स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
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आवास और शहरी मामलों से संबंधित स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: श्री राजीव रंजन) ने 8 फरवरी, 2024 को "स्मार्ट सिटीज मिशन: एक मूल्यांकन" पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। नागरिकों को इंफ्रास्ट्रक्चर, स्वच्छ और सतत पर्यावरण प्रदान करने के लिए 2015 में स्मार्ट सिटीज मिशन (एससीएम) को शुरू किया गया था। स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट में निम्नलिखित सुझाव दिए गए हैं:
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स्पेशल पर्पज वेहिकल्स (एसपीवीज़): स्मार्ट सिटीज़ मिशन एसपीवी के जरिए कार्यान्वित किया जाता है जिसका स्वामित्व शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबी) और राज्यों के पास समान रूप से होता है। एसपीवी के निदेशक मंडल में केंद्र और राज्य सरकार के प्रतिनिधि और मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) शामिल होते हैं। कमिटी ने कहा कि सीईओ का बार-बार स्थानांतरण और स्पष्ट दिशानिर्देशों का अभाव एसपीवी के सामने आने चुनौतियां पेश करता है। उसने निम्नलिखित सुझाव दिए: (i) न्यूनतम निश्चित कार्यकाल वाले डेडिकेटेड सीईओ की नियुक्ति, (ii) एसपीवी में विशेषज्ञों और संबंधित हितधारकों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना, और (iii) भविष्य की परियोजनाओं में एसपीवी की मौजूदा विशेषज्ञता का उपयोग करना।
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संसद सदस्यों को शामिल करना: मिशन शहर-स्तर और राज्य स्तर पर स्मार्ट सिटी सलाहकार फोरम स्थापित करता है जिसमें सांसद, विधायक और महापौर शामिल होते हैं। यह जन प्रतिनिधियों के साथ परामर्श के लिए एक तंत्र प्रदान करता है। कमिटी ने पाया कि अमरावती और इंफाल में फोरम की एक भी बैठक नहीं हुई और अन्य शहरों में पांच वर्षों में अधिकतम आठ बैठकें हुईं। उसने यह भी कहा है कि सांसदों को राज्य-स्तरीय सलाहकार मंचों में शामिल नहीं किया जाता है। इसके कारण कई परियोजनाओं को पूरा करने में देरी हुई, कई परियोजनाओं को बदला गया या उन्हें छोड़ दिया गया।
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कमिटी ने सलाहकार निकाय में सांसदों को शामिल करने और परियोजना की पहचान, चयन और कार्यान्वयन के संबंध में उनके साथ परामर्श करने का सुझाव दिया क्योंकि उनके पास जमीनी स्तर की विशेषज्ञता है। इसके अलावा उसने फोरम की बैठकें त्रैमासिक या द्वि-वार्षिक आधार पर आयोजित करने का सुझाव दिया।
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पैन सिटी परियोजनाएं: पैन सिटी परियोजनाएं उन समस्याओं का हल निकालती हैं, जिनसे कई शहर समान रूप से प्रभावित होते हैं जैसे अपशिष्ट प्रबंधन, पेयजल आपूर्ति और यातायात प्रबंधन। कमिटी ने कहा कि 100 स्मार्ट शहरों में से 76 में पैन सिटी परियोजनाएं कुल परियोजनाओं के 50% से भी कम हैं। कमिटी ने सुझाव दिया कि एससीएम को व्यापक और समग्र विकास सुनिश्चित करने के लिए पैन सिटी परियोजनाओं पर अधिक जोर देना चाहिए। इसमें ऐसे स्मार्ट सॉल्यूशंस को लागू करने पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा जो संसाधन आवंटन का अच्छे से अच्छा उपयोग करते हैं और बर्बादी को कम करते हैं।
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डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर संरक्षण: एससीएम के अंतर्गत विभिन्न डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर प्लेटफॉर्म हैं जो बड़ी मात्रा में डेटा जनरेट और इस्तेमाल करते हैं। कमिटी ने डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर को साइबर खतरों से बचाने और डेटा प्राइवेसी बनाए रखने के लिए एक तंत्र तैयार करने का सुझाव दिया। उसने डिजिटल और फिजिकल एसेट्स के रखरखाव की आवश्यकता पर भी प्रकाश डाला। उसने लाइफ टाइम युटिलिटी बढ़ाने और मिशन के तहत एसेट्स का समय पर उन्नयन सुनिश्चित करने के लिए व्यापक संचालन और रखरखाव रणनीतियों के निर्माण का सुझाव दिया।
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यूएलबी की क्षमता बढ़ाना: कमिटी ने पाया कि पूर्वोत्तर सहित कई छोटे शहरों में एससीएम की प्रगति धीमी है। कई स्मार्ट शहरों में हजार करोड़ की परियोजनाएं तैयार करने और उन पर खर्च करने की क्षमता नहीं थी। भले केंद्र से 90% धनराशि प्राप्त हो रही थी, लेकिन इसके बावजूद मिशन प्रगति के मामले में निचले क्रम के 15 शहरों में से आठ उत्तर-पूर्व से हैं। दिसंबर 2023 तक 20 सबसे निचली रैंकिंग वाले शहरों में 47% परियोजनाएं वर्क ऑर्डर चरण में हैं। कमिटी ने सुझाव दिया कि छोटे शहरों में यूएलबी की क्षमताओं को मजबूत करने के लिए एक योजना बनाई जानी चाहिए। उसने केंद्र सरकार को यह सुझाव भी दिया कि उन राज्यों की मदद करे, जिन्हें संगठनात्मक पुनर्गठन और क्षमता निर्माण की जरूरत है। इससे वे अपने वित्तीय तंत्र में सुधार कर सकेंगे।
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सार्वजनिक निजी भागीदारी: स्मार्ट शहरों की 21% धनराशि सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) के माध्यम से खर्च की गई। हालांकि आधे स्मार्ट शहर पीपीपी मॉडल के तहत कोई परियोजना नहीं ले पाए। जो परियोजनाएं शुरू की गई हैं, वे कुल पीपीपी लागत का केवल 6% हैं। कमिटी ने सुझाव दिया कि सरकार को कम निजी निवेश के पीछे के कारणों का विश्लेषण करना चाहिए और इस संबंध में कदम उठाने चाहिए।
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परियोजनाओं को पूरा करना: कमिटी ने कहा कि एससीएम के तहत 400 परियोजनाओं को पूरा होने में दिसंबर 2023 से अधिक समय लग सकता है। मिशन को जून 2024 तक बढ़ा दिया गया है। मंत्रालय ने कहा कि इसके बाद अधूरी परियोजनाओं की जिम्मेदारी और लागत राज्यों द्वारा वहन की जाएगी। कमिटी ने सुझाव दिया कि मंत्रालय की भूमिका सिर्फ यहां तक सीमित नहीं होनी चाहिए कि वह अपने हिस्से का हस्तांतरण करे। इसके साथ ही उसे इनपुट और विशेषज्ञता देते हुए परियोजनाओं के निष्पादन और समापन पर नजर रखनी चाहिए।
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