स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
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ग्रामीण विकास और पंचायती राज संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: श्रीमती कनिमोझी करुणानिधि) ने 27 जुलाई, 2023 को 'प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना' पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। इस केंद्र प्रायोजित योजना को 2000 में पात्र ग्रामीण बस्तियों को सड़क कनेक्टिविटी प्रदान करने के लिए शुरू किया गया था। इस योजना के चार कार्यक्षेत्र (i) पीएमजीएसवाई I, (ii) पीएमजीएसवाई II, (iii) वामपंथी अतिवादी क्षेत्रों के लिए सड़क कनेक्टिविटी परियोजना (आरसीपीएलडब्ल्यूईए), और (iv) पीएमजीएसवाई III हैं। कमिटी के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
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पीएमजीएसवाई I और II की प्रगति: 2000 में प्रारंभ पीएमजीएसवाई I और 2013 में प्रारंभ पीएमजीएसवाई II को सितंबर 2022 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया था। जनवरी 2023 तक पीएमजीएसवाई I के लिए 96% और पीएमजीएसवाई II के लिए 97% लक्ष्य हासिल कर लिया गया। कमिटी ने कहा कि विलंब ने ग्रामीण आबादी की आजीविका और विकास की संभावनाओं पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। इस देरी से लागत में भी वृद्धि हुई है। कमिटी ने सुझाव दिया कि दोनों चरणों की लंबित अवधि को प्राथमिकता के आधार पर पूरा किया जाना चाहिए।
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आरसीपीएलडब्ल्यूईए पर जोर: आरसीपीएलडब्ल्यूईए वामपंथी अतिवाद से प्रभावित क्षेत्रों में सामाजिक-आर्थिक विकास सुनिश्चित करता है। इसे 2016 में शुरू किया गया था और 2020 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया था। फिर इसे मार्च 2023 तक बढ़ा दिया गया। जनवरी 2023 तक केवल 56% काम पूरा हो सका है। मंत्रालय ने कहा कि प्रगति में देरी, (i) कानून-व्यवस्था के मुद्दों, (ii) वन मंजूरियों, (iii) दुर्गम इलाके, और (iv) ठेकेदारों की अनुपलब्धता के कारण है। कमिटी ने ग्रामीण विकास मंत्रालय को नए समाधानों के बारे में सोचने और काम को समय पर पूरा करने के लिए राज्यों को मार्गदर्शन देने का सुझाव दिया।
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केंद्र-राज्य समन्वय: पीएमजीएसवाई 100% केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में शुरू की गई थी। 2015-16 में केंद्र और राज्यों के बीच इसके फंडिंग पैटर्न के अनुपात को संशोधित करके, 60:40 किया गया, जबकि उत्तर पूर्वी राज्यों और हिमालयी राज्यों के लिए यह अनुपात 90:10 किया गया। कमिटी ने गौर किया कि परियोजनाओं के कार्यान्वयन में देरी का कारण लॉजिस्टिक्स या राज्यों द्वारा समय पर धनराशि जारी न करना था। राज्यों द्वारा पर्याप्त धनराशि उपलब्ध न कराए जाने के कारण कुल सड़कों में से 41% सड़कें खराब स्थिति में हैं। कमिटी ने ग्रामीण विकास मंत्रालय को सुझाव दिया कि वह राज्य सरकार के साथ समय-समय पर अनुवर्ती कार्रवाई करे और बेहतर केंद्र-राज्य समन्वय सुनिश्चित करे।
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सड़कों की गुणवत्ता: कमिटी ने ग्रामीण विकास मंत्रालय को सड़कों की गुणवत्ता और उपयोग किए गए कच्चे माल के संबंध में मजबूत उपाय सुनिश्चित करने का सुझाव दिया। जमीनी स्तर पर गुणवत्ता नियंत्रण प्रयोगशालाओं का अनिवार्य प्रावधान है। हालांकि कई स्थानों पर इनके कथित तौर पर मौजूद न होने या काम न करने के मामले सामने आए हैं। कमिटी ने साइटों के गहन मूल्यांकन का सुझाव दिया। इससे प्रयोगशालाओं की मौजूदगी का कड़ाई से अनुपालन सुनिश्चित होगा और सड़कों की गुणवत्ता बरकरार रहेगी।
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टेंडरिंग और ठेकेदारों से संबंधित मुद्दे: पीएमजीएसवाई के तहत सड़क निर्माण परियोजनाओं के लिए बोली लगाई जाती है। कमिटी ने गौर किया कि ठेकेदार "लो-टेंडरिंग" का इस्तेमाल करते हैं, यानी वे परियोजनाओं को हासिल करने के लिए बहुत कम बोलियां लगाते हैं। इससे सामग्री की गुणवत्ता के साथ समझौता किया जाता है। इस नजरिए के परिणामस्वरूप तैयार की गई सड़कें जल्दी खराब हो जाती हैं। कमिटी ने सुझाव दिया कि ग्रामीण विकास मंत्रालय बोली प्रक्रिया के लिए मजबूत उपाय करे, ताकि लो-टेंडरिंग को रोका जा सके। इसके अतिरिक्त कमिटी ने एक कठोर निगरानी प्रणाली लागू करने का सुझाव दिया।
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निर्माण के बाद रखरखाव: पीएमजीएसवाई के अनुसार, एक सड़क का निर्माण 10 वर्षों की डिज़ाइन अवधि के लिए किया जाता है। मानक बोली दस्तावेज़ (एसबीडी) के तहत, ठेकेदार पहले पांच वर्षों में सड़क रखरखाव के लिए जिम्मेदार होता है। अगले पांच वर्षों के लिए रखरखाव की जिम्मेदारी राज्य सरकार की होती है। हालांकि ठेकेदार इसका पालन नहीं करते जिसके परिणामस्वरूप सड़क की गुणवत्ता खराब हो जाती है। कमिटी ने सुझाव दिया कि मंत्रालय सड़कों के रखरखाव से संबंधित एसबीडी के प्रावधानों का कड़ाई से अनुपालन सुनिश्चित करे। इसका पालन न करने वाले ठेकेदारों को काली सूची में डाल दिया जाना चाहिए। कमिटी ने मंत्रालय को सुझाव दिया कि वह समय पर धनराशि जारी करने के लिए वित्त मंत्रालय के साथ समन्वय करे। इसके अलावा मंत्रालय को निरंतर धन जारी करने के संबंध में राज्यों की निगरानी भी करनी चाहिए।
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2011 की जनगणना के आंकड़ों का समावेश: पीएमजीएसवाई के तहत बस्तियां 2001 की जनगणना पर आधारित हैं। इसके कारण कई पात्र बस्तियां छूट गईं हैं। कमिटी ने मंत्रालय को सुझाव दिया कि वह 2011 की जनगणना के अनुसार बस्तियों को शामिल करने के लिए अपने डोमेन में एक नया वर्टिकल शुरू करे।
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