 तक 5.6 लाख घर लाभार्थियों को नहीं सौंपे गए थे।
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घरों की नींव डालने से लेकर उसके पूर्ण निर्माण तक की समय-सीमा: पीएमएवाई-यू के तहत, कुल 123 लाख स्वीकृत घरों में से, 107 लाख घरों (87%) की दिसंबर 2022 तक नींव डाल दी गई है और 61 लाख घरों को लाभार्थियों को वितरित कर दिया गया है। इसके अलावा अक्टूबर 2022 तक, भौगोलिक और आर्थिक कारणों से उत्तर पूर्वी राज्यों (त्रिपुरा को छोड़कर) में 50% से कम घर पूरे हुए हैं। कमिटी ने सुझाव दिया कि योजना के लक्ष्य को 31 दिसंबर, 2024 तक हासिल करने के लिए मंत्रालय को घरों का निर्माण शुरू करने और उन्हें पूरा करने के लिए कड़ी समयसीमा सुनिश्चित करनी चाहिए।
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लाभार्थी पर उच्च लागत का दबाव: पीएमएवाई-यू के तहत आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के लोगों के लिए घरों का निर्माण किया जाता है। ईडब्ल्यूएस के एक व्यक्ति के लिए एक घर की लागत औसतन लगभग 6.5 लाख रुपए है जिसे केंद्र, राज्य, यूएलबी और लाभार्थी द्वारा साझा किया जाता है। केंद्र का हिस्सा प्रति इकाई के आधार पर तय किया जाता है जबकि राज्य और यूएलबी से इस तरह से योगदान करने की अपेक्षा की जाती है जिससे लाभार्थी के लिए घर किफायती हो। कमिटी ने कहा कि नगालैंड, मणिपुर, मेघालय और राजस्थान जैसे कुछ राज्य अपना हिस्सा नहीं दे रहे हैं। नतीजतन, लाभार्थी का योगदान बढ़ जाता है जिससे घर किफायती नहीं रहता। औसत लाभार्थी योगदान लगभग 60% होता है। कमिटी ने गौर किया कि राज्य बैंकों और हाउसिंग फाइनांस कंपनियों से हाउसिंग लोन की सुविधा देकर लाभार्थियों की मदद कर रहे हैं। हालांकि बैंक लाभार्थियों को ऋण मंजूर नहीं करना चाहते क्योंकि लाभार्थियों के पास स्थायी आय या आय का प्रमाण नहीं होता है। कमिटी ने सुझाव दिया कि अगर पीएमएवाई-यू का दूसरा चरण शुरू किया जाता है, तो राज्यों में एकसमान और निश्चित केंद्रीय सहायता को खत्म किया जा सकता है। इसके बजाय केंद्रीय सहायता राज्यों की टोपोग्राफी के हिसाब से विभिन्न राज्यों में अलग-अलग दी जानी चाहिए।
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बीएलसी पर जोर: योजना के बीएलसी वर्टिकल के तहत जिन ईडब्ल्यूएस पात्र परिवारों के पास भूमि होती है, उन्हें सहायता प्रदान की जाती है। स्वीकृत कुल 123 लाख घरों में से लगभग 60% बीएलसी वर्टिकल के तहत स्वीकृत किए गए हैं। कमिटी ने कहा कि शहरों में अधिकतर बेघर लोग भूमिहीन भी हैं और शहरी क्षेत्रों में जमीन खरीदना, उस पर मकान बनाने से भी ज्यादा चुनौतीपूर्ण है। इसलिए बीएलसी वर्टिकल पर अत्यधिक जोर देने से योजना का उद्देश्य ही निष्फल हो जाता है। जिन मकानों का निर्माण बंद करना पड़ा, उनमें से 61% इसी वर्टिकल के तहत आते हैं, इसके बावजूद कि बीएलसी पर अत्यधिक जोर दिया गया है।
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आईएसएसआर वर्टिकल के तहत घरों की मंजूरी की दर निम्न: आईएसएसआर वर्टिकल के तहत स्लम वासियों का पुनर्वास किया जाता है। कमिटी ने कहा कि एक महत्वपूर्ण वर्टिकल होने के बावजूद, चूंकि यह भूमिहीन लोगों को आवास प्रदान करता है, इसके तहत स्वीकृत घरों की संख्या कम है। 14.35 लाख घरो की मांग है लेकिन सिर्फ 4.33 लाख स्वीकृत किए गए। इसके अलावा, दिसंबर 2022 तक, केवल 99,000 घरों को वितरित किया गया है और 1.08 लाख घर नॉन-स्टार्टर हैं (नींव नहीं डाली गई/निर्माण शुरू नहीं हुआ)। आईएसएसआर वर्टिकल के तहत इस खराब प्रदर्शन के कई कारण हैं, जैसे भूमि की उपलब्धता, वैधानिक मंजूरी मांगना और स्लम्स की सफाई।
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