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भारत में कोविड-19 की रोकथाम के लिए केंद्र सरकार ने 24 मार्च, 2020 को देश व्यापी लॉकडाउन किया था। लॉकडाउन के दौरान अनिवार्य के रूप में वर्गीकृत गतिविधियों को छोड़कर अधिकतर आर्थिक गतिविधियों बंद थीं। इसके कारण राज्यों ने चिंता जताई थी कि आर्थिक गतिविधियां न होने के कारण अनेक व्यक्तियों और व्यापार जगत को आय का नुकसान हुआ है। कई राज्य सरकारों ने अपने राज्यों में स्थित इस्टैबलिशमेंट्स में कुछ गतिविधियों को शुरू करने के लिए मौजूदा श्रम कानूनों से छूट दी है। इस ब्लॉग में बताया गया है कि भारत में श्रम को किस प्रकार रेगुलेट किया जाता है और विभिन्न राज्यों ने श्रम कानूनों में कितनी छूट दी है।
भारत में श्रम को कैसे रेगुलेट किया जाता है?
श्रम संविधान की समवर्ती सूची में आने वाला विषय है। इसलिए संसद और राज्य विधानसभाएं श्रम को रेगुलेट करने के लिए कानून बना सकती हैं। वर्तमान में श्रम के विभिन्न पहलुओं को रेगुलेट करने वाले लगभग 100 राज्य कानून और 40 केंद्रीय कानून हैं। ये कानून औद्योगिक विवादों को निपटाने, कार्यस्थितियों, सामाजिक सुरक्षा और वेतन इत्यादि पर केंद्रित हैं। कानूनों के अनुपालन को सुविधाजनक बनाने और केंद्रीय स्तर के श्रम कानूनों में एकरूपता सुनिश्चित करने के लिए केंद्र सरकार विभिन्न श्रम कानूनों को चार संहिताओं में संहिताबद्ध करने का प्रयास कर रही है। ये चार संहिताएं हैं (i) औद्योगिक संबंध, (ii) व्यवसायगत सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्यस्थितियां, (iii) वेतन, और (iv) सामाजिक सुरक्षा। इन संहिताओं में कई कानूनों को समाहित किया गया है जैसे औद्योगिक विवाद एक्ट, 1947, फैक्ट्रीज़ एक्ट, 1948 और वेतन भुगतान एक्ट, 1936।
राज्य सरकारें श्रम को कैसे रेगुलेट करती हैं?
राज्य सरकारें निम्नलिखित द्वारा श्रम को रेगुलेट कर सकती हैं: (i) अपने श्रम कानून पारित करके, या (ii) राज्यों में लागू होने वाले केंद्रीय स्तर के श्रम कानूनों में संशोधन करके। अगर किसी विषय पर केंद्र और राज्यों के कानूनों में तालमेल न हो, उन स्थितियों में केंद्रीय कानून लागू होते हैं और राज्य के कानून निष्प्रभावी हो जाते हैं। हालांकि अगर राज्य के कानून का तालमेल केंद्रीय कानून से न हो, और राज्य के कानून को राष्ट्रपति की सहमति मिल जाए तो राज्य का कानून राज्य में लागू हो सकता है। उदाहरण के लिए 2014 में राजस्थान ने औद्योगिक विवाद एक्ट, 1947 में संशोधन किया था। एक्ट में 100 या उससे अधिक श्रमिकों वाले इस्टैबलिशमेंट्स में छंटनी, नौकरी से हटाए जाने और उनके बंद होने से संबंधित विशिष्ट प्रावधान हैं। उदाहरण के लिए 100 या उससे अधिक श्रमिकों वाले इस्टैबलिशमेंट्स के नियोक्ता को श्रमिकों की छंटनी करने से पहले केंद्र या राज्य सरकार की अनुमति लेनी होगी। राजस्थान ने 300 कर्मचारियों वाले इस्टैबलिशमेंट्स पर इन विशेष प्रावधानों को लागू करने के लिए एक्ट में संशोधन किया गया। राजस्थान में यह संशोधन लागू हो गया, क्योंकि इसे राष्ट्रपति की सहमति मिल गई थी।
किन राज्यों ने श्रम कानूनों में छूट दी है?
उत्तर प्रदेश कैबिनेट ने एक अध्यादेश को मंजूरी दी और मध्य प्रदेश ने एक अध्यादेश जारी किया ताकि मौजूदा श्रम कानूनों के कुछ पहलुओं में छूट दी जा सके। इसके अतिरिक्त गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, असम, गोवा, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश ने नियमों के जरिए श्रम कानूनों में रियायतों को अधिसूचित किया है।
मध्य प्रदेश
6 मई, 2020 को मध्य प्रदेश सरकार ने मध्य प्रदेश श्रम कानून (संशोधन) अध्यादेश, 2020 को जारी किया। यह अध्यादेश दो राज्य कानूनों में संशोधन करता है: मध्य प्रदेश औद्योगिक रोजगार (स्थायी आदेश) एक्ट, 1961 और मध्य प्रदेश श्रम कल्याण निधि अधिनियम, 1982। 1961 का एक्ट श्रमिकों के रोजगार की शर्तों को रेगुलेट करता है और 50 या उससे अधिक श्रमिकों वाले इस्टैबलिशमेंट्स पर लागू होता है। अध्यादेश ने संख्या की सीमा को बढ़ाकर 100 या उससे अधिक श्रमिक कर दिया है। इस प्रकार यह एक्ट अब उन इस्टैबलिशमेंट्स पर लागू नहीं होता जिनमें 50 और 100 के बीच श्रमिक काम करते हैं। इन्हें पहले इस कानून के जरिए रेगुलेट किया गया था। 1982 के एक्ट के अंतर्गत एक कोष बनाने का प्रावधान था जोकि श्रमिकों के कल्याण से संबंधित गतिविधियों को वित्त पोषित करता है। अध्यादेश में इस एक्ट को संशोधित किया गया है और राज्य सरकार को यह अनुमति दी गई है कि वह अधिसूचना के जरिए किसी इस्टैबलिशमेंट या इस्टैबलिशमेंट्स की एक श्रेणी को एक्ट के प्रावधानों से छूट दे सकती है। इस प्रावधान में नियोक्ता द्वारा हर छह महीने में तीन रुपए की दर से कोष में अंशदान देना भी शामिल है।
इसके अतिरिक्त मध्य प्रदेश सरकार ने सभी नए कारखानों को औद्योगिक विवाद एक्ट, 1947 के कुछ प्रावधानों से छूट दी है। श्रमिकों को नौकरी से हटाने और छंटनी तथा इस्टैबलिशमेंट्स के बंद होने से संबंधित प्रावधान राज्य में लागू रहेंगे। हालांकि एक्ट के औद्योगिक विवाद निवारण, हड़ताल और लॉकआउट और ट्रेड यूनियंस जैसे प्रावधान लागू नहीं होंगे। ये छूट अगले 1,000 दिनों (33 महीने) तक लागू रहेगी। उल्लेखनीय है कि औद्योगिक विवाद एक्ट, 1947 राज्य सरकार को यह अनुमति देता है कि वह कुछ इस्टैबलिशमेंट्स को इसके प्रावधानों से छूट दे सकती है, अगर सरकार इस बात से संतुष्ट है कि औद्योगिक विवादों के निपटान और जांच के लिए एक तंत्र उपलब्ध है।
उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश कैबिनेट ने उत्तर प्रदेश विशिष्ट श्रम कानूनों से अस्थायी छूट अध्यादेश, 2020 को मंजूरी दी। न्यूज रिपोर्ट्स के अनुसार, अध्यादेश मैन्यूफैक्चरिंग प्रक्रियाओं में लगे सभी कारखानों और इस्टैबलिशमेंट्स को तीन वर्ष की अवधि के लिए सभी श्रम कानूनों से छूट देता है, अगर वे कुछ शर्तो को पूरा करते हैं। इन शर्तों में निम्नलिखित शामिल हैं:
यह अस्पष्ट है कि क्या सामाजिक सुरक्षा, औद्योगिक विवाद निवारण, ट्रेड यूनियन, हड़तालों इत्यादि का प्रावधान करने वाले श्रम कानून अध्यादेश में निर्दिष्ट तीन वर्ष की अवधि के लिए उत्तर प्रदेश के व्यापारों पर लागू रहेंगे। चूंकि अध्यादेश केंद्रीय स्तर के श्रम कानूनों के कार्यान्वयन को प्रतिबंधित करता है, उसे लागू होने के लिए राष्ट्रपति की सहमति की आवश्यकता है।
काम के घंटों में परिवर्तन
फैक्ट्रीज़ एक्ट, 1948 राज्य सरकारों को इस बात की अनुमति देता है कि वह तीन महीने के लिए काम के घंटों से संबंधित प्रावधानों से कारखानों को छूट दे सकती है, अगर कारखान अत्यधिक काम कर रहे हैं (एक्सेप्शनल अमाउंट ऑफ वर्क)। इसके अतिरिक्त राज्य सरकारें पब्लिक इमरजेंसी में कारखानों को एक्ट के सभी प्रावधानों से छूट दे सकती हैं। गुजरात, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, गोवा, असम और उत्तराखंड की सरकारों ने इस प्रावधान की मदद से कुछ कारखानों के लिए काम के अधिकतम साप्ताहिक घंटों को 48 से बढ़ाकर 72 तथा रोजाना काम के अधिकतम घंटों को 9 से बढ़ाकर 12 कर दिया। इसके अतिरिक्त मध्य प्रदेश ने सभी कारखानों को फैक्ट्रीज़ एक्ट, 1948 के प्रावधानों से छूट दे दी, जोकि काम के घंटों को रेगुलेट करते हैं। इन राज्य सरकारों ने कहा कि काम के घंटों को बढ़ाने से लॉकडाउन के कारण श्रमिकों की कम संख्या की समस्या को हल किया जा सकेगा और लंबी शिफ्ट्स से यह सुनिश्चित होगा कि कारखानों में कम श्रमिक काम करें, ताकि सोशल डिस्टेसिंग बनी रहे। तालिका 1 में विभिन्न राज्यों में काम के अधिकतम घंटों में वृद्धि को प्रदर्शित किया गया है।
तालिका 1: विभिन्न राज्यों में काम के घंटों में बदलाव
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राज्य |
इस्टैबलिशमेंट्स |
सप्ताह में काम के अधिकतम घंटे |
रोज काम के अधिकतम घंटे |
ओवरटाइम वेतन |
समय अवधि |
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सभी कारखाने |
48 घंटे से बढ़ाकर 72 घंटे |
9 घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे |
आवश्यक नहीं |
तीन महीने |
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सभी कारखाने |
48 घंटे से बढ़ाकर 72 घंटे |
9 घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे |
आवश्यक |
तीन महीने |
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अनिवार्य वस्तुओं का वितरण करने वाले और अनिवार्य वस्तुओं और खाद्य पदार्थों की मैन्यूफैक्चरिंग करने वाले सभी कारखाने |
48 घंटे से बढ़ाकर 72 घंटे |
9 घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे |
आवश्यक |
तीन महीने |
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सभी कारखाने |
निर्दिष्ट नहीं |
9 घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे |
आवश्यक |
दो महीने |
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सभी कारखाने |
48 घंटे से बढ़ाकर 72 घंटे |
9 घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे |
आवश्यक नहीं |
तीन महीने* |
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सभी कारखाने और सतत प्रक्रिया उद्योग जिन्हें सरकार ने काम करने की अनुमति दी है |
सप्ताह में अधिकतम 6 दिन |
12-12 घंटे की दो शिफ्ट |
आवश्यक |
तीन महीने |
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सभी कारखाने |
निर्दिष्ट नहीं |
9 घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे |
आवश्यक |
तीन महीने |
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गोवा |
सभी कारखाने |
निर्दिष्ट नहीं |
9 घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे |
आवश्यक |
लगभग तीन महीने |
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सभी कारखाने |
निर्दिष्ट नहीं |
निर्दिष्ट नहीं |
निर्दिष्ट नहीं |
तीन महीने |
Note: *The Uttar Pradesh notification was withdrawn
Parliament is set to go into recess this week and will convene again on April 12th. Before going into recess, both houses will have completed general discussions on the budget. Once the recess begins, it’s time to go beyond the big budget numbers and into greater detail. The detailed estimates by various ministries (sometimes running into a few hundred pages), of their budgeted expenditures in the next financial year (April 2010-March 2011) will be examined by the various Parliamentary Standing Committees. When Parliament reconvenes, the Committees will table their reports on these demands for grants and the Lok Sabha will then begin more detailed discussions. Due to lack of time however, such detailed discussions take place only for 3-4 ministries – the rest are voted on without discussion. For a more detailed overview of the entire budget process, see our document “The Union Budget – A Primer” For an overview of the budget documents, as well as a guide to finding the information that you want, see “How to Read the Union Budget”