स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
-
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: श्री भुवनेश्वर कलिता) ने 4 अगस्त, 2023 को 'समसामयिक दौर में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल और उसका प्रबंधन' पर अपनी रिपोर्ट पेश की। मानसिक स्वास्थ्य मानसिक कल्याण की स्थिति को संदर्भित करता है जो लोगों को जीवन के तनाव से निपटने के लिए सक्षम बनाता है। कमिटी ने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित समस्याएं बढ़ रही हैं और इस कारण इंफ्रास्ट्रक्चर की स्थिति, रेगुलेटरी संरचना और उसके प्रसार के कारणों की समीक्षा की जानी चाहिए। कमिटी के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
-
भारत में मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति: स्वास्थ्य और कल्याण मंत्रालय ने 2015-16 में एक मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण शुरू किया था। सर्वेक्षण ने भारत में मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति को उजागर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जहां अधिकांश मानसिक बीमारियों के उपचार में उच्च अंतराल है। उपचार अंतराल उपचार की आवश्यकता और पहुंच के बीच का अंतर होता है।
-
कमिटी ने गौर किया कि 2015-16 के सर्वेक्षण में उजागर किए गए मुद्दे 2023 में भी बरकरार हैं। उसने कहा कि उपचार अंतराल में सुधार की काफी गुंजाइश है। अंतराल के कारणों में मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों (प्रोफेशनल्स) की कमी, खराब इंफ्रास्ट्रक्चर, मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी शर्मिन्दगी शामिल हैं।
-
कमिटी ने यह भी गौर किया कि हालांकि सर्वेक्षण उपयोगी था, लेकिन इसमें कई ऐसे मुद्दे थे जिन पर बाद में काम किया जा सकता है। इनमें एक छोटा सैंपल लेना, क्लिनिकल ट्रायल्स की बजाय सेल्फ रिपोर्टिंग पर भरोसा करना और विशिष्ट संवेदनशील जनसंख्या जैसे कैदियों को इससे बाहर रखना शामिल है।
-
मानसिक स्वास्थ्य पर कोविड का प्रभाव: कमिटी ने सभी समूहों, खासकर बच्चों, किशोरों और केयरगिवर्स के मनोवैज्ञानिक-सामाजिक स्वास्थ्य पर कोविड-19 महामारी के प्रतिकूल प्रभाव का उल्लेख किया। उसने मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित इंफ्रास्ट्रक्चर और अन्य नीतियों के विकास पर साक्ष्य-आधारित पहलों की जरूरत पर जोर दिया। कमिटी ने सुझाव दिया कि मानसिक स्वास्थ्य संबंधी सर्वेक्षण के दूसरे दौर को शीघ्रता से प्रकाशित किया जाए ताकि महामारी के परिणामस्वरूप उत्पन्न मानसिक स्वास्थ्य जोखिमों का आकलन और उनका समाधान किया जा सके।
-
बच्चों में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं: कमिटी ने भारत में, विशेषकर शहरी महानगरों में बच्चों और किशोरों में मानसिक स्वास्थ्य विकारों की व्यापकता का उल्लेख किया। उसने युवाओं पर सामाजिक-आर्थिक असमानताओं, हिंसा और मानसिक बीमारियों की स्थिति में आवश्यक सेवाओं तक पहुंच न होने के प्रभाव का उल्लेख भी किया। कमिटी ने सुझाव दिया कि इस समस्या को दूर करने के लिए मानसिक स्वास्थ्य शिक्षा और काउंसिंग प्रदान की जाए। उसने यह सुझाव भी दिया कि मानसिक स्वास्थ्य संबंधी सर्वेक्षण के दूसरे दौर में विशिष्ट प्रवृत्तियों को समझने के लिए बच्चों, किशोरों और केयरगिवर्स पर डेटा तैयार करने के प्रावधान शामिल किए जाएं।
-
आत्महत्या: कमिटी ने भारत में विशेषकर विद्यार्थियों और बेरोजगार युवाओं के बीच आत्महत्या की बढ़ती दर पर गौर किया। कमिटी ने प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं में असफल होने वाले विद्यार्थियों तक पहुंचने के लिए 24X7 हेल्पलाइन शुरू करने का सुझाव दिया। उसने यह सुझाव भी दिया कि आत्महत्या के कारणों पर नज़र रखने और उन्हें रोकने की रणनीति तैयार करने के लिए निगरानी प्रणाली को मजबूत किया जाए।
-
मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों की उपलब्धता: भारत में वर्तमान में प्रति लाख लोगों पर 0.75 मनोचिकित्सक हैं जो काफी कम है। कमिटी ने कहा कि अगर भारत प्रति लाख लोगों पर तीन मनोचिकित्सकों का लक्ष्य रखता है तो उसे 27,000 और मनोचिकित्सकों की आवश्यकता होगी। यही स्थिति अन्य पेशेवरों जैसे मनोवैज्ञानिकों, मनोरोग सामाजिक कार्यकर्ताओं और नर्सों की भी है। कमिटी ने एमडी मनोचिकित्सा पाठ्यक्रमों के लिए सीटें बढ़ाने का भी सुझाव दिया।
-
प्राथमिक और द्वितीयक स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं: कमिटी ने मंत्रालय के मौजूदा प्रयासों और प्राथमिक और माध्यमिक मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करने की आवश्यकता को स्वीकार किया। उसने सुझाव दिया कि मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं को दूर करने के लिए समुदाय-आधारित देखभाल को बायो-मेडिकल देखभाल के साथ जोड़ा जाए। समुदाय-आधारित देखभाल मानसिक स्वास्थ्य के लिए व्यक्ति-केंद्रित और समुदाय-उन्मुख दृष्टिकोण प्रदान करती है और पहुंच, शीघ्र पहल, समग्र देखभाल, निरंतर मदद को बढ़ावा देती है।
-
मानसिक स्वास्थ्य देखभाल एक्ट, 2017: 2017 का एक्ट केंद्र को भारत में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं के मानकों को रेगुलेट करने के लिए एक केंद्रीय मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण (सीएमएचए) बनाने का आदेश देता है। राज्य स्तर पर भी ऐसे प्राधिकरण स्थापित किए जाने चाहिए। एक्ट के तहत राज्य-स्तरीय अधिकारियों को निर्दिष्ट रोगी अधिकारों की रक्षा के लिए एक मानसिक स्वास्थ्य समीक्षा बोर्ड (एमएचआरबी) का गठन करना चाहिए। कमिटी ने गौर किया कि कई राज्यों ने अभी तक अपने मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरणों में महत्वपूर्ण रिक्तियों को नहीं भरा है और एमएचआरबी का गठन नहीं किया है। उसने सुझाव दिया कि दोनों की प्रगति को ट्रैक करने के लिए एक ट्रैकर विकसित किया जाए।
अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (“पीआरएस”) के नाम उल्लेख के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।